: बंगले में शॉवर लगा कर गोपियों संग रंगरेलियां मनाते थे सीडीओ साहब : कुर्सियों के पाये में जड़वा दिया घिर्रीदार पहिया, उसी पर बने चकरघिन्नी : आजामा से लेकर पाजामा तक की सारी गति-दुर्गति कराया उन्होंने : सैंयां, हमका इतना न सताओ बलमा (चार)
कुमार सौवीर
लखनऊ : सन-04 में एक जिला के एक सीडीओ ने मुझे बताया कि उसने एक योजना बनायी थी, जिसमें खासे लाभ की उम्मीद थी। यह प्रोजेक्ट करीब 45 करोड का था। इसके लिए हम सब ने मिल कर अच्छी खासी रकम जुटा कर सचिवालय तक भिजवायी थी, लेकिन वहां के ससुरे डीएम को न जाने मुझसे क्या खुन्नस हो गयी कि उसने मेरा तबादला ही करा दिया। हाय हाय, पूरी की पूरी रकम ही डूब गयी।
एक सीडीओ साहब के बारे में साफ चर्चाएं थीं कि वे औरतों-लड़कियों के खासे शौकीन थे। परिवार को अपने साथ नहीं रखते थे। एक वक्त में दो युवतियां उनकी सेवा में जुटी रहती थीं। उन्होंने अपने घर में तीन कुर्सियां बनवायीं थी। पाये पर पहिया-घिर्री दार। बीच की कुर्सी पर वे खुद बैठते थे, जबकि अगल-बगल युवतियां। अगल-बगल दोनों के कंधों पर हाथ रखे रहते थे। बारामदा में शावर की व्यवस्था कर रखी थी सीडीओ साहब ने। शाम को झीनी लाइट में झमाझम बारिश का मजा लिया करते थे साहब। पूरा का पूरा बारामदा भर वे पहियादार कुर्सियों में घूम-घूम कर मौज लेते थे। शराब की मस्ती तो हुआ ही रहती थी।
अब यह व्यवस्था स्थाई हो जाए, इसके लिए सीडीओ साहब ने इन दोनों युवतियों को सरकारी नौकरी दे दी। जबकि इसका अख्तियार उनहें था ही नहीं। लेकिन साहब थे साहब। मान कर चलते थे कि जो चाहेंगे, कर डालेंगे। सो उन्होंने उन लड़कियों को नौकरी का सरकारी फरमान जारी कर दिया। बताते हैं कि जिस दिन उन युवतियों को नौकरी का लेटर मिला, उसके एक हफ्ते तक उन लड़कियों ने सीडीओ साहब के घर जश्न मनवाया। बहुत सेवा की साहब की। लड़कियां न हुईं जिन्न-जिन्नात हो गयीं। साहब का इशारा हुआ भी नहीं कि साहब की सेवा में यह दोनों ही युवतिचां हाजिर हो जाती थीं। साहब को कोई दिक्कत न हो, इसका पूरी व्यवस्था की गयी थी।
सुबह मिश्राम्बु का शर्बत मिलता था, दोपहर को बेल, मुसम्मी, तरबूज, शहतूत, लीची जैसे ताकतवर शर्बत। शाम को वक्त पर काजू-बादाम, सोडा और बर्फ हर वक्त हाजिर रहे। रात को तकिया ठीक से रहे, ताकि स्पांडिलाइटिस न हो जाए, चादर साफ रहे, ताकि मिजाज ठीक रहे साहब का। मुलायम कम्बल भी रहे, ताकि साहब को सर्दी न लग जाए। यह न हो, इसके लिए यह कर दो, और वह न हो तो इसके लिए यह कर दो, वगैरह-वगैरह। आजामा से लेकर पाजामा तक की पूरी खैर-ख्वाही किया इन लड़कियों ने साहब के लिए।
मगर हाय रे हाय किस्मत। किसी ने सच ही कहा है कि अल्लाह किसी को भी खुश नहीं रखना चाहता। साहब चाहते थे कि वे महिला कल्याण की दिशा में अपना जोरदार हस्तक्षेप कर लें, लेकिन नामुराद लोगों ने उनकी धोती की लांग में पेट्रोल डाल दिया। नतीजा, साहब सस्पेंड हो गये। पूछा किया गया कि क्यों तुमने उन लडकियों को नौकरी दी। अब वे क्या जवाब दें। ऐसा एक ही नहीं, ऐसे हजारों-हजार सरकारी अफसरशाही की फिजां में तैर रहा है। बेशर्मी की दास्तानें सुनी और कही जा रही हैं, लेकिन उसका निदान खोजने की कोई भी कोशिश नहीं करना चाहता। अब कौन अपने हाथ का रंग छुड़वाये।( क्रमश: )
यूपी में सरकारी कर्मचारियों और अफसरों का रेवड़ अब जनता का टेंटुआ दबाने पर आमादा है। इसी मसले पर यह लेख-श्रंखला है।
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