यह सोशल-साइट्स हैं। यहां स्‍नेह और आनंद बटोरिये, घृणा नहीं

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: सर्वज्ञ नहीं, सर्वज्ञदास बनना श्रेयस्‍कर : अंतस टटोलिये, दूसरे के गिरहबान में तांका-झांकी नहीं : स्‍त्री को जीतने की कोशिश के बजाय उन्‍हें अपनाना चाहिए : ज्ञान के कींचड़ में नहीं, प्रज्ञा-उपवन में कुलांचे भरिये :

कुमार सौवीर
लखनऊ :
दोस्‍तों ! हम सोशल-साइट्स में है, जहां व्‍यक्ति भी हैं, और समूह यानी ग्रुप नुमा चौपाल भी मौजूद है। आप चाहें तो उसे दालान, सहन या ड्योढ़ी, बैठक, ड्राइंगरूम भी मान सकते हैं। जहां विभिन्‍न विचारधाराओं के लोगों का उपवन नुमा माहौल है। निहायत पारिवारिक। पूरी उन्‍मुक्‍तता के साथ, लेकिन आयु, बौद्धिक क्षमता और घरेलू रिश्‍तों जैसा ही घट-बढ़ भी।
कई दिनों से देख रहा था, आंक रहा था कि कई समूहों में परस्‍पर आनंद हासिल करने के बजाय, वहां घृणा की अजब-गजब तश्‍तरियां परोसी जा रही हैं, जहां तथ्‍य नहीं, भ्रम हैं। सच नहीं, मिथ हैं। ऐसे में एक प्रमुख न्‍यूज पोर्टल और वेब समाचार संस्‍थान मेरी बिटिया डॉट कॉम के संस्‍थापक-सम्‍पादक के अधिकार के सााि मुझे कहना पड़ रहा है कि सार्वभौमिक सत्‍य है कि कोई भी प्राणी सर्वज्ञ नहीं हो सकता है। हां, आप अपना नाम सर्वज्ञ, सर्वज्ञानंद जरूर रख सकते हैं, लेकिन सर्वज्ञ हो नहीं सकते। तो बेहतर यही हो कि आप सर्वज्ञ-दास बन जाएं। आप अपनी विद्वता पर गुमान माने रखिये, और हम आपके ज्ञान के सामने अपना शीश झुकाते रहें। लेकिन इकतरफा नहीं चल सकता। आपको भी दूसरी विद्वता के सामने शीश झुकाना ही पड़ेगा। वाइस-वर्सा।
जरूरी नहीं कि हम किसी मसले पर किसी नतीजे पर पहुंच ही सकें। हम सिर्फ कोशिश कर सकते हैं। खूब बोलिये, लिखिये, झोंटा-नुचव्‍वर कीजिए, टंगड़ी मारिये। लेकिन यह सोच कर ही यह आप अपने परिवार के सदस्‍यों के साथ जिस तरह व्‍यवहार करते या अपेक्षा कर सकते हैं, उसी तरह का व्‍यवहार दूसरों से भी कीजिए।
जो आनन्‍द सीखने में है, वह झगड़ने में कहां। ज्ञानी होने का भ्रम पाल कर दूसरों को क्षुद्र मानने की कोशिश करने के बजाय तो मैं खुद को छात्र मान कर किसी सिंह-शावक की तरह कुलांचें मारने में अपना कल्‍याण समझता हूं। ज्ञान की सीमा बहुत छोटी होती है मेरे दोस्‍त। जबकि प्रज्ञा असीम होती है। ज्ञान से परे जाने की कोशिश कीजिए न।
हो सकता है कि कोई आपकी बात न समझ पाया हो। लेकिन उसका अंतिम फैसला आप ही करेंगे, यह तो किसी भी संविधान में नहीं लिखा गया है। आप जितना बोल सकते हैं, अपनी सीमा में रह कर, बोलिये। लेकिन जब दूसरे को आपकी बात पिंच कर रही हो, कष्‍ट दे रही हो, तो फिर तत्‍काल शांत हो जाइये मेरे दोस्‍त।
अगले को अपने गिरहबान में झांकने का मौका दीजिए, बजाय इसके कि आप खुद ही उसके गिरहबान में जबरिया घुसने की कोशिश कर बैठे। जाति का विभेदीकरण मानव की सदियों परम्‍परा का परिणाम है। उसका आधार गुणों का चिन्‍हींकरण करना ही था। कालांतर में वह छोटे-बड़े में विभक्‍त हो गया।
कोई बात नहीं। हम इस विवाद को यहीं खत्‍म कर दें, अगर उससे किसी को कष्‍ट हो रहा था। जातिगत हमला करना बंद मत कीजिए। आपको पूरा अधिकार है कि आप वह उसके कुकर्मों पर गरिया दें, लेकिन उसकी जाति को कैसे गाली दे सकते हैं। तो ऐसा मत कीजिए।
स्‍त्री हमारी सर्वाधिक अधिकार-सम्‍पन्‍न मित्र है। उसे स्‍नेह से अपनाइये, क्रूरता या उद्दण्‍डता से जीतने की कोशिश किसी को भी मुंह के बल चारों-खाने चित्‍त कर सकती है। औरत मेधा और सौंदर्य की खान है, उसका दमन करके आप खुद को ही खो बैठेंगे। उसे परिष्‍कृत करने में उसकी मदद कीजिए, अगर आप वाकई बहुत समझदार हैं तो। उसे जीतने की साजिश मत कीजिए, उसे अपनाने का जतन कीजिए।
मेरे दोस्‍त
प्रमुख न्‍यूज पोर्टल www.meribitiya.com ने बेहद कम वक्‍त में ही सोशल-साइट्स पर अपनी एक गहरी छाप बनायी है। इस पूरे दौरान हमारी टीम ने जो भी तत्‍व हासिल किये हैं, हम आप सबके सामने प्रस्‍तुत कर रहे हैं।
सच बात तो यही है कि हम सब एक-एक निजी संस्‍कृति का ढेर हैं। अलग-अलग खुशबू का अंश हैं। अनोखे फूल हैं हम सब। फिर मैं ब्‍लाडी-फूल क्‍यों बनूं। आप सब के साथ बैठ-मिल कर ही फूलों के उपवन का गुलदस्‍ता बनने की प्रक्रिया में जुटने-समर्पित होने की कोशिश क्‍यों न करूं।
तो फिर ऐसा कीजिए, ताकि हम जन्‍म-जन्‍मान्‍तरों तक एक दूसरे को याद करते रहें, न कि पानी पी-पीकर गरियाने की कुत्सित कल्‍पनाएं बुनना।
क्‍या राय है आपकी मेरे दोस्‍त
अपनी राय से हमें भी अवगत कराते रहियेगा।
आप अपनी राय हमारे इस पते पर भी भेज सकते हैं:- kumarsauvir@gmail.com

कुमार सौवीर
संस्‍थापक-सम्‍पादक
www.meribitiya.com
जहां सच सीधी डगर तक पहुंचने की कोशिश करता है। अपनी पूरी शिद्दत के साथ।
साथ बने रहिये और पढ़ते रहिये:- www.meribitiya.com

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