संपादक ने माना कि टेक्निकल ग्लिच नहीं, चेहरा ही गंदला है

दोलत्ती

: बात-बात पर बात बदलते जा रहे हैं टाइम्‍स ऑफ इंडिया के संपादक : पहले टेक्निकल-ग्लिच, फिर ट्रेनी-जर्नलिस्‍ट, लेकिन आखिरकार खुद की करतूत मान ली :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अपनी करतूत का ठीकरा नवजात पत्रकारों यानी ट्रेनिंग जर्नलिस्‍ट बच्‍चों पर थोपना चाह रहे थे। लेकिन जब दोलत्‍ती संवाददाता ने उनसे सिलसिलेवार सवाल-जवाब तलब करना शुरू किया, तो आखिरकार टाइम्‍स आफ इंडिया के स्‍थानीय संपादक प्रवीण कुमार ने कुबूल लिया कि, यह गलती उनकी खुद भी है।
बड़े साहित्‍यकार और पद्मश्री पुरस्‍कार से सम्‍मानित गिरिराज किशोर के मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया ने जो अपराध किया है, वह तो स्याही स्याही ही नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा भयावह और गैरजिम्मेदारी की नजीर साबित कर दिया है। इस अखबार के संपादक ने आखिरकार यह कुबूल लिया है कि बड़े साहित्यकार गिरिराज किशोर की मृत्यु पर छपी खबर में फोटो ही बदल दी गयी थी। यह खबर इस अखबार के पहले पन्‍ने पर बाकायदा बॉटम लीड के तौर पर छापी गयी है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर के साथ साथ जो फोटो छापी है, उसमें शर्मनाक मामला यह है कि इस बड़े साहित्यकार गिरिराज किशोर के बजाय विश्व हिंदू परिषद के 5 साल पहले दिवंगत हो चुके आचार्य गिरिराज किशोर की फोटो छाप दी गयी थी। मगर टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक अपनी इस गलती को छुपाने की भरसक कोशिश करते रहे हैं।
दोलत्‍ती संवाददाता ने आज इस मामले पर टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक प्रवीन कुमार से बातचीत की। दोलत्‍ती संवाददाता ने पूछा कि आखिर यह तकनीकी गलती कैसे हुई। इतने ढेर सारे पत्रकारों की मौजूदगी के बावजूद यह सारा कुछ कैसे हो पाया। दोलत्‍ती संवाददाता के सवालों पर प्रवीन कुमार ने यह स्वीकार किया कि यह गलती ही है। उनका कहना था कि इस दौरान ट्रेनी जर्नलिस्ट ड्यूटी पर थे और उनसे अनजाने में यह त्रुटि हो गई। उनका कहना था ट्रेनी जर्नलिस्‍ट लोग चीनी यानी सतही स्तर पर होते हैं। इसलिए गलती हो गई।
लेकिन संवाददाता ने स्‍थानीय संपादक प्रवीन कुमार से यह प्रश्न किया,  कि किसी भी अखबार के किसी भी पन्ने की खबर और उसका लेआउट फाइनल करने के पहले संपादकीय प्रमुख यानी संपादक खुद चेक करने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में ट्रेनी जर्नलिस्‍ट पर ऐसे त्रुटियों को थोपने का क्‍या औचित्‍य है और क्‍या यह कह कर आप संपादकीय प्रभारी अथवा अपनी जिम्‍मेदारी से बचने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। खास तौर पर तब, जब कि किसी भी अखबार के किसी भी पन्‍ने का लेआउट, उसकी हेडिंग, उस पर लगायी गयी फोटो और उस अखबार के सौंदर्य को जांचने की जिम्‍मेदारी संपादक की ही होती है। स्‍थानीय संपादक प्रवीन कुमार ने कुबूला कि:- हांं,, ऐसी गलती हो गई है।

उन्होंने यह भी बताया कि डाक एडिशन के वाराणसी और इलाहाबाद से संबंधित जिलों को भेजे जाने वाली प्रतियों में यह गलती सामने आ गयी थी। यह गलती उसी समय में पकड़ में आ गई थी। प्रवीन कुमार कहना है कि इस चूक का एहसास होते ही टाइम्स ऑफ इंडिया ने सिटी एडिशन में उसे सुधार दिया था।
लेकिन जैसा कि सिटी एडीशन वाली खबर में पहले पन्‍ने पर ही छापा जा चुका है, उसका कारीजेंडम का भाव अपने आप में एक साफ झूठ था। उस का मकसद अपने अपराध को छुपाते हुए अपने टेक्निकल ग्लिच के तौर पर थोपना ही था।
कुछ भी हो, इस अखबार के इस स्‍थानीय संपादक ने इस अपराध को बहुत शातिराना अंदाज में छुपाने का भी बड़ा अपराध किया है। और इस तरह इस संपादक ने अपने आप को बरी करने की कोशिश भी की है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *