डीएम पर भारी, अनाथालय प्रभारी। लो शुरू हुआ हंगामा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: अधिकारियों को बरगलाकर जमीन कब्जा करने की जद्दोजहद शुरू : जिन्‍हें बर्खास्‍त कर दिया गया, उनहें भी वापस नौकरी देने पर आमादा हैं प्रभारी : असल बात तो यह है कि यहां है बेशकीमती चालीस हजार वर्गफीट जमीन :

लखनऊ : भारत के सबसे पुराने अनाथालय में शुमार लखनऊ के अलीगंज में स्थित श्री राम औद्योगिक अनाथालय.. जिसकी स्थापना 1911 में हुई थी..

सैकडों वर्ष पुराने इस अनाथालय को मॉडल अनाथालय में शुमार होना चाहिये था लेकिन हाल ये है कि बेहतरी की छोड़िये आज़ हर कोई बगुले की तरह नज़र गडाये बैठा है..

ऐसा नहीँ है कि इस अनाथालय के सुधार की कोशिश नहीँ हुई 2008 में तत्कालीन डीएम लखनऊ जो इस अनाथालय के अध्यक्ष होते हैं बायलाज के अनुसार , नें काफ़ी काम किया और उनके बाद वर्तमान लखनऊ डीएम श्री राजशेखर जी नें भी कई बार अनाथालय का दौरा कर कॉफी काम कराया और सुधार की फ़िर से शुरुआत की है लेकिन बिजी शेड्यूल में किसी भी डीएम के लिये पॉसिबल नहीँ है कि वो किसी अनाथालय की हर बात का रोज़ निरीक्षण कर सके..

खैर मुद्दे पर आते हैं सूत्रों के मुताबिक़ वर्तमान समय में अनाथालय पर कब्जे की कोशिश शुरू हो गई है जिसकी शुरुआत की है लखनऊ के ही एक पूर्व एडीएम ओम प्रकाश पाठक नें…

दरअसल ओपी पाठक अनाथालय में कुछ नहीँ थे.. 2010 में एडीएम ट्रांसगोमती के पद पर पाठक साहब थे और अनाथालय के बायलाज के मुताबिक़ जो भी एडीएम टीजी के पद पर होगा वो अधिकारी अनाथालय का प्रभारी अधिकारी होगा… इसी दौरान पाठक साहब नें एडीएम टीजी रहने के दौरान ही खुद को अनाथालय ट्रस्ट की कार्यकरिणी में स्थाई आमंत्रित सदस्य बनवा लिया.. जिसपर अनाथालय ट्रस्ट बोर्ड राजी भी नहीँ था लेकिन डीएम साहब से पैरवी कर पाठक जी अनाथालय ट्रस्ट के स्थाई आमंत्रित सदस्य बन गये.. उसके बाद अनाथालय में अपना दबदबा बनाने के लिये पाठक जी नें अपने 3 लोगों को अनाथालय स्टाफ में रखा… जिसके बाद अनाथालय में मनमानी शुरू हुई.. तीनों स्टाफ के मनमाने कार्य पर अधीक्षिका से विवाद हुआ… उनमें से एक स्टाफ नें अनाथालय में लूटपाट की जिसपर अलीगंज थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ…

मामले का मीडिया ट्रायल हुआ जिसके बाद उन तीनों स्टाफ में से 2 को निकाल दिया गया और तीसरा भाग गया जिसके बाद पाठक जी नें भी किरकिरी से बचने के लिये एडीएम टीजी से अपना ट्रांसफर करवा लिया..

मामला कुछ साल ठंढा रहा.. पाठक जी रिटायर हुये लेकिन अनाथालय और उसकी 40 हज़ार स्क्वायर फिट ज़मीन दिलोदिमाग से नहीँ निकली

लिहाजा 2016 के इस वर्ष खुद को ओपी पाठक जी नें अनाथालय ट्रस्ट कमेटी में मेम्बर इंचार्ज बनवा लिया और एकबार फ़िर से शुरू हुई कब्जे की कोशिश..

पाठक जी नें फ़िर उन्ही तीन लोगों को जिनमें से 2 को निकाला गया था और एक भाग गया था उन्ही तीनों कर्मियों को एडीएम टीजी और डीएम साहब को समझा बुझाकर फ़िर से अनाथालय में नौकरी पर नियुक्ति का आदेश करवा लिया..

और आदेश में ये भी लिखवा लिया कि ये कर्मचारी पिछली बार से अब तक अनाथालय के स्टाफ हैं जबकि 2012 में ही डीएम साहब नें अपने हस्ताक्षर से कार्यमुक्त कर दिया था…

मतलब कि पाठक जी नें जो आदेश करवाया उसमे ग़लत लिखवा दिया..

इतना ही नहीँ जिन पदों पर नियुक्ति करवाई वो या तो भरे हैं या मानक के अनुसार ज़रूरत ही नहीँ… जबकि जिस स्टाफ की मानक के अनुसार अनाथालय में आवश्यकता हैं उसकी नियुक्ति पर प्रभारी इंचार्ज यानि कि पाठक जी कोई कार्यवाई नहीँ करवाना चाहते…

इतना ही नहीँ पाठक जी एकक्षत्र राज्य के लिये अनाथालय की अधीक्षिका से भी साफ कह दिये हैं कि अब आप यहाँ से इस्तीफा दे दीजिये…

हुजूर बात यही ख़तम नहीँ होती अनाथालय के वर्तमान स्टाफ को 2 माह से वेतन/मानदेय नहीँ मिला है तुर्रा ये है कि ट्रस्ट में पैसा कम है… और सुनिये अनाथालय के बच्चों के लिये नाश्ते में एक टाइम दूध आवश्यक होता है लेकिन वो 2013 से नहीँ दिया जा रहा है पाठक जी को उसकी भी चिंता नहीँ है कारण ये है कि 2013 के दूध के बिल के भुगतान रोक दिया गया और तब से कई बार गुहार लगाई गई लेकिन कुछ नहीँ हुआ…

अब इसे क्या कहा जाय… ?

ख़बर है कि इस पूरे प्रकरण की जानकारी वर्तमान एडीएम टीजी अशोक कुमार को भी नहीँ है कारण ये कि ओपी पाठक साहब जो कहते हैं वो पूरा करते गये..

ख़बर लगीं है कि जब आज़ अधीक्षिका नें मज़बूर होकर पूरे मामले में एडीएम टीजी और डीएम साहब से गुहार लगाई तो डीएम साहब मीटिंग में थे लेकिन एडीएम टीजी अशोक कुमार नें मामले को गम्भीरता से सुना है और पूरे प्रकरण पर सुधार की बात करी है…

लेकिन फिलहाल तो डीएम पर भारी निजी अनाथालय के प्रभारी… सही बैठ रहा है… खैर देखते हैं क्या कुछ सुधार होता है ??

एक पीडि़त के पत्र के आधार पर खबर

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