पादनी ? संपादक जी ! यह पादनी क्‍या होता है ?

बिटिया खबर

: यह पादनी है या संपादक की गैस : भाषा में नित नये प्रयोग करने में लंगोट तक खोल लेते हैं दैनिक जागरण के पाणिनी संपादक : हजरतगंज के प्रिंस कॉम्‍पलेक्‍स में भड़की थी जबर्दस्‍त आग : हौजपाइप चलाया गया, लेकिन पादनी नहीं निकला :

कुमार सौवीर

लखनऊ : पाठकों को सलाह है कि वे दैनिक जागरण बांचने का संकल्‍प ले लें और दैनिक जागरण के संपादक का चरण-चांपने का अभियान छेड़ दें। दावा है कि कुछ ही महीनों में पाठकों को कोई नौकरी या रोजगार भले ही न मिल पाये, लेकिन आपकी बुद्धि-मस्तिष्‍क की शब्‍द-संग्रह में भाषा के ऐसे-ऐसे शब्‍द जरूर धंस जाएंगे, जिससे आपको भविष पूरी तरह चौपट हो जाएगा।
आजकल दैनिक जागरण अपने अखबार में ऐसे-ऐसे नये प्रयोग नित-नित करने में जुटा हुआ है, पता चला है कि जिसे सुनते ही भाषा के महर्षि पाणिनी ने भी आत्‍महत्‍या करने का मूड बना लिया है। पाणिनी को समझ में ही नहीं रहा है कि भाषा, उसकी लिपि और उसकी उत्‍पत्ति का मूल क्षेत्र या केंद्र है कहां। ऐसा ही एक शब्‍द पणिनी जी विद्जनों की सभा से कूद कर किसी अनजान स्‍थान की ओर भाग गये बताया जाता है। शब्‍द है पादनी। अब यह पानी कोई क्रिया है, पाद का अर्थ चरण है जिसको सिंधी भाषा में देखा जाना चाहिए। या फिर यह अपानवायु निकलने की गैस है जो अच्‍छे-अच्‍छे सुगंधित माहौल को बमपुलिस या शौचालय का प्रतीक होता है।
इस नये चमत्‍कृत कर देने वाले इस शब्‍द पादनी का इस्‍तेमाल किया है दैनिक जागरण ने, जब हजरतगंज के आज सुबह प्रिंस कॉम्प्लेक्स में भड़की आग के दौरान। यहां साहू सिनेमा से सटी इस इमारत को आग ने अचानक जकड़ लिया। आग चौथी मंजिल पर हुई। बताते हैं कि इस मंजिल में कुछ बड़े कोचिंग भी चल रहे हैं और इसमें यहां कई बच्चों के फंस जाने की खबर है।
सभी अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है, लेकिन दैनिक जागरण चूंकि उतावली का तेल लगा कर ही अखबार छापने की आपाधापी में रहता है, इसलिए उसने मोटे फांड में इस खबर की हेडिंग मेंे लिख दिया कि: – हौजपाइप चलाने के बावजूद नहीं निकला पादनी।

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