: अमर उजाला काम कर रहा था, जागरण और हिंदुस्तान चिलम फूंक रहे थे। खबर न सुनी, न छपी : न अखबारों ने छापा और न ही न्यूज चैनलों ने उठाया : ढाई महीना पहले जन्माष्टमी की रात मंदिर में हुई घटना में 2 की मौत : पूर्व डीजीपी सुलमान सिंह को जांच का जिम्मा दिया, पता नहीं कहां हैं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : वृन्दावन में भले ही हर कोई राधे-राधे या राधे-कृष्ण बोलता हो, लेकिन अब यहां भगदड़-भगदड़ चिल्लाने लगे हैं। तीन महीने के बीच मथुरा के बांकेबिहारी मंदिर में फिर भगदड़ मच गयी। दरअसल, वहां भीड़ अचानक बढ़ गयी, और एक हल्के से ठोकर से कुछ दर्शनार्थियों के कदम डगमगा पड़े। लोग एक-दूसरे पर गिरने-पड़ने लगे, चीख-पुकार मच गयी। इस हादसे में पांच महिलाएं बुरी तरह घायल हो गयी हैं।
कोई ढाई महीना पहले वृंदावन मथुरा के विश्वविख्यात कृष्ण मंदिर के दिन जबर्दस्त बवाल हो गया था। रात थी जन्माष्टमी की। भीड़ जुटी भारी, तो भगदड़ मच गयी। लोगबाग आपस में ही एक-दूसरे पर गिर-पड़ रहे थे। चीख-पुकार से पूरा मंदिर और आसपास का इलाका दहलने लगा। कई घंटों के बाद जब यह भगदड़ थमी, तो पता कि इस हादसे में दो महिलाओं ने दम तोड़ दिया और करीब तीन दर्जन दर्शनार्थी बुरी तरह घायल हो गये।
लेकिन इस ताजा हादसे ने दो बड़े सवाल उठा दिये हैं। दोनों ही सवाल अराजकता और लापरवाही से जुड़े हैं। एक तो यह कि अधिकांश पत्रकारों केवल दलाली पर ही आमादा है। और यह हालत इतनी बुरी हो चुकी है कि पत्रकार अपने दायित्वों पर ही ध्यान नहीं देते हैं। इतना भी होता, तो गनीमत थी। इन पत्रकारों के संस्थानों पर बैठे संपादक जैसे बड़े लोग भी उनकी हरकतों पर भी तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं। जाहिर है कि यह हालत इसलिए ही होती है क्योंकि वे खुद भी चापलूसी और दलाली पर आमादा हो जाते हैं।
आप मथुरा के सभी अखबारों और दिल्ली पर बैठे बड़े चैनलों को ही देख लीजिए। छह नवम्बर-22 की दोपहर को यहां हादसा हुआ, लेकिन अगले दिन केवल अमर उजाला ने ही यह खबर उजागर की, वह भी मोटे हरफों में और बड़े स्पेस में प्रकाशित की। मगर इस खबर को न तो दैनिक जागरण को भनक मिल सकी और न ही हिन्दुस्तान अथवा नवभारत टाइम्स को। अंग्रेजी अखबार भी अनजान रहे। लेकिन जहां-तहां अपना मुंह घुसेड़े चैनली पत्रकारों ने भी इस खबर को तनिक भी तवज्जो नहीं दी।
अब सुनिये प्रशासन की हालत। जन्माष्टमी के हादसे के दौरान डीएम, एसएसपी, सीडीओ और नगर आयुक्त भी मौजूद थे और वे लोग भीड़ का वीडियो भी बना रहे थे। हादसा हो गया तो सरकार भी भौंचक्का हो गयी। अवाम को मलहम लगाया जा सके, इसलिए योगी आदित्यनाथ ने इस घटना की जांच का जिम्मा पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह को अध्यक्ष के तौर पर और मंडलायुक्त को सदस्य के तौर पर थमा दिया। तीस अगस्त को हुए इस हादसे की जांच समिति को आदेश दिया गया कि वे 15 दिन के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को दे दें। लेकिन पता चला है कि सुलखान सिंह और मंडलायुक्त ने अब तक ऐसा नहीं किया।
और नतीजा यह हुआ कि इसी बांकेबिहारी मंदिर में ही हादसे की पुनरावृत्ति हो गयी।
नि:संदेह… सुलखान सिंह अपने पुराने भाई बंधुओं के बचाव पक्ष में ऐन-केन-प्रकारेन किसी क्रेन की प्रतीक्षा में किसी जांचालय में जाम से जाम टकराने में लगे होंगे…🤔🤔😜😜🥰🤪🤪🤣😍😍🤩🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹