वर्दी पर कलंक। महिला से बात करने की तमीज तक नहीं

बिटिया खबर

: सामने महिला पत्रकार है, बागपत की माया त्‍यागी नहीं : महिला पत्रकार को सरेआम बेइज्‍जत कर दिया मेरठ के इस टोपीदार ने : दल्‍लों के झुंड में कैसे पुलिसिंग करते हो, भगवान जाने कैसे : पत्रकारिता का कानून सिखा रहे हैं अखिलेश नारायण सिंह :
दोलत्‍ती संवाददाता
मेरठ : पत्रकारिता पर चाटुकारिता की छौंक से मेरठ के पुलिसवालों की जुबान का स्‍वाद इतना ज्‍यादा चढ़ गया है, कि वे अपनी न कानून-व्‍यवस्‍था का दायित्‍व सम्‍भाल रहे हैं और न अपनी वर्दी का सम्‍मान। दलालों के बीच हेलमेल उन्‍हें पसंद हो गया है कि उन्‍हें अब सक्रिय और सतर्क पत्रकार का पता ही नहीं चल पाता है। होना ही अपराध बन गया है। उगाही, धंधाबाजी और दलाली में बड़े-छोटे की राजनीति, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और पत्रकारिता में गोदी मीडिया और सेक्यूलर मीडिया के गबडचौथे ने लोकल स्तर पर असली और फर्जी की राजनीति की एक नयी धारा बहा डाली है। इन सबके बीच बदनाम है पत्रकारिता और बदरंग है पुलिस की वर्दी।
ताजा मामला मेरठ की एक महिला पत्रकार से जुड़ा है। जो अपना खुद का न्‍यूज पोर्टल के साथ ही साथ एक साप्ताहिक अखबार चलाती है। इस महिला पत्रकार को एक चाटुकार फोटोग्राफर की शह पर जनपद में तैनात पीपीएस अधिकारी ने बीच सड़क पर बदसलूकी करते हुए अपमानित किया। घटना तब घटी जब यह महिला पत्रकार कोरोना महामारी के बीच अपनी जान जोखिम में डालकर न्यूज कवरेज करने के लिए निकली थी। मामला सामने आने के महिला पत्रकार के समर्थन में आए अन्य पत्रकारों ने अधिकारी के बर्ताव पर रोष प्रकट किया। वही महिला पत्रकार ने अपमान करने वाले अधिकारी और फोटोग्राफर के खिलाफ एसएसपी को शिकायत पत्र देकर कार्यवाही की मांग की है।
दरअसल मेरठ से एक हिन्दी साप्ताहिक समाचारपत्र विकास की जरूरत प्रकाशित होता है। इस समाचार पत्र की संपादिका प्रियंका त्रिपाठी है। प्रियंका त्रिपाठी 12 मई को दोपहर लगभग 12:30 बजे अपनी स्कूटी पर सवार होकर मेरठ मेडिकल के लिए न्यूज कवरेज करने निकली थी। तेजगढ़ी चौराहे पर खड़े एसपी सिटी अखिलेश नारायण सिंह ने उन्हे रोकते हुए बाहर निकलने का कारण पूछा। प्रियंका ने खुद को पत्रकार बताते हुए अपना परिचय पत्र दिखाया। लेकिन इस एसपी ने बिना परिचय पत्र देखे ही पास में खड़े एक अखबार के अनाम से फोटोग्राफर मदन मोर्या से संपादिका प्रियंका त्रिपाठी का परिचय पूछा। चूंकि मदन मोर्या इस वहम में रहता है कि वो विश्व के नंबर वन अखबार का छायाकार है और प्रियंका एक साप्ताहिक अखबार की संपादिका थी, लिहाजा उसने प्रियंका को पत्रकार मानने से ही इंकार कर दिया और फर्जी कहकर अपमानित कर किया।
फोटोग्राफर के संपादिका को फर्जी बताते ही एसपी साहब भी अपने होश खो बैठे और उन्होने भी अपने पद की गरीमा भूलते हुए बीच सड़क पर महिला पत्रकार से बदसलूकी की और सबके सामने अपमानित किया। प्रियंका ने जब एसपी के शब्दो का विरोध किया उन्होने अखबार का रजिस्ट्रेशन तक निरस्त करने की धमकी दे डाली। महिला पत्रकार को हेकड़ी दिखाने के चक्कर में यह टोपीक्रेट ये भी भूल बैठा कि उन्हे तो अखबार का रजिस्ट्रेशन निरस्त का अधिकार है ही नही। शर्मनाक बात तो यह है कि एक अखबार की संपादिका की तस्‍दीक करने के जिला सूचना अधिकारी से पूछने के बजाय इस पुलिसवाले ने एक दो-टके के आदमी से पूछतांछ शुरू कर प्रियंका त्रिपाठी को सरेआम अपमानित किया।
आपको बता दें कि मदन मोर्या दैनिक जागरण अखबार में काफी समय से फोटो ग्राफर है और शायद उसे अपने आप को विश्व का सर्वोत्तम फोटोग्राफर समझने की बिमारी है। युवा पत्रकारों के साथ वो ठीक बर्ताव नही करता है। नए पत्रकरों से उनका परिचय पत्र मांगना‚उनकी सैलरी पूछना‚पद पूछना और फिर उन्हे या उनके संस्थान को फर्जी बताकर अपमानित करना उसकी आदत में शुमार है। शायद वो ये चाहता है कि उसके अखबर के अलावा किसी और अखबार या चैनल का पत्रकार फिल्ड़ में नजर न आए। इतना ही नहीं, जागरण में मदन को वेतन मिलता है या नहीं, लेकिन जिले में उसका सिटी हलचल नाम से एक लोकल चैनल चलता है। इसी लोकल चैनल का पत्रकार है मोहसीन खान। ये महाशय भी अपने आपको बड़ा पत्रकार समझते हैं। शहर के छोटे-बड़े अधिकारियों के साथ उठना बैठना जो है। अधिकारी भी इन्हे अच्छी तरह जानते है। क्योकि अधिकांश खबरे ये अधिकारियों पक्ष में ही चलाते है।

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