बंदरों ने संकटमोचन मंदिर, और अफसरों-सरकार ने काशी को अखाड़ा बना दिया

मेरा कोना

पंडित वीरभद्र मिश्र का अप्रकाशित इंटरव्यू, श्रद्धांजलि

लीजेंड्स ऑफ बनारस ( दो ) : मर जाएगी महान गंगा, उसके आश्रित और एक महान सभ्यता भी : आस्थावान साथ कहां छोड़ते हैं, वह भी गंगा के साथ ही दम तोड़ेंगे : विश्व का अनोखा शहर काशी, जहां करीब 70 हजार लोग गंगा में नहाते हैं : हजारों लोग तो इसी गंगा के जल से आचमन कर मौत को गले लगा रहे हैं :

वाराणसी: यह शख्स लकीर का फकीर नहीं है। जिस पोलियो जैसे रोग को लोग हादसा मानते हैं, उसे यह शख्स खुद पर हनुमत-कृपा कहता है। जिसे लोग हनुमान का अवतार मानते हैं, उसे वे सामान्य से बंदर से ज्यादा कहने को तैयार नहीं। जिसे लोग गंगा सफाई अभियान बताते हैं, उसे वे गंगा के साथ ही वाराणसी और मानवता के लिए विनाशकारक मानता है। इतना ही हो जाता तो भी बहुत था, लेकिन यह शख्स इससे भी कई कदम आगे बढ़कर यहां तक बोल देता है कि बनारस के संकटमोचन मंदिर की महंथ की गद्दी कोई कई जन्मों के पुण्य का परिणाम के बजाय, दरअसल उसके कई जन्मों के पापों का परिणाम है। करोड़ों की सरकारी योजना की आधी कीमत पर ही वह विशुद्ध व्यावहारिक पद्यति से सफल कर देने का दम भरता है, और जिन हालातों से लोग टूट जाया करते हैं, उन्हेंर यह अपने लिए अलौलिक ऊर्जा मानता है। जल, बांध, बैराज आदि की इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सर्वमान्य माने जाने वाले इस शख्स‍ का कहना है कि गंगा का सफाई केवल बुद्धि की तकनीकी से नहीं, बल्कि भक्ति की व्यावहारिक धारा से ही सम्भव है। इस शख्स का विरोध केंद्र और प्रदेश सरकारों तक ने खूब किया है, पर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति वाली टाइम पत्रिका ने उन्हें सेवेन हीरोज ऑफ द प्लानेट की सूची में चौथा स्थान दिया।

बिलकुल सही पहचाना है आपने। इस शख्स का नाम है प्रोफेसर पंडित वीरभद्र मिश्र। पिछले दो सौ सालों से संकट मोचन मंदिर की प्रतिष्ठित महंथ की अपनी खानदानी गद्दी सम्भालने के साथ ही वे बीएचयू में लम्बे। समय तक सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष के पद भी रहे हैं। हाइड्रालिक इंजीनियरिंग। 26 सितंबर सन 1938 में प्रात: तुला राशि के चित्रा नक्षत्र में जन्मे श्री मिश्र की बचपन से ही गणित के सिद्धांतों और हनुमान पर अगाध श्रद्धा रही है। एक साल की उम्र के थे कि पोलियो की चपेट में आ गये थे। 11 साल की उम्र में जबर्दस्त मियादी बुखार हुआ। 14 साल की उम्र पिता का साया उनके सिर से उठ गया। बचे सिर्फ विरासत में मिले संस्कार और पिता की गद्दी। पंडित के मुताबिक:- इस गद्दी ने मुझे बहुत काफी कुछ छीना। लोगों से पैर छुआना मुझे बुरा लगता था, सम्मान तो खूब मिला पर लोगों से दूरियां बन गयीं।

हनुमान का सेवक-भाव प्रोफेसर मिश्र में कूट कर भरा है, और अंतस में है वाराणसी, गंगा और मानवता के प्रति अगाध समर्पण और आस्था। पंडित मिश्र के अनुसार:- अपने सेवाभाव के चलते ही हनुमान आज राम से ज्यादा पूज्य हैं। सिया-राममय सब जग जानी, करौं प्रणाम जोरि जुग पानी। वे कहते हैं कि सन-55 तक दुर्गा मंदिर को मंकी टेम्पल किया जाता था, लेकिन उसके बाद बंदरों ने संकट मोचन मंदिर को अपना अखाड़ा बना लिया और काशी को अफसरों और सरकार ने। सही बात कह दी तो रियो द जेरेरियो तक विरोध हुआ। शहर से मल-जल निकासी के अस्सी से वरूणा तक 30 प्वाइंट सोर्स हैं। अंग्रेजों ने एक विशाल सीवर लाइन शहर में पहले ही डाल रखी थी। सन-70 से 73 तक 4 पंपिंग स्टेशन बने जो मलजल को उसी पुराने सीवर में डाल कर दीनापुर ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचा सकते थे। लेकिन बिजली कभी नहीं मिली और सारी गंदगी गंगा में ही उड़ेली गयी। सन-82 में गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने का एक महा‍अभियान शुरू किया गया। सरकार तीन साल बाद जागी और गंगा एक्शन प्लान आ गया। मैं उत्प्रेरक था, लेकिन जल्दी ही वाच-डॉग की भूमिका में आ गया।

प्रोफेसर मिश्र के अनुसार:- केवल नौटंकी और लूट-खसोट हुई इस योजना में, जिसका नारा दिया गया गंगा एक्शन प्लान था। अरे कोई पूछे भी तो कि उसमें हुआ क्या। गंगा एक्शन प्लान में क्षेमेश्वर मानसरोवर घाट के पास बाईपास बना दिया गया। यानी गंदगी फिर गंगा में ही उड़ेली गयी। बिजली की किल्लत और पांच महीने तक पंप में बाढ़ के पानी का बहाना खूब किया गया। एक्टीवेटेड स्लाज फार्म बना दिया जो फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया को नहीं रोक पाता, जिससे पानी के प्रदूषण से होने वाली बीमारियां पैदा होती हैं। मैने विरोध किया और कहा कि यह तो बिना मर्ज को पहचाने ही दवा देने वाली बात है। पहले गंदगी का आंकलन तो करो, तभी तो सटीक योजना बनेगी। मगर सरकारी कुएं में तो भांग पड़़ी थी ना। पैसा खर्च करने पर जोर था, काम करने पर नहीं। योजना तो खैर रामसत्य होनी ही थी जो हो गयी। केंद्र सरकार ने कहा कि गंगा का प्रदूषण आधा साफ हो गया है। इस झूठ का मैने एक प्रयोगशाला खोल कर पर्दाफाश कर दिया। धत्तेरे झूठे लोग।

प्रोफेसर मिश्र आगे भी ज्यादा बताते हैं:- मल-जल को गंगा नदी में रोकने की कवायद इलेक्ट्रिसिटी से नहीं, बल्कि ग्रेविटी के फोर्स से ही हो सकती है। नगर निगम के अनुरोध पर मैंने विश्व के प्रमुख इंजीनियरों के साथ मिल कर ऐसा ही प्रस्ताव बनाया। इसमें सारा मल-जल शहर से बाहर ले जाने की योजना था। पर अफसरशाही हावी रही। मामला अदालत गया तो वे जापानी अनुदान संस्था जायका को ले आये। माघ मेले में साधु-संत खूब चिल्लाते रहे कि पानी छोड़ो, पानी छोड़ो। सरकार बोली कि छोड़ रहे हैं। अरे मजाक बना दिया है इन लोगों ने। अरे उन्हें कोई कैसे बताये कि गंगा में पानी की नहीं, प्रदूषण की समस्या है। और मेरा दावा है कि अकेले इन नालों को रोक देने से ही गंगा का 95 फीसदी प्रदूषण खत्म हो सकता है। वाराणसी में अस्सी से वरूणा तक गंगा में रोज करीब 70 हजार लोग स्नान करते हैं। उनमें भारी तादात उनकी भी है जो आचमन कर वही जल पीते भी हैं। ऐसे लोग मछली हैं, और मछली कभी नदी छोड कर जाती है ? वास्तविकता तो यह है कि वे चुपचाप मर रहे हैं, गंगा-प्रदूषण से। उन्हें अपनी मौत का अहसास ही नहीं, पर मैं उन्हें मरने नहीं दूंगा।

इस सीरीज को पूरी तरह देखने और पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- लीजेंड्स ऑफ बनारस

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