: दिल-दहला सकती है सारिका की यह लाइनें, शिक्षिका की भावनाएं किसी की भी जिन्दगी को अलग नजरिया दे सकती हैं : आपाधापी में फंसी जिन्दगी से बाहर खींचना जरूरी : तुम हरेक चीज छूना चाहोगी, पर तुम छू नहीं पाओगी :
तुम चाहोगी भीगना, पर तुम्हारे ‘पैर’ साथ नहीं देंगे …. तुम चिल्लाना चाहोगी, बादलो को देखकर; तुम मचलना चाहोगी, बारिश में भींगकर! तुम हरेक चीज छूना चाहोगी, पर तुम छू नहीं पाओगी… क्यूकि, तुम्हारा शरीर तुम्हारे मन जितना जवान नहीं रहेगा’ उम्र से साथ तुम्हारा साथ छोड़ देगा!
तब तुम खिड़की पर यू ही खुद को देखकर झुझलाओगी… मन को मसोसकर रह जाओगी!
कोई आयेगा, तुम्हारा अपना, तुम्हे एक कप चाय दे देगा, लेकिन सिर्फ चाय ही… उम्र के साथ चाय भी तुम्हे फीकी लगेगी, जिसे आज तुम छोड़कर काम के लिये आगें बढ जाती हो.
तुम जीने के लिये तरसकर, जब ‘जी’ नहीं पाओगी तो मरना चाहोगी..
लेकिन लोग तुम्हे मरने नहीं देंगे…
तुम्हारे पैसे का सबसे बड़ा सदुपयोग सिर्फ यही होगा की लोग तुम्हे वेंटीलेटर पर रख कर जिन्दा रखेंगे…
उन्हे चैन होगा की ”मैं ” जिन्दा”’ हूँ
तुम बेड पर लेटी-लेटी सोचोगी-
क्या मै जिन्दा हूँ?
क्या ये जिन्दगी है?
आज बारिश में भीगते हुए यूँ ही ये ख्याल आया’
जिन्दगी क्या है, और व्यस्तता के चलते हमने क्या बनाया।
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बस यूँ ही !
(सारिका तिवारी आनंद ने जैसा अपने एफबी पर अपडेट किया)