तुम किसको मूर्ख बना रहे हो संपादक जी

दोलत्ती

: टाइम्‍स ऑफ इंडिया की करतूत संपादकीय मूर्खता थी, टेक्निकल ग्लिच नहीं : अखबार की कमजोर कड़ी होती है टेक्निकल-सेक्‍शन, वही भौजाई बनायी गयी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : टाइम्‍स आफ इंडिया की करतूतें तो ऐसी साबित करती हैं, मानो वह अपने अपराधों को छिपाने के लिए किसी भी सीमा तक अपनी छीछालेदर करा सकता है। खास तौर पर अपने उस टेक्निकल सेक्‍शन जैसे कमजोर की जोरू, गांव भर की भौजाई जैसी कहावत साकार करता यह अखबार इस मामले में भी अपनी सारी बेशर्मी के साथ सीना ताने बैठा है। ताजा मामला है मशहूर साहित्‍यकार गिरिराज किशोर के दो दिन पहले हुए देहांत के बाद इस अखबार की करतूतें।
सच बात तो यही है कि अपने अपराध पर गलती तो मान ली है टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने, लेकिन यह शर्मसारी का प्रदर्शन भी बाकायदा जूता तान के टाइम्स ऑफ इंडिया ने किया है। साहित्‍यकार गिरिराज किशोर की मृत्यु पर जो माहौल खड़ा किया है इस अखबार ने, वह वाकई बेहद शर्मनाक है। साहित्‍यकार गिरिराज किशोर की जगह एक हिंदूवादी नेता की फोटो लगाने का मामले पर इस अखबार ने स्पष्टीकरण को छाप दिया है, लेकिन अपनी गलती नहीं मानी है इस अखबार के संपादक ने।
महात्मा गांधी पर केंद्रित पहला गिरमिटिया नामक किताब लिखने वाले महान साहित्यकार गिरिराज किशोर अब स्वर्ग से भी टाइम्स ऑफ इंडिया पर लानत भेज रहे होंगे या नहीं, यह तो पता नहीं चल पायेगा। मगर अंग्रेजी समुदाय के लोग टाइम्स ऑफ इंडिया की इस करतूत थू थू जरूर कर रहे होंगे। आपको बता दें कि 10 जनवरी को नगर संस्करण में छपी साहित्यकार गिरिराज किशोर की मृत्यु के बाद उस खबर में उनके बजाय विश्व हिंदू परिषद के 5 साल पहले ही मर चुके आचार्य गिरिराज किशोर की फोटो का मामला कॉरिजेंडम छापने के बाद भी पूरी तरह संज्ञान में नहीं लिया गया है। बताते हैं कि अपने इस अपराध का संज्ञान लेते हुए संपादक ने एक कॉरिजेंडम भी उस खबर में छाप दिया जो नगर एडिशन में खबर के साथ छापा गया।
लेकिन इस कॉरीजेंडम में संपादक ने अपने इस अपराध को बहुत तकनीकी तरीके से छुपाने की तरह पेश किया, और उसे एक सामान्‍य की गलती साबित करते हुए उसका कॉरिजेंडम कॉलम के तहत छापा गया। कॉरीजेंडम के तहत संपादक ने लिखा है कि यह:- पूरी तरह टेक्निकल ग्लिच था।
यानी तकनीकी दिक्कत थी, लेकिन सच बात यही है यह कोई तकनीकी या मशीनी गड़बड़ नहीं थी बल्कि जर्नलिस्‍ट मूर्खों की करतूत थी, लेकिन उसे अपना अपराध मानने के बजाय इस अखबार ने अपने टेक्निकल स्टाफ पर ठीकरा फोड़ दिया। जबकि यह स्पष्ट था कि यह संपादकीय प्रभारियों की करतूत थी। वे जानते ही नहीं थे कि साहित्यकार गिर्राज किशोर और हिंदूवादी नेता आचार्य गिरिराज किशोर में कोई फर्क है अथवा या नहीं, वह भी यही नहीं जानते थे। आपको बता दें कि विश्व हिंदू परिषद के नेता आचार्य गिरिराज किशोर की मृत्यु 5 साल पहले ही हो चुकी है। लेकिन अपनी लाज बचाने के लिए इस अखबार ने यह पूरा मामला अपने टेक्निकल सेक्शन पर ठोक दिया और छाप दिया या टेक्निकल की थी जबकि यह साफ-साफ संपादकीय प्रभारी की विशिष्ट मूर्खता का प्रतीक था

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