: कुख्यात मुख्य अभियंता की शैतानी डायरी में दर्ज है इस सम्पादक का नाम : यादव सिंह भले ही जेल में हो, लेकिन उसकी डायरी मचा रही है हंगामा : दर्ज कर रखा था बड़ी-बड़ी हैसियतों का नाम यादव सिंह ने : जांच एजेंसियों की छानबीन में हुआ है इस सम्पादक का नाम :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पत्रकारों का छिटपुट दलाली करना, उगाही करना, ब्लैकमेल करना और बेईमानों के इशारे पर लॉबिंग करना तो आम बात है। इतना ही नहीं, शराब पी कर जहां-तहां हो-हल्ला और सरेआम दिन-दहाड़े पिट-पिटा जाना भी अब यूपी के कुछ पत्रकारों की निजी रूचि में शामिल हो चुका है। और तो और, पार्टियों में भी बुरी तरह कुटम्मस होने की खबरें भी इन पत्रकारों के रजिस्टर की हिस्ट्री-शीट में दर्ज हो चुकी है। लेकिन अब हैरत की बात है कि यूपी के शातिर बेईमानों के सिरमौर यादव सिंह ने खुलासा किया है कि एक सम्पादक को भी उसने उपकृत किया था।
जी हां, यादव सिंह की जांच में जुटी एजेंसियों को पता चला है कि यादव सिंह यादव ने एक बड़े हिन्दी न्यूज चैनल के सम्पादक को इतना उपकृत किया, कि सुन कर ही लोग-बाग अपने दांतों के तले उंगलियां चबा डालें। इस सम्पादक को इस शातिर अभियंता ने करीब एक अरब का काम दिलाया था। इतना ही नहीं, उसने इस सम्पादक से इसके एवज में कोई कमीशन भी सामान्य दर से वसूला। जांच एजेंसियां अब इस बात की जांच कर रही हैं कि इस ठेके में इस न्यूज चैनल के इस सम्पादक को कितना लाभ मिला।
जांच के दौरान यादव सिंह के जो भी कागजात एजेंसियों ने जब्त किये थे, उनकी छानबीन के बाद कई हैरतनाक जानकारियों का खुलासा हुआ है। इससे सम्बन्धित एक डायरी भी जांच एजेंसियों के हाथ लगी है, जिसमें दर्जनों प्रभावशाली लोगों के नाम भी दर्ज है जिन्हें यादव सिंह ने उपकृत किया था। जाहिर है कि यह उपकृत करने का उपक्रम आउट आफ टर्न ही हुआ। यानी कोई भी टेंडर-फेंडर नहीं जारी हुए। केवल मनमाने तरीके से प्रभावशाली को बड़े-बड़े ठेके दिये गये। लेकिन ऐसा भी नहीं कि ऐसे ठेके देने में यादव सिंह ने अपना कमीशन छोड़ दिया। नहीं, हर्गिज नहीं। यादव सिंह ने हर ठेके पर अपना कमीशन वसूला, लेकिन वह रकम छोड़ दी जो आमतौर पर सामान्य कमीशन वसूलने के बाद अतिरिक्त रकम होती है।
एजेंसिंयों को पहले तो यह पता चला था कि यादव सिंह मनमाने तरीके से ठेके सौंप दे देता था। इसके लिए वह भारी भरकम वसूली भी करता था। लेकिन बाद में उसने कई ऐसे प्रभावशाली लोगों या अपने आकाओं के इशारे पर ऐसे-ऐसे लोगों को भी मनमर्जी ठेके सौंपना शुरू कर दिया, जिन्हें नियमत: दिया जा पाना मुमकिन नहीं था। लेकिन कमीशन देने के बावजूद इन ठेकों में इतनी रकम कमाई हो जाती थी, कि कई-कई पुश्त तक निपट जाए।
बताते है कि यह वरिष्ठ हिन्दी पत्रकार का धंधा ही केवल लाइजेन या जन-सम्पर्क का है। लाइजेन का सामान्य अर्थ होता है विशुद्ध दलाली। इस हिन्दी चैनल के यह सम्पादक जी इस लाइजेन यानी विशुद्ध दलाली में खासे कुख्यात हैं।