: बेहूदा डांस करते नजर आ रहे हैं बाजार और बदलते सामाजिक मूल्य :
प्रोफेसर अमिताभ
नई दिल्ली : कुछ बरस पहले ‘शानदार’ फिल्म आई। नायक सहनायिका के छज्जे के नीचे था। शानदार डांस करते हुए हीरो डिमांड करता है-‘ गुलाबो, जरा इतर गिरा दो’। बरसों बाद बाद एक और फिल्म आयी है-लव आजकल। फिल्म के अंत में नायक फिर छज्जे के नीचे खड़ा है-खामोश। हीरोइन गायब है। बाजार और बदलते सामाजिक मूल्य बेहूदा डांस करते नजर आ रहे हैं।
स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर इम्तियाज अली उन चंद सिने चितेरों में शामिल हैं जो बरसों से बदलते बाजार में असल इश्क तलाश रहे हैं। अपने ही अंदाज में। कभी हाईवे में कभी लव आजकल वन मे तो अब लव आजकल-2020 में। पर अब वक्त ‘कूल डूड’ की तरह आडी में भागा जा रहा है। फिल्म की टैलेंटेड हीरोइन जोई (सोहा अली खान) के लिए सब कुछ ‘क्विक’ है। कमिटमेंट करियर पर ब्रेक है। पर फिल्म के नायक (कार्तिक आर्यन) की तरह शायद इम्तियाज की उम्मीद बाकी है कि प्यार अब भी दो और दो चार से कुछ ज्यादा है। वो उस नायिका के पूरी तरह लौटने की उम्मीद में हैं, जिसे डरा हुआ परिवार डरा रहा है और उलझी हुई ख्वाहिश उलझा रही है।
लव के इस आज के अलग इसके बीते कल की कहानी भी बयां होती चलती है। एक टूटे हुए पुल की तरह दोनों वक्तों से जुड़ा रेस्टोरेंट मैनेजर रणदीप हुड्डा पुराने प्यार की किस्सागोई करता है। ऐसा वक्त जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां सब कुछ गुलाबी था। नायक छत की रेलिंग पर खड़ा होकर आमिर खान के गाने गाता था। पुराने किलों में अपने लव से मिलने जाता था। डेढ़ हड्डी के शरीर में सलमान दिखना और घर से भागने का क्रेज था। पर समाज का पैशन प्यार पर कोरोना की तरह अफवाहें फैलाना था।
शहर वह अमरीश पुरी था, जिसके चलते बहुत कुछ टूट जाता था। उम्मीदें, रिश्ते भी टूटते थे। सो काल्ड रियलिस्टिक उस दौर में भी थे, पर प्यार को कुरबान करने के बरसों बाद वो पर्स में उसकी तस्वीर देखकर रोते थे।
फिल्म में नये वक्त के रंग हैं पर उनसे आगे ले जाकर वो किरदारों को ब्लैक एंड वाइट में ले जाती है। उन्मुक्त जीवन है, नशा है पर फिल्म झटके देकर इसको भी हिरन कर देती है। डाॅयलाग्स क्रिस्पी हैं, कुछ चुभते हैं, कुछ मुस्कुराहट भी लाते हैं। एक जगह नायिका बास से कहती है-आजकल करियर के साथ डेट कर रही हैं। हर वक्त अवलेबल तो रहता है।
हाईवे के अंत में हिमालय था, इस फिल्म में भी आखिर में वह एक किरदार है। खूबसूरत हिमालय, शायद असल उंचाई, आध्यात्मिकता और ठंडी हवाओं की तरह रोम-रोम में बस जाने की इसकी ताकत को बयां करने के लिए हिमालय से बड़ा बिंब मुमकिन भी नहीं। फिल्म में प्यार का कोई एक नहीं अनेक अंजाम है। मिलना जरूरी है, मिलने के लिए नहीं। एक जगह हारा हुआ नायक कहता है-उसे खो देना उतनी बड़ी बात नहीं, पर उसे खोकर मैंने खुद को खो दिया। जो बन सकता था, वो बन न सका।
इम्तियाज के नारी पात्र ताकतवर होते हैं, सोहा पर जोई का किरदार फबा है, पर लव आजकल ने मेल करेक्टर को असल नायक बना कर पेश किया है, और उनकी संवेदना को भी पहुत करीने से पेश किया है। सोशल कंसर्न से जुड़ी उसकी संवेदना पर कभी नायिका फिदा होती है तो कभी ठहाका लगाती है, पर आखिरकार…