नभाटा के संपादक ! तुमसे ऐसी उम्‍मीद न थी

बिटिया खबर

: एक विज्ञापन को प्राइवेट-प्रैक्टिस के लिए खबर के तौर पर छाप डाला : जिसे पहले पन्‍ने पर बॉटम-लीड पर छापा है, वह एक निहायत फर्जी कवायद : आखिर कौन है एसोसियेशन ऑफ इंटरनेशनल डॉक्‍टर्स नाम की दूकान : रोजाना अनगिनत बधाई संदेश भेजते हैं विधायक से प्रधानमंत्री तक : ऐसी बेहूदगी, फफकने लगी है पराड़कर की आत्‍मा :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक गंभीर, जिम्‍मेदार और प्रयोगशील संपादक हैं मोहम्‍मद नदीम। बैनेट कोलमैन वाले टाइम्‍स ग्रुप का लखनऊ वाला नवभारत टाइम्‍स है उनका अखबार। हालांकि इस अखबार में नयी शैली में लेखन को परोसना तो सुधीर मिश्र ने शुरू किया था, उनकी खासियत, सिफत और अंदाज भी है। यही वजह है कि सुधीर मिश्र के बाद स्‍थानीय संपादक बने नदीम लखनऊ में सबसे कम उम्र के पत्रकार होने के बावजूद सबसे दायित्‍वपूर्ण माने जाते हैं। लेकिन पिछले समय से नवभारत टाइम्‍स का तेवर ही बदल गया लगता है। पहले तो खबरों को लेकर लापरवाहियां दिखने लगीं, लेकिन इधर अखबार की हेडिंग पर भी संपादक ने झाड़ू मारना शुरू कर दिया। सम्‍पत्ति को सम्‍पती के तौर पर पेश करना का एक अभिनव प्रयोग उन्‍होंने पाणिनी जी के तौर पर करना शुरू कर दिया है। हैरत की बात है कि ऐसी अक्षम्‍य अपराधों के बावजूद यह अखबार बाकी अन्‍य अखबारों की ही तरह खेद-प्रकाश प्रकाशित करने की आवश्‍यकता ही नहीं करता है।
मगर तो 25 जुलाई के अंक में तो इस अखबार ने तो अब तक के पत्रकारीय प्रतिमानों को कुछ इस तरह चकनाचूर कर दिया, कि पराड़कर जी भी देखते तो आंसुओं की बाढ़ लगा देते। दरअसल, नदीम ने एक खबर को छापा मारा है। हेडिंग है:- बुजुर्गों की सेवा पर पीएम ने थपथपाई पीठ। यह इतना ही होता, तो कोई बात नहीं। दरअसल, नदीम ने यह खबर अपने इस अंक के पहले पन्‍ने पर तीसरी सबसे बड़ी खबर के तौर पर छापा है।
सच बात तो यही है कि पत्रकारिता के मूल्‍यों के हिसाब से देखें तो यह नदीम ने एक निहायत बकवास छाप दी है। केवल एक व्‍यक्ति की वाहवाही के उद्देश्‍य के लिए तैयार तैयार की गयी इस बकवास में किसी तथ्‍य का उद्घाटन ही नहीं होता है। खबर के केंद्र में एक अनजान सा शख्‍स डॉक्‍टर अभिषेक शुक्‍ला को समाज और देश-विदेश में स्‍थापित एक महान कर्मयोगी के तौर पर पेश किया गया है। एक पिद्दी सा तर्क दे कर पूरा अखबार ही रंग डाला है। यह अच्‍छी तरह बूझते-जानते हुए कि यह एक धंधेबाज एनजीओ की पब्लिसिटी स्‍टंट है।
हालांकि अखबार पर भी अक्‍सर कुछ मामलों में कुछ सूचनाएं प्रकाशित करने के अनुरोध आते रहते हैं। लेकिन उसका मूल्‍यांकन करने की जिम्‍मेदारी संपादक की ही होती है। पाठकों की चिंता तो छोडि़ये, अपने आप की प्रतिष्‍ठा पर भी खासे संवेदनशील और प्रयत्‍नशील होते हैं संपादक। कहने को तो ऑब्‍लॉइज करने के लिए भीतरी पन्‍नों पर अक्‍सर कुछ न कुछ बकवास तो छपती ही रहती है सभी अखबारों में। लेकिन नवभारत टाइम्‍स ने तो अपने अखबार की सारी प्रतिष्‍ठा की धूल-धूसरित ही नहीं, बल्कि उसे बकवासों के कींचड़ भर गड्ढे धोबी-पाटा मार कर छियोराम-छियोराम कर दिया।
नभाटा ने यह तक देखने की जरूरत नहीं समझी कि इस बकवास के पीछे कोई ठोस तर्क या तथ्‍य भी है या नहीं।

(लखनऊ में अपने प्रचार को लेकर आस्‍था अस्‍पताल ने अपनी छवि बुजुर्गों के लिए केंद्रित करने का दावा किया है। लेकिन कई सूत्र बताते हैं कि आस्‍था का सच इससे काफी अलग और विद्रूप भी है। दावों के मुकाबले जमीनी हकीकत शायद बहुत गंदली है। आम आदमी की आस्‍था पर यह आस्‍था अस्‍पताल कितना टिका रहता है और उस की गतिविधियों और उसके कामकाज के मकसद क्‍या हैं, इसको लेकर दोलत्‍ती अब लगातार अभियान छेड़ने जा रहा है। आप सब में से किसी के पास भी इससे कोई जानकारी हो, तो कृपया dolattitv@gmail.com और kumarsauvir@gmail.com अथवा 9453029126 और 8840991189 पर सम्‍पर्क कर सकते हैं। हम इस बारे में नियमित रूप से आलेख छापने के मूड में हैं :- संपादक )

1 thought on “नभाटा के संपादक ! तुमसे ऐसी उम्‍मीद न थी

  1. आस्था में सभी प्रोफेशनल की तरह चिकित्सा की व्यवस्था है,हर माह में कुछ धनराशि का पैकेज है।

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