पत्रकार और सांप जहरीले, एकसाथ मिले तो पहले पत्रकार को मारो

मेरा कोना

: पत्रकारों के प्रति आम आदमी की इस तरह की लोकोक्तियों में सत्‍यता बहुत कम है, जबकि गुस्‍सा बेहिसाब : सवाल यह है कि हम इतना चिंतित क्‍यों हैं। बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से आय : आओ, मेरी चड्ढी टटोल कर मुझे नंगा करो : पत्रकारिता में नंगा अवधूत- दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सामान्‍य तौर पर तो लोग यही कहते हैं कि पत्रकार और सांप अगर एकसाथ मिल जाए, तो पहले पत्रकार को मारो। वजह यह कि सांप विषधर जरूर है, लेकिन उसके मुंह में बहुत कम ही जहर होता है। जबकि पत्रकार में तो असीमित विष होता है। वह काट ले तो लहर नहीं आयेगी। पत्रकार से दूर रहो, वह दलाल और भ्रष्‍ट होता है। न ईमान, न दीन। जो कुछ भी है, पैसा ही सब कुछ होता है पत्रकार के लिए। न पढ़ने की तमीज, न लिखने की। बात करने का लहजा तो पत्रकार के पास होता ही नहीं। बिलकुल घमंडी। लेकिन जिनसे मिल कर दलाली करता है, उनके सामने बहुत विनम्र होता है। बाकी के लिए मरखना सांड़, बिगडै़ल।

लेकिन सच इस तरह की लोकोक्तियों में सच बहुत कम है, जबकि गुस्‍सा बेहिसाब। वजह है विश्‍वसनीयता। क्‍या आप नहीं मानते कि पत्रकारों की एक बड़ी आबादी लेखक या खोजी नहीं, बल्कि चुगलखोर हो चुकी है। जो ब्रह्म-सत्‍य माना जाता था कि चाहे कुछ भी जाए, लेकिन पत्रकार कभी भी सूत्र का नाम जग-जाहिर नहीं करेगा। लेकिन हम में से अधिकांश लोग इसी ब्रह्म-सत्‍य को ठोकर मारते हैं। जो शख्‍स आपको खबर दे रहा है, पूरे विश्‍वास के साथ कि  उसका नाम सार्वजनिक नहीं होगा। उसी शर्त को पहले ही क्षण आप ध्‍वस्‍त कर देते हैं। कई लोग बचपने या अति-उत्‍साह में ऐसा कर सकते हैं। हां, कुछ लोग दलाली के लिए भी इस ट्रिक का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। लेकिन जो असली पत्रकार होगा, वह भूल कर भी ऐसा नहीं करेगा। उसे पता होता है कि विश्‍वसनीयता ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है, और उसने अपनी इस पूंजी को लुटाने की कोई कोशिश की तो फिर वह अपने समाज में कभी भी सम्‍मान नहीं हासिल कर पायेगा।

एक कवि-लेखिका हैं सीमा सिंह, उन्‍हें एक लेखक ने सलाह दी कि आप पत्रकारों को नहीं, जानतीं, जिस दिन जान जाएंगी, उस दिन दिक्‍कत हो जाएगी।

लेकिन मेरा मानना बिलकुल अलहदा है। धंधेबाज की बात छोडि़ये, लेकिन अगर आपके पास कोई पत्रकार है, तो फिर आपके अधिकांश दर्द-पीड़ा वह खुद ही हर लेगा। कई मामले पर आपकी समस्‍याओं का समाधान करेगा, क्‍योकि उसका जन्‍म ही इसीलिए होता है। जो कर पाने का साहस लोग बाग नहीं जुटा पाते, वह चुटकियों में कर लेता है। लोगों के पास अपनी बात कहने का माध्‍यम या मंच ही नहीं होता है, जबकि पत्रकार तो उसी मंच और माध्‍यम पर जमा रहता है। उसके पास समझने की ताकत होती है, पीडि़त की बात को सिलसिलेवार दर्ज करने की सलाहियत होती है, लिखने की तमीज होती है, और सही मंच तक पहुंचाने की तमीज भी।

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पत्रकार पत्रकारिता

मैं खूब मानता हूं कि किसी का एक्‍सपोजर किसी काबिल पत्रकार से बेहतर कोई नहीं करा सकता। दुनिया को समझाने में पत्रकार से बेहतर कोई नहीं कर सकता। यह भी भ्रम है कि सारे पत्रकार बवाली, दलाल या ब्‍लैकमेलर ही हैं। मेरी नजर से भी देखने की कोशिश कीजिए। हर पत्रकार नहीं, अधिकांश पत्रकार ही दलाली करते दिखते हैं। और बाकी लोग ऐसा नहीं करते। तो जैसा नहीं करते हैं, उन्‍हें सम्‍मान सिर्फ इसी तरह दिलाया जा सकता है कि हम सीना ठोंक कर कहें कि सारे पत्रकार दलाली नहीं करते, बल्कि अधिकांश या कई पत्रकार दलाली करते हैं।

विद्याधर राय का कहना है कि पत्रकारों में नैतिकता और एकता की कमी के कारण ही ऐसी घटनाएं घट रही है। हम तो आपस मे एक दूसरे को दल्ला, दलाल, और भांड साबित करने पर तुले हैं। दूसरे हमारी कमजोरी और आपसी कमजोरी का फायदा तो उठाएंगे ही। आज हमारी तो कल तुम्हारी बारी है मित्रों। अस्तित्व के बचाव के लिए सभी को सचेत और संगठित होने की जरूरत है। अथवा हम सब परिणाम भुगतने को तैयार रहें।

लेकिन सवाल यह है कि हम इतना चिंतित क्‍यों हैं। बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से आय। आप अपने गिरहबान में नहीं झांकते, बल्कि दूसरों की चढ्ढी खोल-खोल कर उसे नंगा करने पर आमादा रहते हैं। क्‍यों, अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर आपकी चढ्ढी कौन उतारेगा? जाहिर है कि एक पत्रकार ही करेगा, और मैं फिलहाल इसी काम का प्रतिनिधि हूं। मैं आपकी चढ्ढी उतारूंगा, और सब बता दूंगा कि वहां क्‍या-क्‍या अनर्गल है। हां, आप चाहें तो मेरी चढ्ढी खोल कर चेक कीजिए, मगर वहां आपको कुछ खास नहीं मिल पायेगा, सिवाय इसके कि मेरा अपना निजी सशक्‍त गुप्‍तांग और सहयोगी-अनुषांगिक संगठन। आप चाहें तो इसी विषय पर कड़ी आलोचना कर सकते हैं कि इसकी इतनी जबर्दस्‍त सशक्‍तता का आधार क्‍या है। लेकिन यह चूंकि मेरा निजी मामला है, इस पर मैं ऑन द रिकार्ड कोई भी बात नहीं कहूंगा।

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पत्रकारिता में नंगा अवधूत

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