: लोहिया संस्थान में ऑन्कोलॉजी रेडियो एमआरआई मशीन ब्लॉक की छत से पानी झमाझम। जांचें बर्खास्त, मंत्री-अफसर बेशर्म : “राग-दरबारी” के रुप्पन का चियाँ अपना मूं बनाये सरकारी अस्पताल फर्श पर कराहते मरीजों से तीतर लड़ाना कोई मंत्री ब्रजेश पाठक से सीखे : ढाई सौ उगाही, बेईमानी बेपनाह :
कुमार सौवीर
लखनऊ : डॉक्टरी सिस्टम्स को दुरुस्त करना, मशीनों को सुचारू रूप से व्यवस्थित करना और दवा वितरण करना एक बात है, और अस्पताल की फर्श पर लेटे-बैठे मरीजों के साथ केवल छपास के लिए तीतर लड़ाने की शैली में उकडूं अंदाज में बकलोली करना अलग बात होती है। चियाँ सा मुँह बनाये चिकित्सा मंत्री का बेहाल मरीज से तीतर लड़ाना
प्रदेश की स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था और उनके विभाग में अब ठीक इसी तरह मरीजों को हलाल करने के लिए बेहद मुफीद समझने वाला तीतर समझ कर खेलने और उकसाने का खेल करना चिकित्सा एवं स्वास्थ्य प्रणाली से जुड़े लोगों के बीच केवल दिल-जमाई का मजेदार खेल चल रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि इन विभागों के मंत्री हैं ब्रजेश पाठक, जो श्रीलाल शुक्ल लिखित “राग-दरबारी” वाले रुप्पन की तरह चियाँ जैसा अपना मूं बनाये हुए सरकारी अस्पताल की फर्श पर जहां-तहां कराहते मरीजों का इलाज नहीं, बल्कि उनको केवल आश्वासन की मौखिक घुट्टी पिलाने की शैली में तीतर लड़ाने का शगल वाला धंधा चला रहे हैं। पूरा माहौल सनीचर की तरह जहां-तहां अपने जांघिया को उतार कर उसे परचम की तरह फहराते दिख रहा है। लेकिन यह नहीं देखते कि ऐसा जांघिया नुमा परचम के पिछवाड़े फरागत का मामला दग रहा है।
ताज़ा मामला तो मेरा निहायत निजी है। 23 फरवरी-22 की शाम को एक लड़के ने अंधाधुंध एक्टिवा चलाते हुए मेरी पीठ पर एक जबरदस्त चोट मार दी थी। सिविल अस्पताल में मेरा एक्सरे हुआ, जहां मुझे एमआईआर की सलाह दी गयी। 04-मार्च को मुझे मेरे मित्र स्वामी संकल्प भारती लोहिया इंस्टीच्यूट ले गए, लेकिन लगातार कई दिनों तक दौड़ाने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने आखिरकार मेरा एमआईआर जल्दी कराने से असमर्थता व्यक्त करते हुए मुझे मेरी का फीस रिफंड 2500 करने की सलाह दे दी गयी। जबकि मुझसे 2750 रुपये वसूले गए थे। कहा गया कि बाकी रकम मिसनेनियस खर्च में एडजेस्ट किया जाएगा।
जाहिर है कि यह निहायत घृणित शर्मनाक और शर्मनाक हालत थी। घर में नितांत अकेला था, और असह्य पीड़ा का अटूट पीड़ा झेल रहा था। रिफंड करने की दौड़भाग तक कर पाने की क्षमता खो चुका था। कमर और पीठ भयानक दर्दनाक अकड़न से शिकार हो चुकी थी। चलना-फिलना भी दूभर हो चुका था। ऐसी हालत में मैं वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर लोहिया संस्थान के प्रशासनिक खंड में अपना रिफंड कैसे हासिल कर सकता था। जाहिर है कि असहाय भाव में घर वापस लौट आया।
अचानक एक दिन मेरे पुराने घनिष्ठ मित्र, वरिष्ठ पत्रकार और पुराने ट्रेड यूनियन नेता मुदित माथुर से बात हो गयी। मेरी हालत देख कर मुदित माथुर आहत थे। विह्वल होकर तत्काल उन्होंने लोहिया संस्थान के किसी बडे़ प्रशासनिक डॉक्टर से बात की। आधे घंटे बाद मुदित ने मुझे किसी को भी लोहिया संस्थान पहुंच कर एमआईआर की डेट की व्यवस्था कर दी। गनीमत थी कि इसके एक दिन पहले ही किसी देवदूत की तरह बीएसएफ पूर्व अधिकारी रहे जनार्दन यादव मेरे घर आये थे, लेकिन जब मेरी हालत देखी तो रुक गये। जनार्दन यादव मेरे सारे पर्चे और एक्सरे लेकर 19-सितंबर को लोहिया संस्थान लेकर गए। वहां पर्चे और एक्सरे वगैरह चेक कर मुझे रेडियो अंकोलॉजी विभाग के रेडियोथेरेपी में 26 सितंबर को एमआईआर कराने का समय दे दिया गया।
लेकिन आज सुबह 08 बजे जब लोहिया इंस्टिट्यूट के ऑन्कोलॉजी रेडिएशन विभाग में जब हम लोग एमआईआर कराने पहुंचे, तो पता कि एमआईआर मशीन ब्लॉक में बुरी तरह हंगामा खड़ा हो गया है। ब्लॉक की छत से पानी आ जाने के एमआईआर संबंधी सभी जांचें आज हो पाना मुमकिन ही नहीं है। हो सकता है कि उससे भी ज्यादा दिन लगे। लेकिन कम से कम आज तो मेरी या किसी भी मरीज की एमआईआर हो करा पाना पूरी तरह संभव ही होगा। जाहिर है कि वहां प्रदेश के करीब 35 जिलों के लोग अपने मरीज का एमआईआर कराने के लिए थे। लेकिन इस हालत के चलते इन सबके सपनों पर झाड़ू ही लग गया।
यानी स्वास्थ्य-चिकित्सा के मंत्री ब्रजेश पाठक आज या कल, अथवा कई अगले दिनों तक ही नहीं, बल्कि पूरी मंत्री-गिरी तक फिर अपनी जांघिया फहराते हुए अस्पताल की फर्श पर कराहते आम मरीजों के साथ “राग दरबारी” के चियाँ जैसा मूं बनाये हुए रुप्पन के अकाट्य नौकर सनीचर की तरह तालाब के किनारे अपनी जांघिया आसमान में उड़ाते हुए तीतर लगाने में बिजी हो जाएंगे।
शर्मनाक है यह सूरते हाल। चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना इस चियां जैसे मुंह वाले को। तुमसे कितनी बार कहा है कि मेरे पास आ जाओ। यहां सारी व्यवस्था हो जायेगी तुम्हारे इलाज की लेकिन तुम हो कि लखनऊ से निकलने को ही तैयार नहीं।