वकीलों का अड्डा: मजा लूटैं गाजी मियां, धक्का सहे मुजावर

बिटिया खबर

: हे न्‍याय की देवी, तुम न्‍याय करो न : झगड़ा करें बड़के कानूनची, भूखा मरै चपरासी : एक बड़े पदाधिकारी एक महिला वकील की कमर पकड़ कर भोजन का आह्वान कर रहे थे, तो गरीब चपरासी का क्‍या लेना-देना : घसीट-घसीट कर कूटे गये एक पदाधिकारी, खामोश इसलिए हैं कि बहुत टल्‍ली थे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हाईकोर्ट परिसर को तो आप जैसे बड़े वकील ही न्‍याय का मंदिर कहते हैं। लेकिन यह भी मानते, चिल्‍लाते और आंदोलन करते हैं कि हाईकोर्ट में अराजकता है, काहिलियत है और अंधकार-मय भविष्‍य है, तो उसमें एक बेचारे चपरासी का क्‍या दोष हो सकता है ? आखिर उसको क्‍यों कमरे बंद में धमकाया आपने और उसकी तनख्‍वाह क्‍यों काट ली गयी है ?
डिस्‍ट्रेस-फंड का लाभ आम वकील तक नहीं पहुंच रहा है, और इसके बावजूद बड़े वकीलों के लिए नयी कुर्सियों की खरीद की जा रही है और उसके लिए वकीलों में असंतोष फैलता जा रहा है। लेकिन ऐसी हालत होने के बावजूद अवध बार एसोसियेशन परिसर में लेडीज कैबिन में तैनात एक चपरासी का क्‍या अपराध है ? उसको वेतन दिया जाना तो न्‍याय-सम्‍मत है या नहीं ?
अगर न्‍यायिक और अराजकता से त्रस्‍त है हाईकोर्ट, तो इसमें एक चपरासी का क्‍या लेना-देना ? आखिर उसको क्‍यों कमरे बंद में प्रताडि़त किया गया, उसको मां और बहन की गंदी गालियां क्‍यों चिपकायीं गयीं और घंटों तक धमकाया क्‍यों गया कि उसकी तनख्‍वाह काट ली जाएगी ? वेतन अब तक नहीं दिया गया उसको। इसका जिम्‍मा कौन लेगा और कब देगा ?
मूर्ख-दिवस की रात यदि हाईकोर्ट के कतिपय महान अधिवक्‍तागण लोग हाईकोर्ट परिसर में दारू पीकर हंगामा करते हैं, तो यह उनका जन्‍मसिद्ध अधिकार तो हो सकता है। लेकिन इस दारू, हंगामा, मारपीट के कर्मकाण्‍ड में एक चपरासी को क्‍यों कोल्‍हू में पेरा जा रहा है ? उसको वेतन क्‍यों नहीं दिया जा रहा है ?
कोई संयुक्‍त सचिव जैसा पदाधिकारी अगर दारू पीकर टल्‍ली हो गया है, और मौजूद लोग अगर कार में धक्‍का मार कर उसके घर पहुंचा रहे हैं तो उसमें एक निरीह चपरासी क्‍या लेना-देना ? उसको तो वेतन मिलना ही चाहिए या नहीं ?
इस पार्टी में अध्‍यक्ष भले ही मौजूद न रहे हों, लेकिन कई-कई बड़े-बड़े पदाधिकारी तो मौजूद थे ही, जिन्‍होंने पहली अप्रैल को अपनी शाम से रात तक अपनी तबियत रंगीन कर डाली। लेकिन उसमें एक मजबूर चपरासी क्‍या दोष। उसको तो दिहाड़ी मिलनी ही चाहिए है न ?
अगर बार एसोसियेशन के मध्‍य-उपाध्‍यक्ष की कोई बात संयुक्‍त सचिव को बर्दाश्‍त नहीं हो पा रही है तो भूखा क्‍यों मरै चपरासी ? उसको आत्‍महत्‍या की ओर क्‍यों धक्‍का मारा जा रहा है ?
एक वकील बताते हैं कि उस पार्टी के दौरान एक बड़े पदाधिकारी जी श्रीमान एक महिला वकील को उसकी कमर पकड़ कर भोजन की थाली का आह्वान दे रहे थे, तो उसमें उस गरीब चपरासी का क्‍या लेना-देना हो सकता है लरनेड एडवोकेट जी ?
मंदिर तो मंदिर ही होता है, चाहे वह न्‍याय का मंदिर हो या फिर राममंदिर का। ऐसी हालत में ऐसे किसी मंदिर परिसर में दारू ले जाना, दारू पीकर हंगामा करना, नशे में एक-दूसरे को गंदी गालियां देकर उनकी जमकर छियोराम-छियोराम वाली पिटाई करना अगर आपकी महानतम संस्‍कृति है तो आपको मुबारक है, शुभकामनाएं हैं आपको। लेकिन उस झंझट में किसी चपरासी का क्‍या दोष, क्‍या लेना-देना हो सकता है ? उस निरीह चपरासी का वेतन क्‍यों नहीं दे रहे हैं आप, क्‍यों उसकी तन्‍ख्‍वाह लटकाये हैं और धमकियां भी दे रहे हैं कि उसको नौकरी से निकाल दियाजाएगा ?
कोई डिनर-पार्टी अगर बार एसोसियेशन की ओर से आयोजित करने के बाद किसी की प्रतिष्‍ठा को डि-नर करने-कराने का षडयंत्र करने की कोशिश-साजिशें हो रही है तो उसमें वह बेचारा चपरासी क्‍या करे ? उसको और उसके आश्रित परिवार को भी तो भूख लगती ही होगी, और भूख मिटाने के लिए उसे रोटी की जरूरत पड़ती है। लेकिन अगर उसको वेतन ही नहीं दिया जाएगा, तो वह तो भूखों नही मर जाएगा ?
दोलत्‍ती संपादक ने अवध बार एसोसियेशन के अध्‍यक्ष राकेश चौधरी और सचिव अमरेंद्रनाथ त्रिपाठी को उपरोक्‍त कथित घटनाओं पर उनका पक्ष जानने के लिए वाट्सऐप किया, लेकिन इन दोनों ही महानुभावों ने उस घटना पर अपना पक्ष सामने रखने की जरूरत नहीं समझी, तो कोई बात नहीं। लेकिन अपने ऐसे पक्ष रखने अथवा नहीं रखने का कोई रिश्‍ता उस चपरासी पर तो आयद नहीं किया जा सकता है। ऐसी हालत होने के बावजूद उस चपरासी का वेतन भुगतान नहीं करके एक गैरकानूनी कृत्‍य क्‍यों किया जा रहा है ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *