टल्‍ली-संपादक की करतूत : असल चूतियानंदन तो हैं कुमार सौवीर

बिटिया खबर
: बेहतर था कि मैं उस टल्‍ली-संपादक की करतूत का खुलासा कर देता : कुमार विश्‍वास को हौंकने वाला टल्‍ली-संपादक मुझ पर खार खाये बैठा : विभिन्‍न समाचार संस्‍थानों ने अपने यहां उस सम्‍पादक की खोज शुरू की :

कुमार सौवीर
लखनऊ : चूतियापंथी की उपाधि राष्‍ट्रपति भवन से नहीं बंटती है। जो चाहे, उस उपाधि को खुद ही कमा और लूट सकता है। बशर्ते उससे जुड़े लोगों को इस बारे में अपनी विशेषज्ञता खुद जाहिर करनी होती पड़ती है। ऐसा भी नहीं है कि चूतिया को पहचानने के लिए आपको कोई आसानी हो, कि ऐसे लोगों के सिर पर चार-सींग मौजूद हों। ऐसे लोगों को आप बहुत आसानी से पहचान सकते हैं। उनकी शक्‍ल के साथ ही साथ उनके कृतित्‍व से भी उनकी पहचान हो जाती है। फिलहाल तो कुमार सौवीर ही ऐसे पक्‍का चूतिया हैं, जो अपने ही पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारते घूमा करते हैं।
अब देखिये न, दिल्‍ली के बीएसएफ मेस में आयोजित एक बड़ी पार्टी में एक बड़े अखबार के एक स्‍थानीय सम्‍पादक ने आप पार्टी वाले कुमार विश्‍वास को शराब में धुत्‍त होकर जिस तरह मां-बहन तौलीं, गालियां दीं, मार-पीट पर आमादा हुए वह तो अलग किस्‍सा है, लेकिन उसके बाद का चूतियापंथी का ठेका कुमार सौवीर ने अपने माथे पर फोड़ लिया। इस टल्‍ली-सम्‍पादक ने बाद में दोलत्‍ती के कुमार सौवीर से गुजारिश की, कि मैं उस घटना को न प्रकाशित करूं। अन्‍यथा उस पर उसके संस्‍थान का प्रकोप टूट सकता है। लेकिन इतने से ही इस नशेड़ी संपादक को तसल्‍ली नहीं हुई। वह चाहता था कि मैं उस खबर को ही किल कर दूं, या उसे प्रकाशित न करूं। लेकिन भइया, ऐसा क्‍यों। मैं ऐसा क्‍यों करूं। तुमसे उधार खाये बैठा हूं, या फिर धर्ता खाये हूं। फिर भी मैंने उस सम्‍पादक से अपने परिचय और उसकी जुबान का सम्‍मान किया और न तो उसका नाम छापा और न ही उसके संस्‍थान का नाम प्रकाशित किया।
मगर यह टल्‍ली-संपादक मेरी सदाशयता को मेरी कमजोरी मान बैठा। लगा तेल-पानी लेकर, और मुझ पर चढ़ाई कर दी। यह टल्‍ली-सम्‍पादक मुझ पर खार खा गया और उसने मुझे फोन पर जी भर कोसा, फिर रिश्‍ते ही खत्‍म करने का फैसला कर दिया।
अब बचे कुमार सौवीर, एक नम्‍बर के चूतिया। जो अपना कपार-खोपड़ी दीवार पर जोरों से दे मार गये और कुल्‍हाड़ी लेकर अपने ही पैरों पर पटक दिया। नतीजा:-

न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए
रहे दिल में हमारे ये रंज-ओ-अलम न इधर के हुए न उधर के हुए।

बहरहाल, तय किया है कि रिश्‍ते बनाने से बेहतर है कि खबर को खबर की सम्‍पूर्णता पर ही लिखा और पेश किया जाए। विवेक से हट कर कोई भी संशोधन स्‍वीकार नहीं किया जाए। क्‍योंकि किसी की मदद करना, या फिर किसी की खाल खींचने से रोकने से बेहतर है कि उसकी चमड़ी ही उधेड़ दी जाए। खबर है कि कुमार विश्‍वास के मामले में सभी समाचार संस्‍थानों ने अपने यहां कार्यरत सम्‍पादकों की खोज शुरू कर दी है। कड़ी कार्रवाई की सम्‍भावना है। नतीजा जल्‍दी ही आ सकता है।

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