सरकारी तालाब बेचना है? गाजीपुर के डीएम सिखा देंगे

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: हाईकोर्ट का हुक्‍म भी फाड़ कर फेंक दिया अफसरों ने, लेखपाल ने बिना अधिकारी के आदेश के कर दिया फर्जी इंदराज : करोड़ों की जमीन कौडि़यों में बेच गया लेखपाल, अफसर अब लेखपाल को बचाने में व्‍यस्‍त : वक्‍फ की जमीन, तहसीलदार से लेकर डीएम तक मालामाल : गाजीपुर के आमघाट पोखरा को बेच डाला राजस्‍व अफसरों ने :

मेरी बिटिया संवाददाता

गाजीपुर : एक तालाब है, तो होगा। इस विशाल तालाब में इतना पानी भरा होता है कि पूरा गाजीपुर शहर की प्‍यास बुझायी जा सकती है, तो होगा। उसमें एक हिस्‍सा सरकारी है और दूसरा वक्‍फ का, तो होगा। तीसरे हिस्‍से में कुछ स्‍थानीय लोग का नाम दर्ज है, तो होगा। अब इन लोगों ने धोखाधड़ी करके अपना ही नहीं, बल्कि सरकारी-वक्‍फ का हिस्‍सा भी दूसरों को थमा दिया, तो दिया होगा। लेखपाल से लेकर तहसीलदार तक ने इस तालाब के कागजों में फर्जी इंट्री कर दी, तो की होगी। वह विशालकाय तालाब अब छोटे से गड्ढे में तब्‍दील होता जा रहा है, तो होगा। इस हालत को रोकने के लिए स्‍थानीय लोग हाईकोर्ट गये, तो गये होंगे। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि असलियत का पता कर तालाब वापस रखा जाए, तो किया होगा। यह आदेश डीएम को दिया गया, तो दिया गया होगा।

यह हालत है गाजीपुर में जमीन से जुड़ी भयावह समस्‍याओं की, लेकिन प्रशासन ऐसे मामले में जुड़े सारे सवालों का जवाब केवल अपने चेहरे से मक्‍खी उड़ाने की शैली में देता है। हालत है कि आमघाट की बड़ी पोखरी लगभग पट चुकी है, शहर से नदी तक अंग्रेजों द्वारा बनाये गये विशाल नाले तक को पाटने की साजिशें पूरी हो चुकी हैं। लेकिन तहसीलदार से लेकर जिलाधिकारी के दफ्तरों पर कोई भी चूं तक नहीं। फाइलें इधर से उधर जा रही हैं, ताकि जल्‍द से जल्‍द इस पूरे पोखरे को पाट कर वहां बसावट की जा सके।

उक्‍त पोखरी मौजा आमघाट शहर, गाजीपुर में स्थित महाल असदुल्‍लाह ऊर्फ अब्‍दुल्‍लाह व महाल जलालुददीन व महाल उमदा बीबी में दर्ज है। जिनका नम्‍बर व रकबा क्रमश: 273/2 रकबा 0.193 हे0 व 273/4 रकबा 0.084 हे0 व 273/2 संख्‍या रकबा 0.148 हे0 कागजाद माल में अंकित है। उक्‍त पोखरी मिल्कियत सरकार की है जो बहुत गहरी रही है तथा पूरे वर्ष पानी भरा रहता था। पोखरी से जलसंरक्षण होने के साथ-साथ उसके पानी का प्रयोग पशु-पक्षी भी करते थे। लेखपाल आदि को रिश्‍वत देकर कुछ भू-माफियाओं ने धन बल का प्रयोग कर उक्‍त पोखरी की नवैयत व नाम परिवर्तन करा लिया तथा बल पूर्वक उन लोगों ने उक्‍त पोखरी को मिटटी से पाट दिया जिससे उसका भौतिक अस्तित्‍व वर्तमान में समाप्‍त हो गया है। उक्‍त पोखरी की भूमि पर कुछ लोगों को वैनामा कराते हुये प्‍लाटिंग का काम भी बलपूर्वक जारी है।

फरेब व जालसाजी करने वालों में बलदाउ जी श्रीवास्‍तव पुत्र स्‍व0 मनबोध लाल, निवासी मुहल्‍ला-सकलेना बाद, थाना कोतवाली, गाजीपुर, ओम प्रकाश सिंह पुत्र रवीन्‍द्र प्रताप सिंह, निवासी मु0 आमघाट, गाजीपुर, धनन्‍जय सिंह पुत्र स्‍व0 मारकण्‍डेय सिंह, रचना सिंह पुत्री धनन्‍जय सिंह, अनिता सिंह पत्‍नी स्‍व0 विनोद सिंह समस्‍त निवासी ग्राम लखन्‍चन्‍दपुर, थाना करण्‍डा, गाजीपुर, शैलेष सिंह पुत्र श्री गणेश सिंह, गीता सिंह पत्‍नी शैलेष सिंह, ग्राम लीलापुर थाना-करण्‍डा, गाजीपुर शामिल हैं।

उपरोक्‍त लोगों द्वारा फरेब व हेराफेरी को समझने के लिए जरा इन तथ्‍यों पर गौर फरमाइये। खतौनी एनजेडए 1406 फसली सम्‍बन्धित मौजा आमघाट, गाजीपुर जो महाल अब्‍दुलला की पोखरी संख्‍या 273/2 एवं महाल जलालुददीन की पोखरी संख्‍या 273/4 एवं महाल उम्‍दा बीबी की पोखरी की आराजी संख्‍या 273/2 संख्‍या के बाबत है। उक्‍त तीनो महाल के उक्‍त नम्‍बरान पोखरी (जलमग्‍न भूमि) के रूप मे  है तथा उक्‍त खतौनी में महाल अब्‍दुल्‍ला के आराजी के मालिकान के रूप नाम फातमा बीबी के खाता खेवट नम्‍बर 4 तथा महाल जलालुददीन की आराजी के मालिकान के रूप में शाहनेमतुल्‍ला खाता खेवट नम्‍बर 1 का नाम तथा महाल उम्‍दा बीबी की आराजी पर मालिकान के रूप में अलल औलाद मुतवल्‍ली अफजाउल्‍लाह आदि खाता खेवट नम्‍बर 1 नाम अंकित है। उक्‍त मिल्कियत सरकार की है। अब्‍दुल्‍ला ऊर्फ असदुल्‍ला व महाल जलालुददीन व महाल उम्‍दा बीबी खाता केवट संख्‍या 1,2,3 व 4 की आराजी मिल्कियत सरकार के नाम अंकित है। उपरोक्‍त किसी भी नम्‍बर पर अफजालुल्‍लाह पुत्र शाह एहसानुल्‍लाह का नाम बतौर स्‍वामी या जमीनदार कभी अंकित नहीं रहा है और न तो वे उसके तलहां मालिक या जमीनदार ही कभी रहे हैं। महज महाल उम्‍दाबीबी की आराजी संख्‍या 273/2 संख्‍या रकबा 0.148 हेक्‍टेयर पर उक्‍त अफजालुल्‍लाह का जो नाम अंकित है वह भी मुतवल्‍ली की हैसियत से है, स्‍वामी अथवा जमीनदार के हैसियत से वह नाम अंकित नहीं है।

उपरोक्‍त तथ्‍य की जानकारी के बावजूद भी उक्‍त बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह ने अपने नाम दिनांक-6,3,1993 को उपरोक्‍त तीनो महाल की आराजियात का एक पटटा बि‍ल्‍कुल फर्जी तौर पर उक्‍त अफजालुल्‍लाह पुत्र शाह एहसानुल्‍लाह निवासी मुहल्‍ला मियांपुरा शहर, गाजीपुर को उसका जमीनदार व मालिक दिखाकर तैयार करा लिया। बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह ने उपरोक्‍त फर्जी पटटा के आधार पर न्‍यायालय  तहसीलदार सदर गाजीपुर में अन्‍तर्गत धारा 34 एल0आर0एक्‍ट 3 अलग-अलग नामांतरण हेतु प्रार्थना पत्र भी दिनांक 11,02,1997 को दिया था।

य‍ह कि उक्‍त नामांतरण वाद की जानकारी होने पर महाल जलालुददीन के मालिक व जमीननदार श्री नेकतुल्‍लाह ने उक्‍त नामांतरण वाद  आपत्ति मय शपथ पत्र दाखिल किया। इसके अलावा उपरोक्‍त शाह अफजालुल्‍लाह पुत्र शाह एहसानुललाह ( जिनके द्वारा उपरोक्‍त तथा कथित पटटा लिखा जाना कहा जाता है) ने खुद भी उक्‍त मुकदमा में आपत्ति मय शपथ पत्र इस आशय का प्रस्‍तुत किया कि उन्‍होने दिनांक 06,03,1993 को उक्‍त बलदाउ जी श्रीवास्‍तव या ओम प्रकाश सिंह के हक मे कोई पटटा इस्‍तमरारी नहीं लिखा है। उक्‍त तथा कथित पटटा बिल्‍कुल फर्जी है।

अफजालुल्‍लाह ने अपनी आपत्ति मय शपथ पत्र में यह स्‍पष्‍ट कर दिया गया था कि उन्‍होने काई पटटा नहीं लिखा लेकिन उसके बावजुद भी एक प्रश्‍न यह भी उठता है कि जब उक्‍त अफजालुल्‍लाह उपरोक्‍त तीनो महालों की आराजियात के जमीनदार या स्‍वामी थे ही नहीं तो उन्‍हें जमीनदार व मालिक दिखाकर दिनांक 6,3,1993 को तैयार कराये गये उपरोक्‍त तथा कथित पटटा को उचित अथवा वैध कैसे माना जा सकता है ? यह कि उपरोक्‍त आपत्तियां प्रस्‍तुत होने के पश्‍चात जब उक्‍त बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह को यह लगा कि उनके हक में नामांतरण का आदेश नहीं हो पायेगा तो उन लोगों ने तत्‍कालीन हल्‍का लेखपाल को अपने नाजायज असर व प्रभाव में करके बिना किसी सक्षम अधिकारी या न्‍यायालय के आदेश के ही उपरोक्‍त आराजियात से सम्‍बन्धित खेसरा सन 1407 फसली के कालम संख्‍या 22 में विल्‍कुल अविधिक तौर पर दिनांक 19,09,1999 में उपरोक्‍त फर्जी पटटा के आधार पर कब्‍जा दिखाकर वतौर मौरूसी कास्‍तकार अपना नाम दर्ज कराने का एक फर्जी इन्‍द्राज दर्ज करा लिया।

और जब उन्‍हें यह लगा कि इससे भी काम नहीं चलेगा तो बाद मे उसी फर्जी इन्‍द्राज में एक दूसरे स्‍याही से एक अन्‍य शब्‍द (विशेषाधिकार प्राप्‍त) भी जोड दिया गया और उसके बाद बिना किसी अधिकार के उपरोक्‍त आराजियात से सम्‍बन्धित खतौनी सन 1407 फसली का पूरा स्‍वरूप ही बदलकर उसपर जमन 9 में उपरोक्‍त बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह का नाम अंकित कर दिया गया जबकि उस दौरान उपरोक्‍त नामांतरण वाद विचाराधीन था और उपरोक्‍त सन्‍दर्भ में किसी भी न्‍यायालय या सक्षम अधिकारी द्वारा कोई आदेश पारित नहीं किया गया था। खेसरा व खतौनी में उपरोक्‍त सारे इन्‍द्राजात विल्‍कुल फर्जी तौर पर बिना किसी अधिकार के तत्‍कालीन हलका लेखपाल ने स्‍वयं ही अंकित कर दिया गया था जिसपर किसी अधिकारी के हस्‍ताक्ष्रर भी नहीं हैं। उक्‍त खेसरा सन 1407 फसली की नकल इस प्रार्थना पत्र के साथ दी जा रही है जो संलग्‍नक 7 है।

उपरोक्‍त कार्यवाही के बाद उक्‍त बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह ने दिनांक 04,09,2002 को उपरोक्‍त नामांतरण वाद को वापस लेने की दरख्‍वासत दे दिया जिसपर न्‍यायालय तहसीलदार सदर, गाजीपुर द्वारा जरिये आदेश दिनांक 17,02,2003 उक्‍त वाद की कार्यवाही समाप्‍त किये जाने का आदेश पारित किया। बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह द्वारा प्रस्‍तुत उक्‍त दरख्‍वास्‍त दिनांक 04,09,2002 की नकल वतौर संलगनक-8 तथा उपरोक्‍त ओदश दिनांक 17,02,2003 की नकल वतौर संलग्‍नक-09 इस प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्‍तुत है।

यह कि उपरोक्‍त खेसरा व खतौनी सन 1407 फसली में अंकित उक्‍त फर्जी इन्‍द्राज का असर यह हुआ कि उसके आधार पर बलदाउ जी श्रीवास्‍तव व ओम प्रकाश सिंह ने उपरोक्‍त शैलेष सिंह व धनन्‍जय सिंह के साथ मिलकर रचना सिंह पुत्री धनन्‍जय सिंह तथा श्रीमती गीता सिंह पत्‍नी शैलेष सिंह व श्रीमती अनिता सिंह पत्‍नी विनोद सिंह के नाम उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण पोखरी की आराजियात का दिनांक 30,10,2007 को एक वैनामा लिखाकर उसकी रजिस्‍ट्री करा दिया और उक्‍त तथा कथित वैनामा के आधार पर कागजाद माल मे उन लोगों ने नामांतरण भी करा लिया।

वैधानिक तौर पर पोखरी की नवैयत न तो बदली जा सकती है और न ही उसक अन्‍तरण्‍या व उसका पटटा ही किया जा सकता है।  उस पोखरी को पाटकर उसकी प्‍लाटिंग करते हुये निर्माण भी किया जा रहा है।

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