: चंद घंटों पहले जन्मी बच्ची तीस फीट से नीचे फेंकी गयी : जिला महिला अस्पताल में एक डॉक्टर भी नहीं था, इलाज के बिना दम तोड़ गयी बच्ची : शिराज-ए-हिन्द मर रहा है, और तुम्हें पता ही नहीं। चलो, चुल्लू भर में डूब मरो : दारोगा से एएसपी तक को फुरसत नहीं मिली बच्ची बचाने में : बेशर्मी पर आमादा है डीएम और पुलिस अधीक्षक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अभी चंद दिन ही तो हुआ है कि तुमने नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को देवी मान कर का पैर पूज कर सम्मानित किया था। मुख्यमंत्री योगी ने भी इस बच्ची को नवरात्र की अधिष्ठात्री मान कर उसे सृष्टि-निर्माता मानते हुए उसे सर्वोच्च सम्मान दिया था। लेकिन आज सुबह उसी नवजात बच्ची को एक मोटरसाइकिल सवार ने एक बस्ते में भर कर एक नहर के ऊंचे पुल से फेंक दिया गया था। मामला देख कर लोग मौके पर पहुंचे। पाया कि वह बच्ची बस दो-तीन घंटों पहले ही जन्मी थी। तत्काल लोग उसे जिला अस्पताल ले गये, लेकिन वहां कोई राहत ही नहीं मिली। सरकारी अस्पताल से लेकर निजी अस्पतालों तक का चक्कर लगाने के बाद ही उस नवजात की सांसें हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गयीं।
यह मामला है राजधानी से सवा दो सौ किलोमीटर दूर जौनपुर का। पुलिस और प्रशासन ही नहीं, बल्कि विधायक तक में नाक तक घुसी असंवेदनहीनता, अराजकता, लूट, घटियापन और आम केवल हत्यारी मानसिकता का साक्षात लेकिन सनातन अड्डा। आम आदमी को कीड़ा-मकोड़ा की तरह बात-बात पर मसल देने की इकलौती साजिशों और हरकतों में माहिर जौनपुर की पुलिस और प्रशासन ने जो जघन्य और हत्यारी हरकत की है, वह सर्वथा आपराधिक हत्या की मनोविकृति का खुला प्रदर्शन है।
जौनपुर से लखनऊ की ओर पांच मिलोमीटर दूर बढ़ने पर एक कलीचाबाद इलाका है। इसके पास ही बहती है एक नहर, जो अंतत: गोमती नदी से ही मिलती है। आज सुबह छह नवम्बर की सुबह करीब पौने आठ बजे हुए थे। सड़क पर चहल-पहल शुरू होने लगी थी। कि अचानक बाइक पर सवार एक व्यक्ति ने एक स्कूली बस्ता इस नहर की पुल से नीचे फेंक दिया, और तेजी से चला गया। इस पुल से नहर की गहराई करीब तीस फीट बतायी जाती है। इस बस्ते में कोई कबाड़ जैसा सामान मिलने की प्रत्याशा में वहां के एक राज-मिस्त्री ने लपक कर उस बस्ती को खोला, तो वह चौंक पड़ा। राज-मिस्त्री ने शोर मचाया, तो भीड़ जुट गयी।
लोगों ने पाया कि उस बस्ते में एक बच्ची है। उसका हाथ तेजी से चल रहा था। लोगों का मानना था कि बहुत ऊंची से फेंकी जाने से इस बच्ची में यकीनन मर्मान्तक चोटें लगी होंगी। पता चल गया कि यह बच्ची बस दो-तीन घंटे पहले ही जन्मी थी। और जाहिर है कि परिवार में अवांछित रूप से जन्मी इस बच्ची से हमेशा-हमेशा के लिए छुटकारा हासिल करने के लिए उसके परिवारी लोगों ने उस बच्ची को एक बस्ते में ठूंसा होगा और बाद में उसे बाइक पर ले जाकर कलीचाबाद नहर पुल से नीचे फेंक दिया होगा। बच्ची को फेंकने का मकसद उसे नहर के पानी में दबा देना ही रहा होगा, लेकिन अफरा-तफरी में यह बच्ची पानी के बजाय जमीन पर गिर पड़ी होगी।
सूत्र बताते हैं कि उसकी सांसें चलती देख कर लोग दहल गये और वे तत्काल जिला अस्पताल ले गये। अस्पताल में उसे महिला अस्पताल भेज दिया। लेकिन काफी देर बाद भी कोई भी डॉक्टर महिला अस्पताल में नहीं मिला। ठीक यही हालत पुलिस अस्पताल की भी हुई। इसी बीच भण्डारी पुलिस चौकी को भी खबर दी गयी। पुलिसवाले मौके पर पहुंचे, और उन्होंने बच्ची का इलाज करने की व्यवस्था करने के बजाय उस बच्ची को किसी प्राइवेट अस्पताल भेज देने की सलाह दी और अपना हाथ झड़क कर वापस चले गये।
जिला अस्पताल से निकल कर वे कुछ तरीका खोजने की जुगत में थे, कि सूत्रों के अनुसार अचानक वहां जिले के नगरीय अपर पुलिस अधीक्षक डॉ संजय कुमार अपनी गाड़ी से जाते दिखे। लोगों ने उन्हें रोका और पूरा दारुण किस्सा सुनाया। लेकिन बताते हैं कि एएसपी ने बताया कि वे एक वीवीआईपी एस्कोर्ट में जा रहे हैं, इसलिए उस बच्ची के लिए रुक पाना उनके लिए मुमकिन नहीं है। लेकिन एएसपी ने इतना जरूर बताया कि वे उस बच्ची को एक शिशु निकेतन ले जा कर वहां उसे भिजवा दें। अब यह शिशु निकेतन कहां है, यह तो पूरे शहर, जिला या आसपास के भी किसी व्यक्ति को नहीं है, जहां किसी बुरी तरह और आकस्मिक हालत में नवजात बच्ची को इलाज मुहैया कराया जा सके। दोलत्ती संवाददाता ने जिलाधिकारी और जिला पुलिस अधीक्षक से इस बारे में पूरी जानकारी फोन की, लेकिन उनके फोन नहीं उठे। उनके वाट्सऐप पर संदेश भेजा गया, लेकिन उसका कोई भी जवाब देने की जरूरत नहीं समझी गयी।
उधर बच्ची की जान बचाने के लिए तड़प रहे लोगों को अस्पताल ले जाने वालों की इतनी हैसियत नहीं थी कि वे किसी प्राइवेट अस्पताल में जा पाते, लेकिन इसके बावजूवे झुंड बना कर रुहट्टा के डॉ मुकेश शुक्ला के प्राइवेट अस्पताल के यहां गये, लेकिन डॉ शुक्ला ने उस बच्ची को देख कर अपने हाथ खड़े कर दिये। इसके बाद यह लोग काली कुत्ती इलाके में रहने वाले पूर्व सांसद धनन्जय सिंह के आवास से सटे डॉ संदीप कुमार के प्राइवेट अस्पताल पहुंचे। वहां काफी देर बाद वहां के स्टाफ ने ऐलान कर दिया कि बच्ची की सांसें हमेशा-हमेशा के लिए थम चुकी हैं।
तो जौनपुर के सम्मानित नागरिकों, डीएम समेत प्रशासनिक अधिकारियों, कप्तान समेत पुलिस के अफसरों की सूचना के लिए आपको बता दूं कि उस बच्ची के दम तोड़ देने के बाद बच्ची के लिए जूझ रहे लोग उस लाश को लेकर रामघाट स्थित श्मशान घाट पहुंचे। वहां आवश्यक परम्परागत अनुष्ठान के बाद उस बच्ची को गोमती नदी की धारा में प्रवाहित कर दिया गया। अब इस बारे में शहर के विधायकों और नेताओं को जानकारी देने की जरूरत तो है ही नहीं थी, क्योंकि वे उस समय खुमार में ही रहे होंगे। डॉक्टर लोग केवल हर मरीज को हलाल करने वाले मुर्गे की तरह पकड़ कर उसके लिए चाकू तराश कर रहे होंगे और पूरा शहर अपनी ही मस्ती में रहा होगा।
इसलिए छोडि़ये, मर गयी वह नवरात्रि वाली अधिष्ठात्री-देवी, तो मर गयी। भाड़ में जाए ऐसी देवी। जौनपुर में ऐसी देवियां रोज ही मारती रहती होंगी। उनके लिए क्या स्यापा करना। मस्त रहो और गाना लगाओ:-
एगो चुम्मा दइदा ओ करेजऊं
लेकिन उस बच्ची की नहीं, वह तो मर चुकी। हां, वह जिन्दा रही होती, तो केवल उसके संवेदनशील ही नहीं, बल्कि आप भी उसको प्यार, दुलार कर उसे चूम रहे होते।
तब वह करेजऊ नहीं, समाज की एक दुलारी देवी होती।
हैरत की बात है कि शिरोज-ए-हिन्द मर रहा है, और तुम्हें पता ही नहीं। चलो, चुल्लू भर में डूब मरो कमीनों।