कमल-गट्टों पर उगी टोंटी से बहते सोने के सिक्‍कों को जारी रखने की अपील एक साजिश है

बिटिया खबर
: नोटबंदी से गरीबों और महिलाओं की जेब बर्बादी के बाद धनतेरस पर यह दहकती चोट, आखिर आप चाहते क्‍या हैं : कमल के फूल और कमल-गट्टों पर उगी टोंटियों से तेजी से बरसते स्‍वर्ण-सिक्‍के केवल मृगतृष्‍णा भर ही हैं : पूर्व नौकरशाह देवेंद्र दुबे की नजर में बीजेपी के आईटी-सेल से पैदा हुआ यह वीडियो देखिये :

कुमार सौवीर
लखनऊ : मेरे मैसेंजर पर अब तक एक हजार से ज्‍यादा संदेश आ चुके हैं। इसमें एक तो अंकित-संदेश है, जबकि उसके साथ ही जीआईएफ यानी शॉर्ट-वीडियो मैसेज भी है। जीआईएफ में एक टोंटी से तेजी से बहते-टपकते स्‍वर्ण-मुद्राओं की बारिश दिखायी जा रही है। जबकि अंकित-संदेश में कहा गया है कि:- इस नल को बंद न करें। उन लोगों के साथ इसे साझा करें, जिन्हें आप जीवन भर खुश देखना चाहते हैं!
तो दोस्‍तों। अब यहां दो कंटीले सवाल उग रहे हैं।
पहला तो यह कि इस वीडियो में स्‍वर्ण-मुद्राओं की तेजी से टपकने की प्रक्रिया का अर्थ क्‍या है। और दूसरा यह है कि इसे टोंटी से निरंतर बहते पानी जैसे सोने के सिक्‍कों को क्‍यों न रोका जाए। यह संदेश कई अबूझ और अनर्थकारी सवालों की चाशनी से लपेटा और भीगा हुआ है। ऐसी हालत में इस संदेश को समझने के लिए इस संदेश की चाशनी को समझना अनिवार्य होगा।
यह स्‍वर्ण-सिक्‍कों के प्रवाह का नजारा है, जिसे हर कीमत पर रोकने की गुजारिश की जा रही है। तो फिर यह रोका-टोकी कौन कर रहा है। बारिश करने वाले का मकसद क्‍या है। वह यह बारिश क्‍यों कर रहा है, और उसको न रोकने वाले का मन्‍तव्‍य क्‍या है। इस सवाल के जवाब को देने के पहले अगर आप उस सवाल के कारक-कर्ता के मन्‍तव्‍य को समझने की कोशिश करेंगे, तो आपको असली जवाब मिल जाएगा। यह टोंटी है किसकी। कौन सा व्‍यापारिक अथवा ओद्योगिक विकास चल रहा है, और अगर यह विकास अगर चल भी रहा है तो उसे रोकने की कोशिश कौन कर रहा है, जिसे नहीं रोकने की अपील की जा रही है।
तो पहले तो इस सवाल को हल करने के पहले उस सवाल को समझने की कोशिश कीजिए कि प्रश्‍न-कर्ता के प्रश्‍न करने का अंतिम लक्ष्‍य क्‍या है। जाहिर है कि यह स्‍वर्ण-वर्षा सेंत-मेंत में नहीं बहायी जा रही है। और इससे समझने से पहले इस सवाल का जवाब अपने गिरहबान में झांक कर खोजिएगा जरूर, कि इसका मर्म क्‍या है। इस सवाल को पूछने या इशारे-सांकेतिक भाव में प्रदर्शित करने की इस कवायद का असल मकसद क्‍या है। अपने दिल पर हाथ रख कर पूछियेगा जरूर कि क्‍या आप किसी को दस रूपये का नोट भी बस यूं ही क्‍यों दे सकते हैं। जवाब होगा कि नहीं, हर्गिज नहीं। फिर यह संदेश भेजने वाले ने स्‍वर्ण-वर्षा करने वाला यह संदेश क्‍यों भेज दिया।
जी हां, यही तो पूंजीवाद की रणनीति है, जिसे परिवर्तन यानी विप्‍लव की जरूरत महसूस करने वालों की निगाह में यह साजिश और साफ-साफ वर्ग-विद्वेष की साजिश माना जा रहा है।
अब आइये कि इस वीडियो में क्‍या कहा-समझाया जा रहा है। वीडियो में यह स्‍वर्णिम आभा वाली टोंटी है, जो लगातार तेजी से सोने के सिक्‍के उगल रही है। जो और टोंटी है, वह एक पत्‍ते पर उगी हुई है और यह पत्‍ता कमल का पत्‍ता है। साफ-साफ समझाने के लिए इस वीडियो में पत्‍ते की टहनी से जुड़े एक बड़े फूल का भी चित्र दिखाया गया है, जो कमल का खिला हुआ फूल है। अब यह बताने की जरूरत नहीं कि कमल का फूल ही भारतीय जनता पार्टी का चुनाव निशान है। यानी इस फूल और उसके आनुषांगिक-टहनियों-पत्तियों पर ही उगी हुई है यह स्‍वर्ण-सिक्‍के उगलती टोंटी।
धनतेरस के दिन यह जीआईएफ यानी शॉर्ट-वीडियो मैसेज वाला वीडियो वायरल हुआ है, जिसका मकसद पूंजी की भरमार की चादर फैला देना ही है, ताकि बाजार में खुशी और आनंद ही फैला-पसरा रहे।
तो अब सवाल यह है कि खुशी क्या है। वह आनंद है या सुविधा।
आइये, इस पर भी आपकी सुविधा के हिसाब से संक्षेप अथवा विस्‍तार से बात कर ली जाए। आपको खूब पता है कि आनंद उठाया जाता है, जबकि सुविधा बनाई जाती है। आनंद फ्री-ऑफ-कॉस्ट होता है, जबकि सुविधा खरीदी जाती है।
आनंद तो दिल और भावनाओं को खोल कर पाया जाता है, और असीमित होता है, जबकि सुविधा आपकी आर्थिक औकात यानी जेब की मोटाई या क्षमता से तय हो सकती है। लेकिन कुछ भी हो, जो भी प्राप्ति होगी, उसकी समग्र गुणवत्‍ता का मूल्‍यांकन उसकी आय और व्‍यय पर ही निर्भर होगा। इलाहाबाद मंडल के कमिश्‍नर रह चुके वरिष्‍ठ आईएएस अफसर देवेंद्र दुबे से करीब तीन दशक पहले मेरी जो बातचीत हुई थी, उसका जिक्र मैं आप सब के सामने किये दे रहा हूं। दुबे जी ने एक दीपावली के अवसर पर ही कहा था कि किसी भी व्‍यक्ति की आय अगर उसकी क्षमता और ईमानदारी के अनुरूप होती है, तो वह धन अर्थ-देवी या यानी लक्ष्‍मी-मां का रूप होता है। लेकिन वही धन जब नैतिकता, क्षमता और आवश्‍यकता से अलग होकर कमाया जाता है, तो उसका रूप हर कीमत पर वेश्‍या और तदनुसार अनर्थकारी ही होता है। चाहे वह व्‍यक्तिगत चरित्र पर उसका प्रभाव पड़े अथवा समाज पर, मगर होता है भयावह।
तो अब आप बताइये, कि आपको कमल के पत्‍ते पर उगी सुनहरी टोंटी से उगलते सोने के सिक्‍कों की काल्‍पनिक-आभासी बारिश रोकनी है अथवा यथार्थ-वास्‍तविक जीवन की दुश्‍वारियों से निपटने के लिए जमीनी धर्म-युद्ध छेड़ना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *