: अवसाद से बड़ी क्या बीमारी होगी और इस कहानी से अधिक अवसाद क्या है का ख़ुलासा और क्या होगा :
भरत पी तिवारी
नई दिल्ली : डिप्रेशन, इस शब्द से इतना भय है कि इसे बोलना भी नहीं चाहता. यह भय उस मानसिकता को दिखाता है जिसमें यह पता है कि डिप्रेशन से जुड़ी किसी भी बात से किसी भी तरह दूर रहना है. जयश्री रॉय की कहानी ‘नीले उदास दिन…’ में यह भय शब्दों में ऐसे बयान होता है कि मैं इसे ‘द बेस्ट हिंदी स्टोरी ऑन डिप्रेशन…’ लिखे बगैर नहीं रह पाता. अवसाद से बड़ी क्या बीमारी होगी और इस कहानी से अधिक अवसाद क्या है का ख़ुलासा और क्या होगा.
…कभी-कभी होश में रहना कितना कठिन लगता है! जी चाहता है हमेशा के लिए नहीं तो कुछ देर के लिए मर जाय! मोर्ग के ठंडे ड्राअर में कोई रख दे कफन में लपेट कर। भट्टी-से सुलगते माथे को जरा ठंडक मिले, सांस ना लेनी पड़े कुछ दिन…
वरिष्ठ आलोचक रोहिणी अग्रवाल अपनी _फेसबुक_ वाल पर लिखती हैं :
_हंस में प्रकाशित जय श्री राय की कहानी उदास नीले दिन एक बेहतरीन कहानी – अवसाद के चिकने काले तरल अंधेरों की शिनाख्त करती._
_अवसाद कैंसर से भी बुरा मर्ज है, लाइलाज, और आधुनिक संस्कृति का बाय प्रोडक्ट।_
_मन की भीतरी परतों का मार्मिक विश्लेषण। पूरी कहानी बांचने के लिए क्लिक कीजिए:-
https://www.shabdankan.com/2018/11/the-best-hindi-story-on-depression-udaas-nile-din-joyshree-roy.html