: लोग बताते हैं कि हल्का झक्की, लेकिन निहायत कर्तव्यनिष्ठ था यह अधिकारी : बेमिसाल वाइन बनाने के शौक ने उसे अपने घर सात हजार वाइन की बोतलें सजा डाली थीं : लोग हैरत में थे कि आखिर ऐसी स्वादिष्ट वाइन कहां से लाता है यह आदमी : कमाल होती है वाइन, कभी विनि-यार्ड पहुंचिये न (एक)
कुमार सौवीर
लखनऊ : वह अपने महकमे का आला अफसर। लम्बा-चौड़ा, दबंग, गबरू, आवाज गुर्राबी, अंदाज बेमिसाल, कामकाज में चौकस। शैली चट समस्या, तत्काल समाधान वाली। लिखापढ़ी में माहिर। मेहनती, काम कराने का तीखा तरीका। अधीनस्थों और अपने अफसरों से मेलजोल। नेताओं से अच्छे सम्बन्ध।
लेकिन यूपी की राजनीति में कब क्या हो जाए, अल्लाह को भी पता नहीं होता। कम से कम 25 साल से तो यही हालत चल रही है। सेवा-भाव दक्षिणायन हो चुका है, बेईमानी के नये-नये सलीके, समीकरण खोजे-बुने जा रहे हैं। पैसा सर्वोच्च हो गया है। अब अफसर का चरित्र क्या हो चुका है, इस बारे में हम से पूछने के बजाय आप सीधे जनता से पूछ लीजिए, तो बेहतर होगा।
खैर, इस अफसर को केवल एक शौक था। वाइन पीना। कभी-कभार दोस्त-अहबाब आ जाते थे, तो उनकी भी सेवा-टहल भी कर देता था यह अफसर। उसके घर की पार्टियों की धूम उसके सारे दोस्तों में तहलका मचाये रखती थी। दोस्त आपस में भी बात करते थे कि यार कमाल है इस आदमी का। हम स्विटजरलैंड या मास्को-पेरिस तक की वाइन पी चुके हैं, लेकिन यह शख्स जो वाइन पिलाता है, वह बेमिसाल होती है।
वाकई। इस शख्स के करीबी लोग भी यही बताते थे। लेकिन जो बेहद अंतरंग हुआ करते थे, केवल उन्हें ही यह पता था कि इस अफसर को वाइन पीने-पिलाने का शौक तो कम है, उससे ज्यादा उसका शौक वाइन बनाने का है। जुनून के स्तर तक। न जाने किस विधि से वह वाइन बनाता था, कि जुबान से तैरती उसका स्वाद गले होते हुए पेट और फिर दिमाग तक पहुंच जाता था। किसी दैवीय चमत्कार की तरह। भीनी-भीनी। ऐसी कि पीने वाला कभी भूल तक नहीं सकता। ( क्रमश:)
यह किस्सा एक वाइन-प्रेमी का, जिसने अराजक राजनीतिक हालातों के चलते खुद ही तबाह कर दिया अपना अद्भुत सपना।
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