तुम मत मानो, लेकिन हत्‍यारी बनने की डगर पर है तुम्‍हारी पुलिस

बिटिया खबर
: जिस मोड़ पर बढ़ रही है पुलिस, बहुत जल्‍दी ही पुलिस-जनता में जंग हो जाएगी : आला अफसर से लेकर छुटभैया दारोगा-सिपाही भी हैं कत्‍लोगारत में शामिल : अरविंद जैन, रोहन कनई, दीपक, राकेश शंकर और ओपी पांडे जैसे बड़े दारोगाओं ने पुलिस पर कालिख पोती : बड़ा दारोगा- दो :

कुमार सौवीर
लखनऊ : यह तुम्‍हारी मर्जी हो। मानो, या फिर मत मानो। लेकिन हकीकत यही है कि हमारी पुलिस अब वाकई किसी शातिर सांगठनिक हत्‍यारे समूह बनने की डगर पर बहुत आगे बढ़ती जा रही है। मेरे पास बेहिसाब नृशंस हादसों की गठरियां मौजूद हैं, जहां पुलिस वालों ने अपनी सांगठनिक हत्‍यारी और लुटेरी मनोवृत्ति का नंगा प्रदर्शन किया। चाहे वह लखनऊ के मोहनलालगंज में सरकारी स्‍कूल में मिली एक महिला की रक्‍तरंजित नंगी लाश का हादसा रहा हो, मथुरा के जवाहरबाग का मामला रहा हो, या फिर लखनऊ में विवेक तिवारी हत्‍याकांड रहा हो। पुलिस का चरित्र एक हत्‍यारे समूह के तौर पर ही सार्वजनिक तौर पर सतह पर क्षत-विक्षत छितरा दिखायी पड़ा है। इन तीनों ही हादसों में पुलिसवालों ने जो अपनी हत्‍यारी भूमिका निभाई, वह वाकई मानव समाज के लिए शर्मनाक ही थी।
और फिर केवल यहीं क्‍यों, लखनऊ में प्रदेश कांग्रेस की तत्‍कालीन अध्‍यक्ष रीता बहुगुणा जोशी के घर को जिस आदमी की शह पर फूंक डाला गया था, उसका नाम खूब चर्चित हुआ था। नाम था अरविंद जैन, जो उस समय पुलिस के अपर महानिदेशक की कर्सी पर जमे थे। तब के उच्‍च स्‍तरीय सूत्रों के अनुसार अरविंद जैन की लोकेशन हादसे के आसपास ही पायी गयी थी। शाहजहांपुर में पुलिस कप्‍तान के नेतृत्‍व में शहर कोतवाल और उसकी पुलिस टीम ने वहां के पत्रकार जागेंद्र सिंह को जिन्‍दा फूंक डाला था। देवरिया में तब के बड़ा दारोगा रोहन पी कनई ने सारी बेशर्मी का लबादा ओढ़ते हुए एक नारी निकेतन के संचालिका और उसके पूरे खानदान को वेश्‍यालय के तरह बदनाम कर दिया। वह तो गनीमत थी कि योगी आदित्‍यनाथ को असलियत का अहसास हो गया और उन्‍होंने फौरन ही कनई और उसके पूर्ववर्ती राकेश शंकर को आनन-फानन उनके पदों से हटा दिया। राकेश शंकर का नाम भी एक बड़े खिलाडी के तौर पर पहचाना जाता है, जो अपनी पड़ोसी मासूम और अनाथ बच्चियों को औकात पर लाने के लिए बाहर के अपराधियों की सहयोग लेने तक के नहीं हिचकता।
लखनऊ का एक बड़ा दारोगा दीपक कुमार ने अभिषेक गुप्‍ता नामक एक फरियादी की रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय उसे इतने झांपड़ रसीद किये कि वह अपनी अर्जी की बात ही भूल गया। लेकिन इसके पहले लखनऊ के एक अन्‍य एएसपी ने शलभमणि त्रिपाठी और मनोरंजन त्रिपाठी जैसे पत्रकारों के साथ सरेआम हजरतगंज में मारपीट की थी। बाद में इन पत्रकारों के समर्थन में पूरे पत्रकार समुदाय ने तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री मायावती के घर के सामने धरना और प्रदर्शन किया था। आपको बता दें कि शलभमणि त्रिपाठी इस समय प्रदेश भाजपा के प्रवक्‍ता हैं।
अपने पिता-माता की इकलौती संतान विकास गुप्‍ता को बरेली पुलिस ने एक फर्जी इनकाउंटर में मौत के घाट उतार दिया था। बेहाल मां-बाप ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोला और सुप्रीम कोर्ट तक की कुंडी खटखटायी थी। लेकिन इसके पहले कि मामले का खुलासा हो पाता, संदिग्‍ध हालात में उन अभागे मां-बाप की हत्‍या कर दी गयी। हाशिमपुरा में पीएसी ने जो नरसंहार किया, वह शब्दों से परे है।
चार साल पहले ही लखनऊ में मोहनलालगंज अखिलेश यादव की सरकार का मुंहलगा बड़ा दारोगा यानी लखनऊ के एसएसपी नवनीत सिकेरा ने जिस तरह उस नृशंस हत्‍याकांड को जमकर तोड़ा-मरोड़ा वह किसी भी पुलिसवालों के चेहरे से लेकर सरकार तक के चेहरे पर कालिख पोत दी थी, वह इतिहास में दर्ज है। इतना ही नहीं, जौनपुर सदर में सामूहिक बलात्‍कार किशोरी पर पुलिस और जुल्फी-प्रशासन ने कमीनगी की पराकाष्‍ठा कर दी थी। ठीक इसी तरह पौने 15 बरस की एक बच्‍ची के साथ सामूहिक बलात्‍कार और फिर उससे गर्भवती इस बच्‍ची को जिन्‍दा फूंक डालने के हादसे ने पुलिस को वाकई एक बेशर्म आपराधियों के संगठन के तौर पर साबित कर दिया था। दस बरस पहले लखनऊ के एक ट्रेनी आईपीएस शलभ माथुर ने सड़क पर जिस तरह निहायत घटिया और छिछोरे गुंडे तक को मात कर दिया था, वह पुलिस की कलई खोलने को पर्याप्‍त है। लखनऊ में ही बालागंज में साहू हत्‍याकांड और एक दारोगा संजय राय द्वारा किये गये एक माज नामक एक अबोध बच्‍चे की हत्‍या वाले इश्‍क-कांड को कौन कैसे भूल सकता है। (क्रमश: बड़ा दारोगा-तीन)
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