बलिया में दो-कौड़ी का डीएम: कर दिया “शूट द मैसेंजर”

बिटिया खबर

: अफसरों की लापरवाही या षडयंत्र का खुलासा कर अपना दायित्‍व निभाया पत्रकार ने : डीएम, पुलिस और एसटीएफ ने पत्रकार को ही जेल में क्‍यों ठूंसा : एक दिन पहले ही छाप दिया था 12वीं के बोर्ड परीक्षा का प्रश्‍नपत्र : अपनी पूंछ फंसती देख अफसरों और पुलिस ने पत्रकार पर ही निशाना साध डाला :

कुमार सौवीर

लखनऊ : आप अपराधी को नहीं पकड़ सकते हैं, तो मुखबिर को ही मौत के घाट उतार कर बवाल खत्‍म कर दीजिए। हिसाब-किताब बराबर।
यह है यूपी में अपराधियों की करतूतों का खुलासा करने वालों के प्रति योगी-सरकार के नौकरशाहों का यह नया तरीका। बलिया में 12वीं की परीक्षा के अंग्रेजी पेपर लीक मामले में योगी सरकार ने यही किया है। बलिया के जिला अधिकारी इंद्र विक्रम सिंह और एसटीएफ के अफसरों ने इस मामले में समाज में सच उजागर करने पर पत्रकार ने जब बेबाक कोशिश की, तो डीएम और एसटीएफ ने पत्रकारों पर ही निशाना साध कर उनको जेल में ठूंस दिया। पारदर्शी तरीके से परीक्षा कराने की जिम्मेदारी तो यह अफसरों कत्‍तई नहीं कर पाये, लेकिन अपनी अक्षम्‍य लापरवाहियों का ठीकरा पत्रकारों के माथे पर जरूर फोड़ दिया। इस मामले में अमर उजाला का उत्‍तरदायित्‍व, संवेदनशीलता और अपने कर्मचारियों के प्रति उसकी नैतिकता पर भी गंभीर सवाल उठने लगे हैं। ।
राज्य के 24 जिलों में अंग्रेजी की परीक्षा रद्द हो चुकी है, जिसकी अगली तिथि 13 अप्रैल को होगी। पेपर लीक मामले में बलिया के जिला विद्यालय निरीक्षक डीआईओएस ब्रजेश कुमार मिश्र को निलंबित करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। अमर उजाला में लीक पेपर छापने वाले स्थानीय पत्रकार अजित कुमार ओझा और उनके तीन अन्य साथियों को भी हिरासत में ले लिया गया। आरोप है कि बलिया जिला प्रशासन सारा आरोप मीडिया के माथे पर मढ़कर अपना कलंक मिटा देना चाहता है। पुलिस के साथ मामले की जांच एसटीएफ कर रही है। डीआईओएस समेत करीब 17 लोगों को हिरासत में लिया गया है।
दरअसल, बोर्ड की परीक्षाओं में अपराधियों और अफसरों की सांठगांठ काफी पुरानी है। इस बार भी हुआ, जब 12वीं परीक्षा में होने वाला अंग्रेजी का पेपर लीक हो गया। इस परीक्षा 30 मार्च-22 को होने वाली थी। एक दिन पहले यानी 29 मार्च की सुबह जब लोगों ने अखबार में यह होने वाला परीक्षा का प्रारूप छपा हुआ देखा, तो हड़कंप मच गया। परीक्षा अपराह्न दो बजे से होनी थी। अंग्रेजी विषय के जो पर्चे लीक हुए थे उनका सीरियल 316 ईडी और 316 ईआई था। इन्हीं पर्चों से यूपी के 24 जिलों में परीक्षाएं होनी थी। “अमर उजाला” ने एक दिन पहले 29 मार्च 2022 को भी हाईस्कूल की संस्कृत की परीक्षा के प्रश्न-पत्र की सॉल्व कॉपी प्रकाशित की थी जो एक दिन पहले ही वायरल हो गई थी। आजमगढ़ मंडल के शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक ने जांच में संस्कृत के प्रश्न-पत्र के आउट होने की बात स्वीकार किया था। यह मामला अभी निपटा भी नहीं कि इंटरमीडिएट की अंग्रेजी के पेपर की भी सॉल्व कॉपी वायरल होने लगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया पर परीक्षा का प्रश्न पत्र और हल किया गया पेपर एक दिन पहले ही वायरल हो गया था, जिसे बाजार में पांच-पांच सौ रुपये में बेचा जा रहा था।
अमर उजाला ने लगातार दो दिनों तक लीक पेपर प्रकाशित किया तो बलिया जिला प्रशासन इतना झुंझला गया कि अखबार के वरिष्ठ पत्रकार अजित कुमार ओझा को उनके दफ्तर से अपराधियों की तरह उठवा लिया। अजित कुमार ओझा के मुताबिक “बलिया के डीएम इंद्र विक्रम सिंह और डीआईओएस ब्रजेश कुमार मिश्र ने 30 मार्च की सुबह उनसे संपर्क किया। दोनों अफसरों ने प्रकाशित खबर के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी और लीक पेपर व्हाट्सएप पर पेपर भेजने के लिए आग्रह किया। हमने दोनों अफसरों को लीक पेपर सुबह ही भेज दिया था। अचानक दोपहर में परीक्षा निरस्त होते ही पुलिस अमर उजाला के दफ्तर में पहुंची और हमें उठाकर कोतवाली ले आई। हमने पत्रकारीय धर्म को निभाया है। हमें और हमारे साथियों को सिर्फ झुझलाहट में निशाना बनाया जा रहा है, ताकि वो अफसर बेदाग साबित हो जाएं, जिनके ऊपर नकलविहीन परीक्षा कराने की जिम्मेदारी थी। ”
अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार के मुताबिक, “प्रश्नपत्र लीक मामले में करीब डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की जा रही है। कुछ अभियुक्तों को जेल भेजा जा चुका है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि वही पेपर लीक हुआ था जिसकी परीक्षा अगले दिन होनी थी। उनके निर्देश पर बुधवार को ही एसटीएफ ने जांच शुरू कर दी है। एसटीएफ और जिला पुलिस को निर्देशित किया है कि जो भी दोषी हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। अगर आवश्यक हुआ, तो रासुका के तहत कार्रवाई की जाएगी। ” एडीजी प्रशांत कुमार का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में सख्त रूख अपनाया है। लेकिन सवाल तो यह है कि आखिर बड़े और जिम्‍मेदार अफसरों की संलिप्‍तता के बिना ऐसा आपराधिक षडयंत्र कैसे हुआ। और फिर अजीत ओझा ने तो अफसरों की लापरवाही या षडयंत्र का खुलासा कर अपने पत्रकारीय दायित्‍व को पूरा किया था, ऐसी हालत में डीएम, पुलिस और एसटीएफ ने पत्रकार को ही क्‍यों अपना निशाना बना दिया।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस हिरासत में पत्रकार अजित कुमार ओझा से वायरल पेपर के सिलसिले में करीब तीन घंटे तक पूछताछ की गई। आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने अजित के साथ हाथापाई और धक्का-मुक्की की। इससे बलिया जिले के पत्रकार तमतमा गए और नारेबाजी करते हुए थाना कोतवाली पहुंचे। पत्रकार अजित कुमार ओझा को यहीं पुलिस हिरासत में रखा गया था। 30 मई की दोपहर में बड़ी संख्या में पत्रकारों ने कोतवाली थाने में धरना शुरू कर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार अजित ओझा को हिरासत में लेने के ख़िलाफ़ पत्रकारों का कोतवाली परिसर में धरना चल ही रहा है कि अमर उजाला के नगर प्रतिनिधि दिग्विजय सिंह और मनोज कुमार गुप्ता उर्फ झब्बू को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया। शुरु में पुलिस पत्रकारों की गिरफ्तारी से इनकार करती रही, लेकिन बाद में अपना रंग दिखाते हुए अजित के खिलाफ संगीन धाराओं में रपट दर्ज कर ली। बाद में डीआईओएस ब्रजेश कुमार मिश्र और पत्रकार अजित को बलिया जिला अस्पताल ले जाया गया। मेडिकल परीक्षण के बाद एसटीएफ इन्हें पूछताछ के लिए किसी अज्ञात स्थान पर ले गई।
बलिया कोतवाली का घेराव करने वाले पत्रकारों ने कोतवाली थाने में कई घंटे तक धरना दिया। इस दौरान पत्रकारों ने प्रशासन के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे भी लगाए और रोष व्यक्त किया। पत्रकारों की गिरफ्तारी के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वाले पत्रकार अखिलानंद तिवारी, मकसूदन सिंह, जुगनू सिंह, तिलक कुमार, इमरान खान, मुशीर जैदी, सदानंदन उपाध्याय, राणा प्रताप सिंह, अभिषेक मिश्र, दीपक तिवारी, एनडी राय, धर्मेंद्र तिवारी डुलडुल ने कहा कि योगी राज में सच उजागर करना अब बड़ा गुनाह हो गया है। बलिया जिला प्रशासन यूपी बोर्ड परीक्षा की शुचिता को बचाने में नाकाम हुआ तो ठीकरा पत्रकारों के माथे पर फोड़ना शुरू कर दिया। परीक्षा की शुचिता पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों का दमन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। योगी सरकार को चाहिए कि वो पहले उन अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई अमल में लाएं जो अपना दामन पाक साफ दिखाने के लिए सच उजागर करने वाले चौथे खंभे का गला घोंटना चाहते हैं। इस मामले में पत्रकारों को मुल्जिम बनाया जाना न्यायसंगत नहीं है। पुलिस और प्रशासन की यह कार्रवाई यूपी बोर्ड की ढुलमुल व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। निर्दोष पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा फर्जी और गिरफ्तारी अवैध है। यह लोकतंत्र के चौथे खंभे को कुचलने का कुत्सित प्रयास है।

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