एक दिव्‍य भेंट डॉ अंजू सिंह से च्‍यवनप्राश चौ-बप्‍पा की

बिटिया खबर

: हवेली से फूटी जनसेवा की गंगोत्री, स्वयं सहायता समूह द्वारा हजारों गरीब महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर : समाज के लिए पगडंडियों पर धूल फांकती हैं डॉ अंजू सिंह : च्‍यवनप्राश यानी भावार्थ भी हमेशा निर्मल और निष्‍पाप डार्बिन वाला चौ-बप्‍पा ही बना रहने की कसम खाये हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कई बरसों बाद अचानक ही हमारे घर आ गयीं डॉक्‍टर अंजू सिंह जी। उन्‍होंने अपने आने की न कोई खबर दिया और न ही कोई संदेशा। अंदेशा का तो कोई मतलब ही नहीं हो सकता था। इसके पहले कि मेरी बड़ी बिटिया बकुल उनका खैर-मकदम कर पाती, हमारे नाती भावार्थ यानी च्‍यवनप्राश जी ने खुद ही दरवाजा खोल कर उनकी आगवानी कर डाली। क्षणांश में ही उनके बीच उन दोनों नाती और नानी का रिश्‍ता पुख्‍ता हो गया। चढ़ गये डॉक्‍टर सिंह की गोद में। और फिर जैसे कई जन्‍मों की कसर पूरी करने पर आमादा हों। पहले तो दीदा फाड़-फाड़ कर पहचानने की कोशिश, फिर उनको टटोल-टटोल कर जन्‍मान्‍तरों में आये बदलावों को पढ़ने की जिज्ञासाएं, फिर गोद और पीठ पर चढ़ कर उनसे दुलराने की सतत जुगत। हमारे च्‍यवनप्राश जी चौ-बप्‍पा परम्‍परा यानी डार्बिन की थ्‍योरी पर विश्‍वास ही नहीं, बल्कि उसको अमली जामा पहनने पर प्राण-प्रण से आमादा रहते हैं, इसलिए पायजामा या निक्‍कर पहनने की परम्‍परा को अब तक पूरी तरह तज चुके रहते हैं। वैसे भी तो शरीर और घर-समाज में भी वस्‍त्रों की बहुतायत मौजूदगी एक मूर्खतापूर्ण आवरण ही तो होता है, जिसका मकसद हम एक-दूसरे को धोखा देने में लगे रहते हैं। और फिर आडम्‍बर की बहुतायत हमेशा चिढ़ाने का प्रयास होता है, चाहे वह फेशियल हो, वस्‍त्र हो या फिर दिखावे की बाकी सरंजाम। यह तथ्‍य मैंने च्‍यवनप्राश जी यानी भावार्थ को पूरी तरह समझाने में जुटा रहता हूं, लेकिन सच बात तो यही है कि इस मर्म को वे पहले ही समझ चुके हैं। अपने हाव-भाव से में हमेशा यही कहने की कोशिश करते रहते हैं कि, अभी हमेशा निर्मल और निष्‍पाप डार्बिन वाला चौ-बप्‍पा ही बना रहने दीजिए।
यह एक लाजवाब भेंट थी इन दोनों के बीच। डॉक्‍टर सिंह बोल रही थीं, जबकि च्‍यवनप्राश जी उनको समझा रहे थे। च्‍यवनप्राश यानी भावार्थ जी अपनी बात को सिलसिलेवार उन्‍हें समझाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि डॉ अंजू सिंह जी असमर्थ होती जा रही थीं कि वे अपनी बात को च्‍यवनप्राश जी के भावार्थ को कैसे पहुंचायें। तो तरीका इन दोनों ने ही नया तजबीज कर लिया। डॉक्‍टर साहब भावार्थ के साथ खेलने लगीं, जबकि च्‍यवनप्राश जी इस जुगत में जुट गये कि वह अपनी पहली बार मिलीं इस नानी को अपनी ही तरह कैसे अपने ही तरह बड़ा महसूस करा सकें और कैसे यह नानी जी कैसे खुद को उनके चक्‍कर में एक छोटी सी बन जाएं। बड़ा झंझट-प्राय संकट था, लेकिन यह दोनों ही लोग करीब दो घंटों तक इसी प्रयास में जुटे रहे।

यह किस्‍सा है पिछले 25 मार्च का। एक सम्‍मान समारोह में आयी थीं डॉक्‍टर अंजू सिंह जी। अपने सामाजिक प्रयासों को लेकर इस समारोह में डॉक्‍टर सिंह को सम्‍मानित भी किया गया था। खैरियत पूछी, तो मैंने बेलौस बता दिया कि भैंसाकुण्‍ड श्‍मशान-घाट पर जाते-जाते वापस लौट आया हूं।
बोलीं:- लेकिन मुझे तो खबर देनी ही चाहिए थी !
मैंने जवाब दिया:- बता भी देता तो क्‍या हो जाता, सिवाय इसके कि आपके अपने हजारों कष्‍टों में मेरा यह कष्‍ट और बढ़ जाता। जब हमारा फाइनल पारगमन हो जाएगा, तब बता दूंगा।
यह सुन कर डॉक्‍टर सिंह दुखी हुईं, लेकिन जल्‍दी ही च्‍यवनप्राश जी से बतियाने, खिलाने में बिजी हो गयीं। कुछ इस तरह, कि मानो मेरी दुर्घटना एक हंसी-ठट्ठा भर ही था। करीब डेढ़ या दो घंटों तक डॉक्‍टर साहब भावार्थ के साथ खेलती गयीं। बकुल भी उसी रैली में उल्‍लास मनाती रहीं, जबकि मैं दर्शक भाव में मौजूद रहा। चाय बनाया बकुल ने, और उसके बाद डॉक्‍टर अंजू सिंह साहब यह गयीं, वो गयीं की शैली में अपनी गाड़ी में जौनपुर की ओर प्रस्‍थान गयीं।
आज हम इक्कीसवीं सदी में पहुंच गये हैं। पूरा विश्व महिला सशक्तिकरण की बात कर रहा है। जबकि हम उससे भी कदम आगे बढ़ कर सनातन परम्‍परा के तहत नवरात्र पर्व मनाते रहते हैं, जिसका मकसद स्त्रियों के विभिन्‍न नौ रूपों को व्‍याख्‍यायित करना होता है। ऐसे में हमारा भी फर्ज है कि उन महिलाओं को वो दर्जा दिया है जिसके लिये उन्होंने ना सिर्फ अपने परिवार को समय देने के साथ साथ समाज के लिये भी कुछ कर दिखाया। इन्हीं में से एक है डाक्‍टर अंजू सिंह। कहने को तो वे एक जमींदार परिवार से जुड़ी हैं, पर उनकी समाजसेवा व महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की ललक ने ना सिर्फ उन्हें यहां की हवेली से निकलकर राजमार्गों पर चलने पर प्रेरित कर दिया। बल्कि उन्होंने हजारों गरीब महिलाओं व दलितों का उत्थान कर उन्हें आत्मनिर्भर बना दिया जिसके चलते आज उनके परिवार में दो वक्त की रोटी के साथ साथ समाज में सर उठाकर चलने की आदत बना दी है।
जौनपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर सिंगरामऊ जमींदारी में राजा हरपाल सिंह की बहू के रूप में डॉ अंजू सिंह बिहार के छपरा के एक प्रतिष्ठित परिवार से सन-84 में यहां पहुंची तो उन्होंने कुछ सपने संजो रखे थे। उनको दुख है कि भारत में जब महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिये तमाम कार्यक्रम चलाये जाते हैं, पर न जाने क्यों आज भी महिलाओं को वो मुकाम नहीं मिल पाता जिसकी वे हकदार होती हैं। ऐसे में उन्होंने अपनी हवेली से ही जनसेवा की गंगोत्री बहाने का फैसला किया और निकल पड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिये आज उनके प्रयास से ना सिर्फ सिंगरामऊ में बल्कि पूर्वांचल के हजारों महिलाओं ने उनके साथ मिलकर ना सिर्फ समाज में अपना मुकाम हासिल किया, बल्कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिये उनकी मुहिम सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिये उनकी मुहिम में शामिल हो गयीं।
पहली जनवरी-62 को जन्मी डॉ अंजू सिंह के पिता श्री विरेन्द्र नारायण सिंह बिहार के छपरा में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और बार एसोसियेशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। हालांकि वे छपरा जिले की रहने वाली हैं पर उनका खानदान पटना में ही रहता है। चार बहनों व एक भाई में तीसरे नम्बर की वाली डॉ अंजू सिंह जब सिंगरामऊ पहुंची तो उन्होंने अपने गांव की उन गरीब महिलाओं का दर्द देखा जिन्हें ना सिर्फ काम काज से रोका जाता था बल्कि शिक्षा से वंचित रखा जाता था। पर इन महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिये उन्होंने हवेली को छोड़ा और निकल पड़ी गांव की पगडंडियों पर धूल फांकने के लिये। यही वजह है कि यहां शासन का नहीं बल्कि सामाजिक आर्थिक प्रयास की चमक गांव के लोगों में देखी जा सकती है।
डॉ अंजू सिंह ने बताया कि उनके पिता श्री विरेन्द्र नारायण सिंह ने उन्हें जो संस्कार दिये वे उसे आज पूरे समाज को बांटने के लिये निकल पड़ी है और इसमें लोगों का बहुत बड़ा सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कहा कि उनका भाई लंदन में आर्थोसर्जन हैं और तीन बहने अपने ससुरालों में खुशी के साथ जीवन बीता रही हैं। डॉ अंजू सिंह ने अपनी पढ़ाई मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से की, जबकि श्रीलंका से उन्होंने मेडिसिन में डाक्टरेट की उपाधि हासिल की। पूर्वांचल विश्‍वविद्यालय डॉ अंजू सिंह को कई सम्मान मिल चुके हैं। उनका कहना है महिलाओं को आत्मनिर्भर करने के लिये समाज को मिलकर काम करना होगा। तभी हम भ्रूण हत्या दहेज व सामाजिक बुराईयों को दूर कर सकेंगें। जिसके चलते आज भी महिलाओं को नीचा दिखाया जाता है जरूरत है उन महिलाओं को आत्मनिर्भर करने की जिनके पास कुछ कर गुजरने की तमन्ना है पर उनके परिवार वाले उन्हें रोकते है।
डॉ अंजू सिंह ठाकुरबाड़ी महिला विकास समिति के जरिये ना सिर्फ गरीबों की मदद करती है बल्कि गांव के बेसहारा व बीमार लोगों का इलाज करने के लिये हमेशा तैयार रहती हैं। यहीं वजह है कि आस पास के लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं। देखा जाय तो आज के इस युग में जिस तरह से राजनीति के सहारे सत्ता के कुर्सी पर पहुंचे लोग गांव के पैदल चलने से गुरेज करते है वहीं हवेली की शानोशौकत व आराम को छोड़कर रानी डॉ अंजू सिंह समाज की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रही है ऐसे में उनसे लोगों से सबक लेना चाहिये जो लोग सत्ता के गलियारों में बैठक हजारों करोड़ों रूपया जनता का अपने ऐसों आराम में बरबाद कर देते है।

(संशोधनों के साथ राष्‍ट्रीय सहारा से भी इनपुट साभार)

2 thoughts on “एक दिव्‍य भेंट डॉ अंजू सिंह से च्‍यवनप्राश चौ-बप्‍पा की

  1. आप लिखते रहिये, हम पढ़ते रहेंगे।…. आप अच्छा लिखते हैं
    सादर प्रणाम

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