: दरिंदों को बचाने नहीं, समाज को दरिंदा बनने से बचाना चाहता हूं : व्यक्तिगत व सामाजिक पीडाओं के निदान अलग-अलग होते हैं : जाइये, अजय देवगन की फिल्म गंगाजल देख आइये। समाधान मिल जाएगा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह वक्त खून पर अट्टहास करने वालों का है। जहां भी खून दिखे या खून होने की संभावनाएं दिखें, ऐसे पैचाशिक अट़टहास खूब सुने जा सकते हैं। बशर्ते यह खून दूसरे का हो, दर्द दूसरे का हो, बर्बादी दूसरों की हो, रूदन किसी दूसरे का हो,आंसू दूसरों के हों। यह वक्त उन लोगों के अट्टहास करने का है जो अपना क्षणिक सुख और आनंद के लिए पूरे देश को भयावह आग में झोंकने में मस्त हैं। जो उनके खिलाफ तनिक भी सोचते या बोलते हैं, उन्हें देशद्रोही करार दिया जा रहा है।
सामान्य तौर पर ऐसे लोगों से यह सवाल पूछा जा रहा है कि हैदराबाद गैंगरेप के आरोपियों की एनकाउंटर में मौत पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले लोगों की बेटी के साथ अगर यही घटना हुई होती तो क्या करते ?
कहने की जरूरत नहीं कि ऐसा सवाल उठाने वालों का मकसद केवल देश की लगातार आर्थिक बर्बादी की ओर बढती जा रही हालत और बदहाल व असफल राजनीतिक की के बल पर सामाजिक तानाबाना पर खिल्ली उडाना ही है। ऐसे सवाल उठाने वाले अधिकांश लोगों को दरअसल यह पता ही नहीं चलता कि वे किसी संगठित षडयंत्र का माध्यम होते जा रहे हैं, जिसका मकसद असल मुददों की ओर से जनता का ध्यान बंटाना ही है। लेकिन ऐसे माध्यम बने लोग ऐसे सवालों को चटखारे की तरह उछालते हैं और उसमें आनंद लेते घूमते रहते हैं। वे उन लोगों पर निशाना साध रहे होते हैं, जिनसे वे वैचारिक मतभेद रखते हैं। मसलन हैदराबाद एनकाउंटर पर पुलिस के तौर:तरीकों पर सवाल उठाने वाले लोग। ऐसे माध्यम लोग ऐसे लोगों की बेटियों पर सवाल उठा कर परपीडा का सुख लूटना चाहते हैं।
मुझसे भी ऐसा ही सवाल उठाया गया। मैंने तो साफ जवाब दे दिया कि ईश्वर न करें कि मेरी बेटी के साथ कभी ऐसा कोई भयावह दर्दनाक हादसा हो। लेकिन जिस समाज में हम रह रहे हैं वहां अगर पुलिस की हरकतें और मुल्क की राजनीतिक हालत ऐसी और यही बनी रही तो ऐसा ही नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा भयावह भी हो सकता है। चाहे वह मैं रहूं, मेरी बेटी हो, मेरी बहन-मां या आस-पडोस के लोग अथवा देश का कोई दीगर परिवार या उसका सदस्य। हैदराबाद में डॉ प्रिया के साथ हो डरावना हादसा हुआ, उसकी कल्पना करके ही किसी भी शख्स के रोंगटे खडे हो जा सकते हैं।लेकिन इसके बावजूद मैं साफ कहूंगा कि मेरी बेटी के साथ अगर ऐसा होता है, तो मैं ऐसा फर्जी एनकाउंटर करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ ही खडा रहूंगा। और आखिरी दम तक हत्यारी संस्कृति के खिलाफ आवाज उठाता ही रहूंगा। तब भले चाहे मेरी कोई एक बेटी उस हत्यारी संस्कृति की बलिवेदी पर चढा दी जाए, या फिर दोनों ही बेटियां। कम से कम, मैं अपनी बेटियों के प्रति अपने भावों को व्यक्त तो कर ही सकता हूं।
वैसे मेरा सवाल न केवल आप, या बाकी अन्य उन पाठकों से है बल्कि उन सभी नागरिकों से भी है जो इस घटना का समाधान खोजने की कोशिश करने के बजाय, इस हादसे पर अपना जी: जुडा रहे हैं, आनंदित हैं, हत्यारों की वाहवाही कर रहे हैं, मिठाइयां बांट रहे हैं, हत्यारों को राखी बांध रहे हैं, कि हम अपने कुत्सित विचार या अपनी घटिया प्रतिक्रियाएं हमारी बेटियों के नाम पर ही क्यों निकालना शुरू करते हैं ?क्या वह डॉक्टर प्रियंका हमारी बेटी नहीं थी, और अगर नहीं थी तो भी, हम अपनी बेटी को इस तरीके से क्यों तब्दील कर देना चाहते हैं?
और अब मैं अपनी एक आखिरी बात गंगाजल के साथ खत्म करना चाहता हूं। यूपी में राजस्व सेवा के अधिकारी अनुराग सिंह ने एक मशहूर फिल्म गंगाजल का एक डायलाग याद दिलाया है। इस फिल्म में अजय देवगन कहता है, “आंख फोड़ कर तेज़ाब से जला देने का कानून नहीं है हमारे देश में।”इस पर उसके मातहत कर्मचारी कहते हैं, “सर आप इन दरिंदों को बचाने की बात कर रहे हैं।”लेकिन ऐसी दलील को खारिज करते हुए नायक जवाब देता है, “नहीं। मैं समाज को दरिंदा होने से बचा रहा हूँ, कल सच के हक़ में उठने वाली हर आवाज़ को भी इसी तरह कुचल दिया जाएगा।”
लीक से हटकर सटीक व सार्थक लेख।।