उन्‍नाव-हैदराबाद पर दहाड़ें मार कर रोने वालों की असलियत

बिटिया खबर

: क्‍योंकि हम बेशर्म हैं, और हमारा समाज निहायत दोगला : बेटियों की बोटियां की चिंदियां बिखेरने पर आमादा था हमारा समाज : नेता, अफसर, पुलिस, पत्रकार, संगठनों के चरित्र को बेपर्दा करता दोलत्‍ती का शोध : दोलत्‍ती डॉट कॉम के इस अप्रतिम शोध-पत्र को रोजाना पेश किया जाएगा। अंक-एक : 
कुमार सौवीर
लखनऊ : उन्‍नाव-हैदराबाद जैसे दर्दनाक हादसों पर दहाड़ें मार-मार कर रोने-धोने वालों के आंसुओं को तो सबने ठीक से देखा-परखा होगा। आप द्रवित हो चुके होंगे ऐसे लोगों की जनप्रतिबद्धता और उनकी जन-पीड़ा के प्रति आर्द्रता और संवेदनशीलता पर। आपको साफ अहसास हो चुका होगा कि इन लोगों के हाथों में ही आम आदमी और खास कर महिलाओं की इज्‍जत अगर थमा दी जाती, तो आज ऐसी हालत नहीं होती, जो आज हैदराबाद और उन्‍नाव समेत यूपी और भाजपा शासित राज्‍यों में हो चुकी है।
सच बात यही है कि भाजपा शासित राज्‍यों में कानून-व्‍यवस्‍था अब पूरी तर‍ह तबाह होता जा रहा है। गवर्नेंस का तो कहीं अता-पता तक नहीं दिख रहा है, लेकिन सरकार और भाजपा के लोगों, नेताओं, मंत्रियों और कर्णधारों में एरोगेंस बेहिसाब और हिंसक अंदाज में उबलने लगा है। हालत यह है कि जब आसमान को छूते प्‍याज के दामों पर कोई बातचीत होती है तो संसद में बैठीं वित्‍त मंत्री सीतारमण का जवाब होता है कि उन्‍हें लहसुन-प्‍याज से कोई लेनादेना नहीं होता है, क्‍योंकि हमारे घर में प्‍याज-लहसुन का प्रयोग ही नहीं होता है। इतना ही नहीं, सीतारमण के ठीक पीछे बैठे मंत्री चिल्‍ला कर ऐलान करते हैं कि प्‍याज से कैंसर हो जाता हैा
बहरहाल, आज हमारी चिंता का विषय सीतारमण नहीं हैं, बल्कि आज हम तो आम आदमी के चरित्र पर बात करना चाहते हैं जो हैदराबाद और उन्‍नाव में गैंगरेप में मारी गयी बेटियों की मौत से शोक में है। लेकिन यह शोक सन्निपात या सदमे की शक्‍ल में नहीं, बल्कि हल्‍ला-गुल्‍ला की तरह भड़कता दिख रहा है। संवेदनशीलता से कोसों दूर। वे केवल अपने दूसरों की बेटियों पर होने वाली आशंकाओं पर चर्चा कर पूरे समाज को गुस्‍सा दिला रहे हैं, लेकिन इसके राजनीतिक पहलुओं को नजरअंदाज कर समस्‍या को दूसरी ओर मोड़ रहे है। यही तरीका साबित करता है कि हम निर्मम साजिश का हिस्‍सा बनते जा रहे हैं, समाधान से कोसों दूर। इतना ही नहीं, हमारा समाज उतना दुखी नहीं है इन घटनाओं से, जितना हमारे व्‍यवहार से दिखायी पड़ रहा है। बल्कि सच तो यही है कि हम सच से कोसों दूर हैं, चाहे वह ऐसे सवालों के समाधान की बात हो या फिर हमारे चरित्र की असलियत।
हमने अपने समाज की असलियत को जांचने-परखने के लिए एक तरीका खोजा। पहला तो हमने अपने नेताओं के उन चरित्रों को परखना शुरू किया, जो अपनी सरकार के दौरान ऐसी घटनाओं पर क्‍या रवैया रखते थे, और आज विपक्ष में रह कर उनका क्‍या रवैया क्‍या है। हमने उनकी माली हालत को भी परखने की कोशिश की। इसी तर्ज पर इसके बाद हमने डीजीपी से लेकर पुलिस के कप्‍तान जैसे लोगों के व्‍यवहार को परखा। फिर एडीएम-एसडीएम से लेकर मुख्‍य सचिव जैसे आला ओहदेदार आईएएस अफसरों को टटोला। फिर साहित्‍य और पत्रकारिता में नामचीन हैसियत रखे लोगों को सच की वाशिंग-मशीन में डाला है। और फिर आखिर में हमने जन संगठनों से लेकर आम आदमी तक को खंगालने की कोशिश की। हमने महिलाओं की हरकतों को भी परखने की कोशिश की। मकसद सिर्फ इतना कि हम असली सच तक पहुंचने सकें।
और आप यकीन मानें कि इस पूरी कवायद में हमने साफ पाया कि हम बेशर्म हैं, और हमारा समाज निहायत दोगला। हैदराबाद और उन्‍नाव जैसे हादसों को लेकर हमारा समाज बेटियों की बोटियां की चिंदियां बिखेरने पर आमादा था। दहाड़ें मार कर बदला लेने पर आमादा था। लेकिन हमारा शोध बताता है कि समाज का यह व्‍यवहार एक सिक्‍के का एक पहलू मात्र ही है। जबकि इसका दूसरा पहलू बेहद डरावना हैा हम इस मामले पर अपने अभियान के विभिन्‍न आयामों को रोज-ब-रोज आपके सामने प्रस्‍तुत करते रहेंगे। तब तक दोलत्‍ती डॉट कॉम के लिए कुमार सौवीर को इजाजत दीजिए। (क्रमश:)

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