: उज्जैन में आत्मसमर्पण से ही तय हो गया था कि हर हाल में मारा जाएगा विकास : अराजकता में माहिर गोताखार यूपी पुलिस की नजर में ज्यूडिसरी की अहमियत किसी बेहूदा संगठन से ज्यादा नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : हैदराबाद कांड में आंध्र प्रदेश पुलिस ने झूठे एनकाउंटर की जो चादर बुनी थी, विकास दुबे के मामले में यूपी एसटीएफ ने उसी हैदराबाद-कांड की रिप्लिका बुन डाली। पूरे देश को गुरुवार शाम तक यह अहसास हो चुका था कि यूपी पुलिस के हाथों तक पहुंचने के बाद कुख्यात विकास दुबे के पास सिर्फ चंद पल-क्षण ही बचे हैं, और आज शुक्रवार की भोर तक पुलिस की एसटीएफ टोली ने उन सारी आशंकाओं को सच साबित कर दिया। इसके साथ ही यह भी साबित कर दिया कि यूपी की पुलिस और खास कर एसटीएफ का कार्यक्षेत्र न्यायपालिका को धोखा देकर खुद को पुलिस के हरावल शातिर किलर-गैंग के तौर पर तैयार करना ही है। यह भी तय हो गया कि अराजकता में माहिर गोताखार यूपी पुलिस की नजर में ज्यूडिसरी अहमियत में किसी बेहूदा संगठन से ज्यादा नहीं है। इतना ही नहीं, यह भी साबित हो गया कि एसटीएफ जब, जहां, जितने भी लोगों को चाहेगी, मौत के घाट उतार सकती है, और सरकार हमेशा पुलिस की ऐसी कातिल हरकत पर मोहर बैक-डेट में सहमति देती ही रहेगी।
उज्जैन के महाकाल मंदिर में आत्मसमर्पण करने के बाद ही तय हो गया था कि यूपी की “बहादुर पुलिस” विकास दुबे को मार डालेगी। दोलत्ती सूत्रों ने अपने इस दावे को पूरी ताकत के साथ समझाया था। एक सूत्र का कहना था कि एमपी में आत्मसमर्पण का मतलब यह नहीं होगा कि उसकी जान बख्श दी गयी। विकास को तो अब महाकाल भी नहीं बचा सकेगा। महाकाल को झांसा देने के लिए यूपी की पुलिस कमर कसे बैठी है। वजह है उसके दिल में छिपे सारे राज, जो पूरी राजनीति के दिग्गज, मंझोले व दोगले चरित्रों के साथ ही साथ ढेरों प्रशासनिक और पुलिस अफसरों को सरेआम नंगा कर सकते थे। और इसी वजह से इस तिकड़ी ने विकास दुबे को मौत की नींद सुला देने का जाल बुन दिया।
नतीजा यह हुआ कि विकास दुबे को लेकर उज्जैन से निकली पुलिस की एसटीएफ ने चंद घंटों के बाद ही पुलिस ने विकास को अपनी वही पुरानी घिसी-पिटी शैली में विकास दुबे को मौत के घाट उतार दिया। बताया कि वह विकास को उज्जैन से लेकर आ रही थी कि कार पलट गयी। वही पुराना तरीका कि विकास ने पुलिसवालों का असलहा छीन कर भागने की कोशिश तो पुलिस ने आत्मरक्षा में विकास को मौके पर ही ढेर कर दिया। शर्मनाक तो यह है कि कानपुर हादसे के बाद पुलिसवालों ने विकास-गिरोह के किसी अपराधी को पकड़ने के बजाय उसके गैंग के 6 बदमाशों को मौत के घाट उतार कर मामला दाखिल-खारिज कर दिया। अब सवाल फिर सिर उठाने लगे हैं कि पुलिस का मतलब क्या वाकई हत्यारों की टोली की भूमिका में आ गयी है। लब्बो-लुआब यह कि विवेक दुबे एमपी के सुदूर उज्जैन के महाकाल मंदिर तक तो सुरक्षित पहुंच गया था, लेकिन यूपी की चंगुल में आते ही यूपी पुलिस ने उसको मार डाला।
एक विश्वस्त सूत्र ने दोलत्ती संवाददाता को बताया कि अगर उज्जैन से लेकर कानपुर तक की यात्रा में पुलिस को मौका नहीं मिल पाया, तो भी यूपी पुलिस विकास को छोड़ेगी नहीं। कचेहरी में उसे तलब करते वक्त भी उसे मारा जा सकता है। और यह भी मुमकिन नहीं हो पाया, तो विकास दुबे की हालत बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की जैसी ही हो जाएगी।
जाहिर है कि ऐसी हालत में विकास दुबे को तो मरना ही था। हर कीमत पर मरना था।
हां, शर्म की बात जरूर है कि उसे बचाने का जिम्मा सरकार, प्रशासन और पुलिस का था। विकास तो दुर्दान्त अपराधी था, लेकिन सरकार, प्रशासन और पुलिस तो अपराधी नहीं थी। शर्म तो इसी बात पर है कि अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न सरकार ने किया, न प्रशासन ने किया, और न ही पुलिस ने।
पुलिस ने तो न्यायपालिका को भी ठेंगे पर रख दिया था। हकीकत से कोसों दूर जिस तरह की कहानी यूपी पुलिस ने विकास दुबे को मार डालने के लिए तैयार की है, उससे साफ दिख रहा है कि यूपी पुलिस को निगाह में न्यायपालिका केवल खंखार कर थूकने लायक ही है।
यकीन मानिये, यह सब कुछ इतिहास के पन्नों में दर्ज किया जाएगा।