: नाग-पंचमी और स्त्री-विमुक्तिकरण : महा शिव-पर्व के अवसर पर भयावह परम्परा : यौन-उत्पीड़न और सम्पत्ति हड़पने की साजिशें, श्वसुर-देवर लूटते हैं धन और देह भी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : नाग-पंचमी एक ऐसा सामाजिक-सह-आध्यात्मिक अवसर है जो मनुष्य में अन्य प्राणियों के साथ सह-अस्तित्व की भावनाएं प्रवाहित करता है। इसमें करुणा, दया, संवेदना, भावुकता, दायित्वभाव के साथ ही साथ मनुष्येत्तर प्राणियों के प्रति मानवता की भावना पुख्ता करता है। लखनऊ गले में शिव का कण्ठहार बने सांप से इसके धार्मिक पक्ष को भी खूब समझा जा सकता है। ठीक उसी तरह शिव के साथ स्त्री के साथ अविभक्त भाव से ही अर्द्धनारीश्वर का मर्म समझाया जाता है।
दिन भर संपेरे नाग दर्शन करने के लिए घूमते दिखे। सांपों को दूध पिलाने के लिए होड़ लगी रही। मंदिरों-शिवालों में भीड़ उमड़ी रही। रुद्राभिषेक के साथ संकल्प लिए गए। भक्तों ने सांपों को गले में कण्ठहार लटका कर अपने साहस का प्रदर्शन किया और सेल्फी लेकर सोशल मीडिया में अपनी वाहवाही लूटी।
लेकिन इस पुनीत अवसर पर बच्चों को गुड़िया पीटने के लिए सड़क, चौराहे और गली-मोहल्ले में प्रोत्साहित करना समझ में नहीं आता है।
कभी कन्या भ्रूण हत्या, कभी स्त्री के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार। भोजन और पोषण में भेदभाव। व्यवहार के क्षेत्र में हेय भाव। शिक्षा की दुनिया में उपेक्षाभाव। कभी बलात्कार, कभी लैंगिक अपराध, कार्यालयों में खुली या छुपी अथवा संकेतों में होने वाले यौन-उत्पीड़न, तो कभी स्त्री के अधिकारों पर अतिक्रमण बहुत व्यथित कर देता है। घरेलू महिला के साथ शारीरिक प्रताड़ना तो सामान्य होती है। घर के प्रति उसके द्वारा किये जाने वाले योगदान को उसकी अकर्मण्यता मानी जाती है, और उसके ऐसे योगदान का कोई भी आर्थिक मूल्यांकन नहीं किया जाता है।
इतना ही नहीं, परिवार में संपत्ति के बंटवारे पर भेदभाव और ससुराल में संपत्ति पर लूट और जायदाद को लेकर भयावह त्रासद भाव तथा नपुंसक पति, वैधव्य अथवा बुढापा और अशक्तता पर उसे बुढ़िया या खूसट राँड़ जैसे संबोधन बहुत डरावने ही नहीं, समाज के भविष्य को बहुत विद्रूप रंग से पोतने जैसे कृत्य किसी नृशंस हत्या से कम नहीं होते हैं। पति के नपुंसक होने पर परिवार श्वसुर और देवर ही नहीं, बल्कि परिवार और पड़ोस के दीगर लोग भी भूखे भेडि़यों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते हैं। और अगर महिला ने ऐसे यौन-आमंत्रणों को खारिज कर दिया, तो उसको परिवार में उसके पारिवारिक अधिकार ही नहीं, बल्कि परिवार की सम्पत्ति से बेदखल करने की हरचंद साजिशें बुननी कर दी जाती हैं।
मेरा मानना है कि परिवार में होने वाले ऐसे भयावह अन्यायपूर्ण व्यवहार और नाग-पंचमी के दिन गुडि़या पीटने की परम्परा में ऐसी हिंसक प्रवृत्तियां किसी प्रतीक से कम नहीं होती हैं।
एक दारुण स्थिति तो और भी है। नाग को पौरुष का प्रतीक माना जाता है, जबकि नागिन को कुटिलता और धोखे का पर्याय मान लिया जाता है।
आप को ऐसे हिंसक कृत्य का कोई जस्टिफिकेशन कभी समझ आया हो, तो हमें भी बताइयेगा जरूर।