बेटी की लालसा वाला कोई जजमान नहीं मिला

मेरा कोना

भविष्य पुराण के अनुसार गंगा की उम्र पूरी, पांच हजार साल बीते

: धर्म-च्युत व्यक्ति नराधम, शुक्राचार्य तक काना हो गये : जीवन-धर्म खोकर श्वान-श्रंगाल की गति, द्रोण तक बिला गये : तय कीजिए कि इतिहास बन कर वंशजों का धिक्कार पाना कैसे लगेगा :

कुमार सौवीर

वाराणसी : ( गतांक से आगे ) पहली सफलता मिली सन 66 में जब अगस्त कुंडा में एक मकान उन्हें दान में मिल गया। दरअसल एक विधवा ने उनसे पूछा था कि दान का महत्व क्या है। शास्त्री बताते हैं कि दान संकल्प के साथ होना चाहिए। इसका ध्या न जरूर रखा जाना चाहिए कि दान देने वाले में दान पाने वाले व्य्क्ति से किसी भी तरह का और तनिक भर स्वार्थ भाव न हो। दानी का भाव पूरी तरह निरपेक्ष हो। सेवा भाव नहीं लिया गया हो। कई दाता तो संकल्प की रक्षा के लिए प्राण तक दे बैठे थे। हां, संकल्प च्युत होना जीवन तो दे सकता है, पर सम्मान नहीं। और बिना सम्मान के श्वान-श्रंगाल की गति शायद ही कोई पाना चाहे। शिवि ने शरणागत कबूतर की रक्षा की थी, प्राण दिये। हरीशचंद्र ने भी वही किया, और पुत्र व पत्नी खो दी। कर्ण ने जीवन ही दिया। ऐसे ही लोग समाज के लिए प्रकाश-दीप बनते हैं।

लेकिन धर्म-च्युत होने वाले दारूण कष्ट भोगते हैं। लगातार राजा का नमक खाते-सेवन करते हुए सत्य की खोज नहीं हो सकती। ऐसा कैसे हो सकता है कि आप किसी स्वामी से भोजन प्राप्त करते रहें और उसके बावजूद इसके विरोध में बोल सकें। तो या तो खरीदे नौकर की तरह व्यवहार कीजिए या फिर अपना आंख गंवा दीजिए अथवा द्रोण की तरह इतिहास में अपना कालिकपुता चेहरा दिखाते वंशजों का धिक्कार स्वीकारते रहिये। शुक्राचार्य ने अपनी आंख गंवाई थी तो द्रोण ने अपना जीवन, सम्मान, बेटा, परिवार और सम्बन्धी तक खो दिये।

आप ज्योतिष-शास्त्री में धर्म-च्युत की प्रवृत्ति और उसकी स्थिति पर देवकीनंद्न शास्त्री से चर्चा शुरू करके तो देखिये ना। इस ज्ञान के पहलू पर चर्चा करते समय देवकी नंदन शास्त्री का साफ नजरिया है। वे बताते हैं कि ज्योतिष-विद्या ने इस बारे में सारी भविष्यवाणियां कर रखी थीं। लेकिन वे बताते हैं कि बिना श्रद्धा के ज्योतिष का कोई अर्थ ही नहीं है। जब किसी को विद्या पर ही विश्वास न हो तो, सफलता कैसे मिल सकती है? भइया, आपको पहले तो इस विद्या पर आस्था रखनी पड़ेगी, समाधान तो अपने ही आप आ जाएगा।

शास्त्री जी बताते हैं कि आयुर्वेद चिकित्सा में ज्योतिष का काम फर्स्ट-एड वाला होता है। आयुर्वेद प्रतिकृत्य ग्रहान आदौ, पश्चात कूर्यात चिकित्सिताम्, ते भेजषानां वीर्यानि हरंति बलवत्यपि। आयुर्वेद कहता है कि जिस की भी चिकित्सा की जानी है, पहले उसके ग्रहों का निदान करके ही रोग की चिकित्सा शुरू की जानी चाहिए। क्योंकि कितनी भी बलवान ओषधियों का सारा बल ग्रह-नक्षत्रों की प्रतिकूल दशा से समाप्त हो जाता है।

देवकीनंदन शास्त्री कहते हैं कि ग्रहों की स्थितियां मानव स्वास्थ्य बताती हैं। जैसे वैद्य द्वारा रोगी के शरीर में वात, पित्त और कफ से निदान खोजा जाता है, ठीक उसी प्रकार वायु, अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश आदि के रूप में बंटे तत्वों के अनुसार ग्रह राशि वात, पित्त और कफ को प्रभावित होता है। इसी तरह से यजमान पर होने वाले रोग और उसके निदान का साफ अंदाजा लगाया जा सकता है।

लेकिन ऐसा मत समझियेगा कि आप किसी ज्योतिषी के पास आप पहुंचे तो आपकी शंकाओं का समाधान हो ही गया। यह शर्त हमेशा लागू नहीं होती है। डाक्टरों की दुनिया की ही तरह ज्योतिष-क्षेत्र में भी झोला-छाप खूब होते हैं। यह धंधा बहुत पुराना है। शायद राम चरित मानस से भी ज्यादा पुरातन। तुलसी ने कहा भी है कि:- जैसे मूर्ख पुरोहिताई, दान देत जजमान।

शास्त्री जी को सबसे ज्यादा चिंता तो इस बात की होती है बेटा और बेटी के बीच लिंग-विभेद की हालत लगातार चिंताजनक होती जा रही है। वे कहते हैं कि हमारे पास आने वाली चालीस फीसदी महिलाओं को तो बेटा चाहिए। किसी भी कीमत पर। ये उन लोगों में शामिल नहीं है जिन्हें पहले ही बेटा मिल चुका है। जिन्हें मिल हो चुका होता है, वे भी अपनी संतान को भी बेटा के तौर पर भी देखना चाहती हैं। यानी बेटा है तो फिर बेटा। बिटिया की बात करो, तो उनका मुंह उतर जाता है। मुंह ऐसा बिचकाती हैं, मानो कोई कसैली चीज चख ली हो।

शास्त्री जी बताते हैं कि भविष्य पुराण के हिसाब से गंगा की आयु अब पूरी हो चुकी। यानी पांच हजार साल पूरे। ( समाप्त  )

देवकीनंदन शास्त्री पर केंद्रित आलेख का पहला अंक देखने के लिए क्लिक करें:- आयुर्वेद चिकित्सा में फर्स्ट एड है ज्योतिष विद्या

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(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)

आप लेखक से इन ईमेल पर सम्पर्क कर सकते हैं:- meribitiyakhabar@gmail.com , kumarsauvir@gmail.com , kumarsauvir@yahoo.com

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