टाइम्‍स ऑफ इंडिया: अपनी ही प्रतिष्‍ठा की अर्थी उठा ली

दोलत्ती


: टाइम्‍स ऑफ इंडिया की करतूत से पत्रकारिता का चेहरा काला : संपादकीय प्रबंधक अगर सतर्क रहते तो बनारस और इलाहाबाद तक नाक न कटती :
कुमार सौवीर
लखनऊ : टाइम्स ऑफ इंडिया में साहित्यकार गिरिराज किशोर की मृत्यु की खबर में उनकी फोटो के बजाय किसी और फोटो लगाने की खबर तो टाइम्स ऑफ इंडिया के चेहरे पर काला स्‍याही पोत गयी है। बताते हैं कि डाक एडीशन को पढ़ने वाले पाठकों को मूर्ख समझने की समझ ने इस अखबार की बची-खुची प्रतिष्‍ठा की अर्थी ही उठा डाली है। इस मामले ने केवल इस अखबार के संपादक ही नहीं, बल्कि पूरे संस्‍थान की भी जमकर छीछालेदर की है।
जानकार बताते हैं कि इस अखबार के संपादकीय प्रबंधकों ने इस खबर में हुई गडबड़ी को पकड़ तो लिया था, लेकिन उस समस्‍या को सिरे से पकड़ कर उसे दुरूस्‍त करने का साहस नहीं दिखा पाये। खबर है कि डाक एडिशन में हुए इस अपराध को अखबार ने अपने नगर संस्करण में सुधार तो लिया था, लेकिन डाक एडीशन में इस खबर को संशोधित को रोकने की कोई भी कोशिश यहां के संपादकीय प्रभारियों ने नहीं की। कहा जाता है कि अगर इस भयंकर गलती को अगर मौके पर ही सुधार लिया गया होता, तो आज इस अखबार की ऐसी छीछालेदर नहीं हो पाती।
आपको बता दें कि गांधीजी पर केंद्रित पहला गिरमिटिया नामक किताब के लेखक बड़े साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर की मृत्यु 9 फरवरी हो गई थी। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर के बीच में गिरिराज किशोर के बजाय विश्व हिंदू परिषद के आचार्य हिंदूवादी नेता आचार्य गिरिराज किशोर की फोटो लगा दी थी। आचार्य गिरिराज किशोर की मृत्यु कोई 5 साल पहले हो चुकी है। बताते हैं कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने डाक एडीशन छोड़ने के बाद अपने आखिरी यानी सिटी एडीशन की तैयारी के दौरान ही संपादकीय लोगों ने उस गलती को पकड़ लिया था। इसीलिए इस अखबार के सिटी एडिशन में यह अपराध सुधार लिया गया।
लेकिन इस अखबार के संपादकीय प्रबंधकों ने वाराणसी और इलाहाबाद समेत उस रूट के समय सभी जिलों को भेजी जा चुकी इस अखबार की प्रतियों को लेकर जा रही टैक्सियों को रोकने की कोई भी कोशिश नहीं की। नतीजा यह हुआ वाराणसी और इलाहाबाद तथा उन सभी रास्तों पर आने वाले जिलों को भेजने वाली इस अखबार की प्रतियां बेधड़क पहुंचीं, और बाकायदा वितरित भी होती रहीं। बताते हैं कि अगर उस समय यह गलती पकड़ते ही संपादकीय प्रबंधक लोग सक्रिय हो जाते, और प्रसार प्रबंधकों के संयुक्त प्रयास हो जाते हैं तो इस अखबार की ऐसी डरावनी छीछालेदर की जा सकती थी

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