: असल सवाल छोड़, सिर्फ मूर्खतापूर्ण साबित हुई मायावती और अखिलेश की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस : सतीशचंद्र मिश्रा ने केवल चुनिंदा पत्रकारों को ही दी सवाल पूछने की इजाजत : सुभाष मिश्रा ने लॉलीपॉप सवाल उछाला तो प्रांशु मिश्रा हवाई सवाल तक ही उचक पाये :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अराजकताओं के कींचड़ में भले ही कमल की फसल लहलला रही हो लेकिन राजनीतिक कींचड़ ने बसपा के हाथी और सपा की साइकिल को गहरे दलदल तक फंसा दिया है। इससे निजात के लिए सपा और बसपा एक-दूसरे के साथ गलबहियां करने में मजबूर हो गए हैं। नतीजा निकला लंगड़े सनिच्चर महाराज वाले दिन शनिवार को, जगह थी ताज होटल का क्रिस्टल हॉल, और वहां खचाखच भरे थे पत्रकार। मगर सवाल उठाने की इजाजत केवल तीन पत्रकारों को ही मिली, और इनमें से कम से कम दो पत्रकारों द्वारा उठाये गये सवाल बिलकुल प्रायोजित होने के चलते पूरे नंग-धड़ंग ही दिख रहे थे।
कहने की जरूरत नहीं कि सपा के यादव और मुसलमान तथा बसपा के दलितों की जन्मना जानी-दुश्मनी है। लेकिन ताजा राजनीतिक हालात ने इन दोनों की ही हालत खासी पतली हो चुकी है। अब यह अपनी लंगोट और दामन बचाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए ऐसे-ऐसे अनुबंध-कांट्रेक्ट माने-पाले जा रहे हैं, जिसकी कल्पना कभी किसी ने की भी नहीं थी। खैर, आज यह दोनों दल आपसी रंजिशें भुला कर एकजुट करने की कोशिशों में हैं। इसी के तहत इन दोनों में गंठबंधन हुआ और आम आदमी को समझाने के लिए दोनों ने ही संयुक्त प्रेस वार्ता आयोजित की। मगर इस पहली कवायद में ही मूर्खतापूर्ण फैसलों ने पूरा मामला ही बेपर्दा कर डाला। बसपा के ब्राह्मण-कार्ड सतीश चंद्र मिश्रा ने ब्राह्मण हींग का जो झोंका लगाने की कोशिश की वह न केवल मूर्खतापूर्ण साबित हो गयी, बल्कि यह रणनीति प्रायोजित पत्रकारों के बचकानी सवालों से ही सवालों में फंस गई। छीछालेदर जो हुई, वह तो दीगर है।
सबसे पहले बोली थीं मायावती। उसके बाद अखिलेश यादव ने प्रवचन दिया। लेकिन दोनों ही लोगों ने अपने ही बयानों से कई गहरे सवाल उठा दिए थे। जिसका स्वाभाविक कवायद का जिम्मा पत्रकारों को मूल सवालों के साथ उठाना चाहिए लेकिन पत्रकार चूंकि पूरी तरह प्रायोजित था, या फिर सिर से चार इंच छोटे भी थे, इसलिए तीखे सवाले सिरे से ही इस आयोजन से हटा दिये गये। यह प्रायोजित पत्रकार मूल सवाल ही नहीं सोच पाए, जो भी मुंह में आया सवालनुमा कूड़ा जुबान में आया, फेंक दिया।
बसपा के नेता सतीश मिश्रा ने सबसे पहले एबीपी चैनल के पंकज झा को सवाल पूछने के लिए आमंत्रित किया। झा ने सीधे पूछा कि मायावती कहां से चुनाव लड़ेंगीं। यह सवाल माकूल था लेकिन मायावती तैयारी से नहीं थीं इसलिए गड़बड़ा गईं और फिर हिचकिचाते हुए जवाब दिया कि इस बारे में आप सब लोगों को बाद में बता दिया जाएगा। इसी बीच नेटवर्क 18 प्रांशु मिश्रा ने अपनी पूंछ फटकायी और एक बेहद बचकाना सवाल उठाया कि यह गठबंधन क्या 2019 के बाद भी जारी रहेगा। जाहिर है इस बकवादी प्रश्न का कोई जवाब ही नहीं था। इस प्रश्न को एक बच्चा भी समझ सकता है, जिसे दिल और दिमाग के उत्पत्ति क्षेत्र का पता हो। हैरत की बात थी कि प्रांशु मिश्र को इतना ही नहीं पता था कि राजनीति दिल से उमड़ी भावनाओं से नहीं, दिमाग में भरे षडयंत्रों की फैक्ट्री होती है।
अगला सवाल पूछने के लिए सतीश मिश्रा ने सुभाष मिश्रा को आमंत्रित किया। सुभाष बोले कि आपका प्रस्तावित प्रधानमंत्री कौन होगा। यह अपने आप में एक निहायत मूर्खतापूर्ण प्रश्न था। कारण यह कि यूपी में ये दोनों ही दल फिलहाल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं और उसको परस्पर पायदान की तरह संभालने में तब्दील करने के लिए गठबंधन के लिए मजबूर हो गए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री का प्रश्न ही न केवल बचकाना था बल्कि संपूर्ण मूर्खतापूर्ण भी था।
इस बचकाने ही सही, लेकिन सवाल पर अखिलेश ने जवाब दिया कि सबको पता है कि प्रधानमंत्री के पद के लिए उनकी पसंद कौन है। जाहिर है कि अखिलेश ने यह जवाब देकर अनेक शंकाओं की फसल को लहलहा दिया। किसी की समझ में ही नहीं आया कि अखिलेश का संकेत मायावती को लेकर है या फिर राहुल गांधी गांधी को लेकर। कारण यह कि उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस के कस-बल ढीले पड़े हों लेकिन बाकी कई प्रदेशों में कांग्रेस का प्रदर्शन मजबूत रहा है।
कहने की जरूरत नहीं कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कि केवल जिन तीन पत्रकारों को सवाल पूछने के लिए सतीश मिश्रा ने आमंत्रित किया उनमें सुभाष मिश्रा बसपा के सतीश मिश्र के खासे करीबी हैं। ऐसी हालत में चर्चाएं शुरू हो गई हैं यह सवाल सतीश मिश्रा का ही था, जिसे सतीश मिश्र ने सुभाष मिश्रा के माध्यम से उछलवाया था। लेकिन सतीश मिश्रा की इस मामले में गच्चा खा जाने की वजह यह रही कि प्रायोजित सवाल होने के बावजूद सुभाष मिश्रा अपने सवाल को किसी मजबूत धारदार अस्त्र-शस्त्र की तरह पेश नहीं कर पाये।