सीवान में शहाबुद्दीन, नाम एक पिशाच का

सैड सांग

: जहां राजेंद्र प्रसाद बाबू जी जीते थे, वहीं उस पिशाच ने अपने पांव फैलाये : नेताओं ने शहाबुद्दीन को पिशाच बनाने में मदद की : जेएनयू छात्रसंघ अध्‍यक्ष की हत्‍या और तेजाब-स्‍नान कांड जैसे दुर्दांत कांडों का नेता है यह पिशाच :

संवाददाता

सीवान : 90 के दशक की शुरुआत में सीवान की एक नई पहचान बनी.वजह बाहुबली नेता शहाबुद्दीन थे.वे अपराध की दुनिया से राजनीति में आए थे. 1987 में पहली बार विधायक बने और लगभग उसी समय जमशेदपुर में हुए एक तिहरे हत्याकांड से उनका नाम अपराध की दुनिया में मजबूती से उछला. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कॉमरेड चंद्रशेखर की हत्या, एसपी सिंघल पर गोली चलाने से लेकर तेजाब कांड जैसे चर्चित कांडों के सूत्रधार वही माने गए. उसी चर्चित तेजाब कांड पर फैसला आया तो सीवान और बिहार के दूसरे हिस्से में रहने वाले लोगों के जेहन में 12 साल पुराने इस खौफनाक घटना की याद जिंदा हो उठी.

फरवरी के पहले सप्ताह में एक खबर आई कि शहाबुद्दीन को बहुचर्चित तेजाब कांड में जमानत मिल गई है. शहाबुद्दीन, सीवान और तेजाब कांड, तीनों का नाम एक साथ सामने आते ही बिहारवासियों के जेहन में कई खौफनाक यादें ताजा हो उठती हैं. बिहार के सीमाई इलाके में बसे सीवान जिले को कई वजहों से जाना जा सकता था; भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली होने की वजह से, रेमिटेंस मनी (विदेश में बसे भारतीय कामगारों की ओर से भेजी गई रकम) में बिहार का सबसे अव्वल जिला रहने की वजह से भी. कई और विभूतियों की वजह से भी सीवान की पहचान रही. हालांकि 90 के दशक की शुरुआत में सीवान की एक नई पहचान बनी. वजह बाहुबली नेता शहाबुद्दीन थे. जिस जीरादेई में राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था, उस इलाके से पहली बार विधायक बनकर शहाबुद्दीन ने राजनीति में कदम रखा था और कई बार सांसद-विधायक रहे. लेकिन शहाबुद्दीन इस वजह से नहीं जाने गए. वे अपराध की दुनिया से राजनीति में आए थे. 1987 में पहली बार विधायक बने और लगभग उसी समय जमशेदपुर में हुए एक तिहरे हत्याकांड से उनका नाम अपराध की दुनिया में मजबूती से उछला. उसके बाद तो एक-एक कर करीब तीन दर्जन मामलों में उनका नाम आता रहा. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कॉमरेड चंद्रशेखर की हत्या, एसपी सिंघल पर गोली चलाने से लेकर तेजाब कांड जैसे चर्चित कांडों के सूत्रधार वही माने गए. उसी चर्चित तेजाब कांड पर फैसला आया तो सीवान और बिहार के दूसरे हिस्से में रहने वाले लोगों के जेहन में 12 साल पुराने इस खौफनाक घटना की याद जिंदा हो उठी.

2004 में 16 अगस्त को अंजाम दिए गए इस दोहरे हत्याकांड में सीवान के एक व्यवसायी चंद्रकेश्वर उर्फ चंदा बाबू के दो बेटों सतीश राज (23) और गिरीश राज (18) को अपहरण के बाद तेजाब से नहला दिया गया था, जिसके बाद उनकी मौत हो गई थी. इस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह चंदा बाबू के सबसे बड़े बेटे राजीव रोशन (36) थे. मामले की सुनवाई के दौरान 16 जून, 2014 को राजीव की भी हत्या कर दी गई. इसके ठीक तीन दिन बाद राजीव को इस मामले में गवाही के लिए कोर्ट में हाजिर होना था. चंदा बाबू और उनकी पत्नी कलावती देवी अब अपने एकमात्र जीवित और विकलांग बेटे नीतीश (27) के सहारे अपनी बची हुई जिंदगी काट रहे हैं. पिछले साल दिसंबर में ही सीवान की एक स्थानीय अदालत ने इस हत्याकांड में राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के अलावा तीन अन्य लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

शहाबुद्दीन को इस मामले में जमानत मिलने के चार-पांच दिन बाद चंदा बाबू से इस सिलसिले में फोन पर बातचीत हुई. शाम के कोई सात बजे होंगे. उधर से एक उदास-सी आवाज थी. पूछा- चंदा बाबू बोल रहे हैं? जवाब मिला- हां..! ‘हां’ सुनकर मन में संकोच और हिचक का भाव भर गया. सोचता रहा कि पूरी तरह से बिखर चुके और लगभग खत्म हो चुके एक परिवार के टूटे हुए मुखिया से बात कहां से शुरू करूं. बात सूचना देने के अंदाज में शुरू हुई. मैंने बताया, ‘चंदा बाबू! सूचना मिली है कि आपके केस को सुप्रीम कोर्ट में देखने को प्रशांत भूषण तैयार हुए हैं.’ चंदा बाबू कहते हैं कि हम तो नहीं जानते! फिर पूछते हैं- प्रशांत भूषण जी कौन हैं? मैंने उन्हें बताया कि देश के बड़े वकील हैं.

यह बात जानकर चंदा बाबू की आवाज फिर उदासी से भर उठती है. वे कहते हैं, ‘देखीं! केहू केस लड़ सकत बा तऽ लड़े बाकि हमरा पास ना तो अब केस लड़े खातिर सामर्थ्य बा, न धैर्य, न धन, न हिम्मत.’ यह कहने के बाद एक खामोशी-सी छा जाती है. थोड़ी देर बाद बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. बात अभी शुरू होती है कि चंदा बाबू अतीत के पन्ने पलटने लगते हैं. कहानी इतनी लंबी और इतनी दर्दनाक है कि बताते-बताते कई बार चंदा बाबू रुआंसे होते हैं. उनकी आवाज में उतार-चढ़ाव आसानी से महसूस किए जा सकते हैं. वे गुस्से में भी आते हैं और उनकी दर्दनाक दास्तान सुनते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं. जब चंदा बाबू अपनी व्यथा कहते हैं तो कई बार या कहें कि बार-बार ऐसा लगता है कि वे अपनी कहानी सबको बताना चाहते हैं. पूरे देश को कि कैसे वे व्यवस्था से, शासन से, खुद से हार चुके हैं.

बिहार में इंसानियत के नाम पर कलंक और एक निहायत घिनौने पिशाच का मोहम्‍मद शहाबुद्दीन। उससे जुड़ी खबरों को प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटियाडॉट कॉम लगातार प्रस्‍तुत कर रहा है। इससे जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

पिशाच का नाम शहाबुद्दीन

बिहार के शहाबदु्दीन ने एक जांबाज पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मार कर हत्‍या कर दी थी। लेकिन यूपी में भी बहादुर और बेकाब पत्रकारों पर जानलेवा हमले करने वालों की तादात कम नहीं है। कम से कम शाहजहांपुर में जागेंद्र सिंह नामक एक पत्रकार को जिन्‍दा फूंक डालने वाला हौलनाक काण्‍ड, और उसके बाद पत्रकारों का रवैया निहायत शर्मनाक ही माना जाएगा। उससे जुड़ी खबरों को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:-

अपराधियों से गलबहियां करते पत्रकार

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