प्रतिभागियों की लॉटरी निकालने वाले उप्र लोकसेवा आयोग पर शनि की साढ़े-साती

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: पिछले  पांच साल में बद से बदतर हो गया उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग : एक दौर में एक से एक नायाब पीसीएस व पीपीएस अफसर चुनकर देता था आयोग, अब विश्वसनीयता ध्वस्त : भाजपा ने सरकार बनते ही भर्तियों में गड़बड़ी की जांच का था आश्वासन भी कोरा निकला :

मेरी बिटिया संवाददाता

लखनऊ : उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग। इसी आयोग के माध्यम से प्रदेश स्तर की सारी बड़ी भर्तीयां करी जाती हैं। इसी आयोग को जिम्मा दिया गया है की वो हर साल सम्मिलित प्रवर अधीनस्थ सेवा परीक्षा यानि की पीसीएस परीक्षा कराये जिसके तहत पीसीएस, पीपीएस, एआरटीओ, असिसटेंट कमिश्नर सेल्स टैक्स आदि जैसे पदों पर लोग चयनित होते हैं। इसके अलावा राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग सेवाओं की भर्ती भी यही आयोग कराता है जिससे पीडब्लूडी, सिंचाईं आदि मालदार विभागों के इंजीनियर चयनित होते हैं। परंतु बीते पांच सालों में इस आयोग की छवि पे एसा दाग लगा की एक भी भर्ती एसी नही हुई जिसको प्रतियोगी छात्रो ने कोर्ट में चैलेंज ना किया हो। नौबत तो यहां तक आयी कि आयोग में अनिल यादव नाम के एक एसे अध्यक्ष ऐसे भी आये जिन पर 302 का मुकदमा चल रहा था परंतु तत्कालीन अखिलेश सरकार ने छात्रों के भारी विरोध के बावजूद उन पर कोई कार्यवाही नही की और अंतत: अनिल यादव को हाईकोर्ट ने एक क्रंतिकारी फैसला देकर अपने पद से हटा दिया।

जहां एक तरफ अनिल यादव को इस बात का भी श्रेय दिया जाता है की उन्होंने आयोग की लचर परीक्षा प्रणाली में सुधार किया और लगातार तीन साल 2013,2014 व 2015 की पीसीएस परीक्षाओं को रिकौर्ड समय में पूरा कराया पर इन्ही अनिल यादव के कार्यकाल की भर्तीया ही सर्वाधिक विवादित रहीं। इन्हीं के दौरान लोक सेवा आयोग पर एक खास जाति के लोगों की मनमानी भर्ती का आरोप भी लगा और इसी मुद्दे पर भाजपा के नेताओं ने यहां तक की खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार अखिलेश सरकार पर चुनाव के मंच से गंभीर आरोप भी लगाये परंतू अब जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बने तीन महिने बीत चुके हैं तब सरकार ने चुप्पी साध रखी है। रोज़ अफबारों के माध्यम से कोई नई अफवाह आती है और प्रतियोगी छात्रों के बीच खलबली मच जाती है।

ऐसा नही है की सरकार ने लोक सेवा आयोग के संबंध में कोई फैसला नही लिया है परंतू जो फैसला लिया उससे सरकार को कोई बढ़त तो नही मिली अपितु सरकार की किरकिरी जरूरी हुई। सरकार के बनते ही सरकार ने 2013 में जो छात्र उम्र सीमा के पार जा चुके थे उनको सरकार ने दो अतिरिक्त प्रयास देने की घोषणा करी। सरकार का दावा था कि इससे 40 हज़ार छात्रो को फायदा होगा। परंतू जब फार्म भरे गये तब एसे छात्रों की संख्या दो हज़ार से भी कम थी। एसा कहा जा रहा है की ये फैसला सरकार ने इलाहाबाद के कुछ चुनिंदा छात्र नेताओं के दबाव में किया था और इस मांग से अधिकांश छात्रों को काई लेना-देना नही था।

प्रतियोगी छात्रों के नेता अवनीश पांडे, जिन्होंनें पिछ़ले पांच सालों से आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है उन्होने आयोग पर कई आरोप लगाये हैं। आयोग द्वारा एक विशेष जाति को लाभ पहुंचाने के अलावा उन्होंनें आयोग पर भ्रष्टाचार के भी आरोप भी लगाये हैं। पांडे ने आयोग के खिलाफ हाईकोर्ट में कई मुकदमे भी कर रखे हैं जिन पर सुनवाई जारी है। पांडे का ये भी आरोप है की आयोग के तीन सदस्यों के पुत्र/पुत्रीयों ने आयोग की पीसीएस 2016 की परीक्षा दी है परंतू आयोग के उन तीनों सदस्यों ने इसकी जानकारी आयोग को नही दी है जब की एसा करना अनिवार्य था। अवनीश पांडे को हालांकि ये भरोसा है की सरकार जल्द ही आयोग की सीबीआई जांच का आदेश करेगी। उनका कहना है कि शासन ने आयोग से से पिछ़ले पांच सालों की सारी भर्तीयों का ब्यौरा तलब कर लिया है जिससे ये अनुमान लगाया जा रहा है की शासन इस बारे में गंभीरता से मंत्रणा कर रहा है। हालांकि जब इस बारे में हमने लोक सेवा आयोग के सचिव,आइएएस अफसर अटल राय से बातचीत की तो उन्होंने खुलकर तो कुछ नही बताया पर ये ज़रूर कहा की आयोग हर साल ही समस्त भर्तीयों के सारे दस्तावेज़ शासन को भेजता ही है क्यूंकि एसा करना आयोग की कार्यप्रणाली का हिस्सा है और इसमें कोई नई बात नही है परंतू किसी तरह ती जांच के बारे में पूछे जाने पर अटल राय ने कुछ भी कहने से मना कर दिया।

इस पूरे मामले से ये ज़रूर कहा जा सकता है की आयोग की साख पर बट्टा ज़रूर लगा है। जिस आयोग ने किसी ज़माने में मदनमोहन सिंह, देवेंद्र दुबे, दिवाकर त्रिपाठी जैसे नामचीन पीसीएस अफसर चुनकर दिये,आज उसी आयोग द्वारा नायब तहसीलदार जैसे छोटे पद पे भी चुने गये लोगों की भर्ती पर प्रतियोगी छात्र संदेह कर रहे हैं। ऐसे में ये ज़रूरी है की सरकार जल्द से जल्द इस मामले में कुछ बड़े फैसले ले जिससे छात्रों का खोया विश्वास वापस लौट सके।

वैसे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शासन स्तर पर इस मसले पर मंत्रणा चल रही है कि आयोग की जांच किस एजेंसी से कराई जाये-सीबीआई से या किसी अन्य एजेंसी से। सूत्रों का कहना है कि जल्द ही किसी जांच की घोषणा सरकार कर सकती है।

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