राम जन्‍मभूमि आंदोलन शैवों को वैष्‍णवों से जोड़ने का था, हिंसक तो होना ही था

मेरा कोना

: धार्मिक-आध्‍यात्मिक और सांस्‍कृतिक आंदोलन को शैव-विचारधारा ने राजनीतिक अखाड़ा में तब्‍दील कर दिया : वैष्‍णवों और शैवों की विचारधाराओं में ही भारी अन्‍तर्विरोध था, ऐसे में एक-रूपता केवल एकांगी ही सिमट गयी : रामजन्‍मभूमि आंदोलन-चार :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जब आप किसी दूसरे को दोनों हाथों से लपक कर गले लगाते हैं तो उसमें केवल दो ही कारण हो सकते हैं। एक तो आपको दूसरे आत्‍मीय-आध्‍यात्मिक और सांस्‍कृतिक-धार्मिक विचारों का स्‍वागत करना होता है, एक-दूसरे को आदान-प्रदान के धरातल पर बराबर समझना-समझाना होता है। और दूसरा तब जब आपको किसी दूसरे शख्‍स या समुदाय को परस्‍पर किसी रणनीतिक लाभ के लिए जरूरत पड़ती है।

लेकिन इसके विभिन्‍न दूरगामी परिणाम होते हैं। एक में तो आप में स्‍नेह-माधुर्य की अधिकता हो जाती है। कारण यह कि उस समय आप नि:स्‍वार्थ भाव में होते हैं। तब मन किसी आग्रह-दुराग्रह से ग्रसित नहीं होता। सम्‍पूर्ण निर्मलता, हर ओर। हर व्‍यक्ति आपको अपना ही लगता है। और आप ऐसे विश्‍वासी जनों के विशाल समुद्र में विलीन होकर पूरी तरह सुरक्षित हो जाते हैं। जबकि दूसरे भाव में स्‍वार्थ का अतिरेक अपने आप उत्‍पन्‍न हो जाता है। आप रणनीति के तहत दूसरों से मिलते हैं, और उसमें आपकी छिपी ख्‍वाहिशें छिपी होती हैं। कहने को तो आप उसका स्‍वागत करते हैं, लेकिन सच यही होता है कि यह स्‍वागत दिल से नहीं, विभिन्‍न समीकरणों की धुरी पर होता है।

दूसरी बात यह कि ऐसे सम्‍मेलनों के होने के बाद जो मंथन-यात्रा का कारवां निकलता है, उसकी आत्‍मा और उसकी शैली उसमें शामिल आधिपत्‍य यानी कब्‍जाने वाली संस्‍कृति पर ही निर्भर करती है। और खास बात तो यह भी है कि लम्‍बे समय तक विरोधाभास पाले समुदाय जब किसी एक मत पर एकजुट हो भी पाते हैं तो उनमें शामिल और कारवां का आक्रामकता किसी दूसरे पर जरूर निकलता है, जिससे मुक्ति पाने के लिए वे एक-दूसरे को एकजुट होते हैं। ऐसे में वह दोनों धाराएं एक-दूसरे से एकजुट होकर एक तीसरी संस्‍कृति पर हमला करती हैं। समाज की विभिन्‍न इकाइयों में सांस्‍कृतिक युद्ध शुरू हो जाता है, जो अवश्‍यम्‍भावी तौर पर आक्रामक और हिंसक हो जाता है।

यह लेख-श्रंखला धारावाहिक तैयार की जा रही है। प्रतिदिन उसकी एक-एक कड़ी प्रकाशित होगी। इसकी अन्‍य बाकी कडि़यों को देखने-बांचने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

रामजन्‍मभूमि आंदोलन

ठीक उसी तरह, जैसे अयोध्‍या में हुआ।

अच्‍छा-खासा राम मन्दिर था अयोध्‍या में, लेकिन अचानक वह कब जन्‍म भूमि मुक्ति आंदोलन में बदल गया, किसी को पता ही नहीं चला। हजारों-हजार बरसों से मर्यादा पुरूषोत्‍तम की शांत नगरी में लाशों के ढेर लगने शुरू हो गये, हिंसा का दावानल अयोध्‍या से छिटक कर पूरे भारत और आसपास तक सारा सामाजिक ढांचा भस्‍मीभूत करने लगा। धर्म के शीर्षस्‍थ शिखर को राजनीति ने कब्‍जा कर लिया। (क्रमश:)

 


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