: अनेक मूर्धन्य पत्रकारों ने अपने पत्रकारीय-जीवन की शुरूआत इसी अखबार से की : लखनऊ में तब सिर्फ पायनियर प्रकाशन समूह की ही तूती बोलती थी : मेरे सर्वोत्तम सम्मानित व्यक्ति स्वर्गीय सियाराम शरण त्रिपाठी यहां मुख्य उप सम्पादक थे :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक वक्त था, जब राजधानी लखनऊ में सिर्फ और सिर्फ पायनियर प्रकाशन समूह की ही तूती बोलती थी। विधानसभा मार्ग पर और विधानसभा से चारबाग आगे बढ़ते करीब दो सौ मीटर दूर हुसैनगंज और हुसैनगंज के पहले ही यह प्रकाशन-स्थान थे। यानी आकाशवाणी के ठीक सामने। यहां से हिंदी में स्वतंत्र भारत और अंग्रेजी में पायनियर अखबार प्रकाशित हुआ करते थे।
वैसे लखनऊ से तब और भी दैनिक अखबार निकला करते थे। मसलन एसोसियेटेड प्रेस का नेशनल हेराल्ड, हिन्दी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज भी छपता था। कहने को तो तरूण मित्र और लखनऊ मेल भी छपता था। मगर एसोसियेटेड प्रेस के प्रकाशन वाले यह तीनों अखबारों पर चूंकि कांग्रेसी-पोषण के चलते विशेष-विचारधारा का ठप्पा लगा हुआ करता था और तरूण मित्र व लखनऊ मेल सांध्य समाचार पत्र थे, इसलिए इनको मुख्य प्रकाशन का स्थान ही नहीं मिल पाया था। वैसे भी तरूण मित्र की श्रेणी आरएसएस विचारधारा और वित्त पोषित थी, ठीक उसी तरह कांग्रेस का वित्तपोषण नवजीवन, नेशनल हेराल्ड और कौमीआवाज को होता है। तरूणमित्र राजेंद्र नगर में छपता था, जबकि लखनऊ मेल कैसरबाग बस अड्डे से गोलागंज की चढ़ाई वाली सड़क पर छपता था।
हालांकि एसोसियेटेड प्रेस का छापाखाना भी खासा बड़ा था, जो कैसरबाग चौराहे के कोने पर था, जो विधानसभा मार्ग की शुरूआत है। लेकिन पायनियर जैसा विशालतम छापाखाना ऐसा कहीं था ही नहीं। हालांकि बाद में यहां एक साप्ताहिक पत्रिका भी हिन्दी में प्रकाशित होने लगी, लेकिन उसका तियां-पांचा चंद बरस में ही हो गया। मगर स्वतंत्रभारत और पायनियर का कद कोई भी अखबार कोई नहीं छू पाया। देश के अनेक मूर्धन्य पत्रकारों ने अपने पत्रकारीय-जीवन की शुरूआत इसी अखबार से की थी।
मेरे पापा यानी मेरे जीवन के सर्वोत्तम सम्मानित व्यक्तित्व स्वर्गीय सियाराम शरण त्रिपाठी यहां मुख्य उप सम्पादक हुआ करते थे। बहराइच में जन्मे और मूलत: सीपीआई के कार्डहोल्डर पिता जी का नाम पार्टी में चारूचंद्र के तौर पर विख्यात था। कानपुर में दैनिक जागरण से उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन की शुरूआत की। पत्रकारिता में आने के बाद वे पत्रकार राजनीति और साहित्यिक-सामाजिक कार्यो में बेहद तल्लीनता के साथ जुड़े। उन्होंने अवध अकादमी का सर्वोच्च ओहदा हासिल किया और साथ ही पत्रकार राजनीति के तहत आईएफडब्ल्यूजे राष्ट्रीय सचिव और यूपीडब्ल्यूजे के प्रदेश महामंत्री भी बने। प्रेस-क्लब ही उनका मुख्य कार्यालय था। आईएफडब्ल्यूजे की यूपी में जितनी भी इकाइयां हैं, उनमें से अधिकांश पापा के ही प्रयासों से गठित हुई थीं।
बहरहाल, बाद वक्त ने पलटा खाया और वहां की दो मंजिली इमारत एक बहु-मंजिली रतन स्क्वायर में तब्दील हो गयी। इसमें पासपोर्ट दफ्तर समेत कई कार्यालय हैं। आज अचानक मेरी बेटी बकुल की नजर पासपोर्ट आफिस के बेसमेंट की दीवार में टंगे बहुत गंदले से एक बोर्ड पर पड़ी, जिस पर दि-पायनियर लिखा था। न जाने किस मकसद से यह बोर्ड वहां सुरक्षित टांग दिया होगा। बकुल इसी इमारत में पासपोर्ट आफिस में काम करती हैं। उन्होंने जब यह बोर्ड देखा तो चौंक गयी, कि यह तो उनके पितामह के दौर का प्रमाण था। बकुल ने फौरन इस बोर्ड की फोटो खींच ली और मुझे भेज दिया। चूंकि यह बोर्ड काफी ऊंचाई पर था, इसलिए बकुल ने उसकी फोटो खींचने के लिए अपनी एक्टिवा को स्टैंड पर लगाया और उस पर पैर जमा कर यह फोटो क्लिक कर दी।
आप भी तो निहारिये कि बीते वक्त का एक सुनहरा अतीत कैसा हुआ करता था।