फादर्स डे: यह काफ्का के बाप का नहीं, मेरे प्‍यारे पिता का किस्‍सा है

मेरा कोना

: रहे होंगे फ्रांक्‍वा काफ्का दुनिया के महान साहित्‍यकार, मगर मेरे पिता तो बेमिसाल थे : आप दाम्‍पत्‍य सूत्रों को सुलझाना चाहें तो मेरे घर देखियेगा : तब वह स्‍वतंत्र-भारत अखबार एक विचार-तोप हुआ करता था, और मेरे पिता बारूद का एक महान गोला : पितृ-दिवस पर विशेष -एक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : किसी की भी ज़िन्दगी में बाप की क्या भूमिका होती है, यह बात दुनिया में मशहूर साहित्यकार फ्रांक्वा काफ़्का शायद ठीक से समझ नहीं पाये। मानवीय रिश्तों को देखने, समझने और उसका विश्लेषण और व्याख्या करने में काफ्का वाकई बेजोड़ रहे हैं। लेकिन मैं अपने निजी सन्दर्भ और अनुभवों के आधार पर मैं दावे से कह सकता हूँ कि काफ्का ने शायद अपने पिता को समझने में सिरे से ही गलती की। आप इस मसले को अगर ठीक से समझना चाहें तो फिर काफ्का की लिखी एक छोटी सी किताब को पढि़येगा, जिसका नाम है:- “पिता को एक पत्र।” इस किताब में जितनी भी गालियां हो सकती थीं, काफ्का ने अपने पिता को दे डालीं। नतीजा यह कि उन्होंने बाप नामक संस्था को अनजाने में ही बदनाम कर दिया। मेरी नजर में यह एक निहायत घटिया कृत्‍य था।

मेरे बाप के बारे में मेरे अनुभव और तथ्य, फ्रांक्ज काफ्का के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत हैं।

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मेरे गले, फेफड़े और दिल को नश्तर की तरह जीना हराम करती उनकी नजर, चेहरे पर कसाई वाली क्रूरता, व्यवहार पर बेहद सख्त चट्टानी अंदाज, बात-बात पर उनके पंजे से मेरे गालों-पीठ पर बजते सारे सातों-सुर, विधानसभाओं की बैठकों की निरर्थक बहस को खत्म करने से पहले पूछे जाने वाले सवाल—- बाप रे बाप। काफ्का के ठीक अलग, मैंने बाद की जिन्दगी में अपने पिता के बारे में जब भी सोचा, पाया कि मेरे पिता जैसा शख्स कोई नहीं। हमारी नियति थी पारिवारिक-विघटन, और शायद मैं सर्वाधिक पिटा-पिटाया पुर्जा रहा हूं जिसे मेरे परिवार के लिए भी भले कोई खास उपयोगिता या आवश्यकता नहीं रही या समझी गयी हो, लेकिन वह जिस भी स्थान पर लगा, वह अपनी उपयोगिता, उपादेयता और सार्थकता साबित करता रहा। आज भी।

मैं मानता हूँ कि काफ्का बेहद संवेदनशील व्यक्ति थे। लेकिन शायद मुझसे बेहद कम। काफ्का ने अपने बाप के बारे में केवल लिखा, लेकिन मैंने अपने पिता को समझा भी। और कहने की जरूरत नहीं कि किसी को देखने, लिखने और समझने में जो फर्क होता है, वह आप सब जानते-समझते ही होंगे। ( क्रमश: )

चेहरे पर झुर्री, अंदाज सख्‍त, फैसले कड़े, लेकिन ऐसे आवरणों के भीतर धड़कता एक निहायत प्‍यारा-सा बाप का दिल। जो न समझे हैं, उनसे केवल यह ही गुजारिश है, सिफारिश है कि वे अपने पिता को समझने की कोशिश करें। जी हां, आज फादर्स-डे है। यानी पितृ-दिवस।

मैं हर बरस अपने पिता की बरसी या पिता-दिवस पर अपने पापा पर लगातार लिखता ही रहता हूं। इसलिए बदस्‍तूर आज भी लिखा है। हो सकता है कि इसमें कुछ रिपिटेशंस हों, लेकिन आत्‍मा जस की तस है। श्रंखलाबद्ध है पिता के प्रति यह श्रद्धांजलियां। जो अगली कुछ कडि़यों में आप पढ़ सकते हैं। इनकी कडि़यों को देखने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

आई लव यू पापा


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