मैं बजरंगबली हूं, नरेश अग्रवाल वाला ठर्रा बंदर नहीं

बिटिया खबर
: झमाझम बारिश का क्रेडिट हनुमान जी को है, बकलोल पर अभी पूंछ तरेर दूं तो फौरन चड्ढी गीली कर बैठेगा कि ठर्रे में हनुमान बसते हैं : रंभा-मेनका नाचेंगी, हाहा-हूहू गायेंगे, इंद्र ड्रिंक्‍स लेंगे , विष्‍णु जी लक्ष्‍मी जी से गोड़ दबवायेंगे : काला भैंसा लेकर यमराज जी वारंट तामील करते हैं :

कुमार सौवीर
लखनऊ : तो दोस्‍तों, सच बात तो यही है कि मैं इसीलिए भगवान-वगवान और ईश्‍वर-फिश्‍वर पर बहुत आस्‍था रखता हूं। बल्कि भगवान और ईश्‍वर ही नहीं, उनकी फेमिली के जितने देवि-देवता हैं, उन पर भी मेरी कड़ी आस्‍था, प्रेम, दोस्‍ती वगैरह है। दरअसल यह सब लोग बहुत सिस्‍टम के साथ काम करते हैं। हंसी-ठिठोली भी करेंगे, गुस्‍सा भी करेंगे, दोस्‍ती भी करेंगे, झंझट भी करेंगे और सामान्‍य कामधाम भी करेंगे। रंभा-मेनका नाचेंगी, हाहा-हूहू गायेंगे, इंद्र जी ड्रिंक्‍स लेते रहेंगे, विष्‍णु जी शेषनाग पर लेकर लक्ष्‍मी जी से अपना गोड़ दबवाते रहेंगे। सरस्‍वती जी वीणा बजायेंगी। अपना काला भैंसा लेकर यमराज जी झोंटा पकड़ कर फाइनल वारंट तामील करने निकल जाया करेंगे।
भोजन-पानी तो चलता ही रहता है, उसके बिना तो किसी सम्‍पादक और जज ही नहीं बल्कि मंत्री-राज्‍यपाल तक का काम नहीं चलता। यकीन न हो तो संपादक उपेंद्र राय, पीके तिवारी, तरूण तेजपाल, बाबा आसाराम बापू, राधे मां, हिमाचलवोले वीरभद्र, हरियाणा वाले गोपाल कांड़ा, आंध्रप्रदेश राजभवन वाले विश्‍वविख्‍यात नरायण दत्‍त तिवारी, तमिलनाडु वाली जयललिता, सपरिवार दुराचारी अमरमणि त्रिपाठी, बांदा वाले पुरूषोत्‍तम द्विवेदी, अनन्‍त मिश्र अंटू, दिल्‍ली वाला मंत्री संदीप बंसल, अदालतों वाले ओपी मिश्रा और एसपी शुक्‍ला, यूपी के मुख्‍यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल, पुराने आलोक रंजन, प्रदीप शुक्‍ला वगैरह-वगैरह। छोडि़ये आखिर किसका-किसका नाम बताया जाए।
खैर, मैंने मंगलवार को लिखा था कि गर्मी-उमस बेहिसाब है, लेकिन भगवान कुछ नहीं कर रहे हैं। मानसून की बारिश वाले डिपार्टमेंट वाले प्रमुख मेघनाथ और उनकी मेघनथनी जी से मैंने अप्‍लीकेशन लगायी थी। लिखा था कि वे अब रहम करें मानवों-प्राणियों को। उस पत्र का मजमून मैं निम्‍नलिखित चिपकाये दे रहा हूं।
“हे मेघनाथ और मेघनथनी जी !
हमें आपकी यह फोटू (फोटोशॉप ही सही) देख कर ही पता चल गया था कि आप लोग आजकल बहुत बिजी चल रहे हैं। लेकिन गुजारिश है कि इसी बीच आप लोगों को अगर अपनी इश्क़बाजी से थोड़ी फुरसत मिल जाए तो हम लोगों पर भी तनिक कृपा बरसा लेना!
यहाँ गर्मी से मरे जा रहे हम यार।
बाई गॉड की कसम, अब तो इतना पसीना भी नहीं निकल रहा है, जितना हमारे किसान सूखे के अंदेशे से आंसू बहाने शुरू कर चुके हैं।
तुम तो देवि-देवता लोग हो। तुम्हारा तो कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। लेकिन किसान बर्बाद हो जाएंगे। सूखा-राहत को लेकर मारामारी होगी। अमीन, तहसीलदार, एसडीएम और डीएम लोग जश्न मनाएंगे। मुनाफाखोर बनिया दोनों हाथों से रुपया लूटेंगे। सचिवालय के छोटे -बड़े बाबू फाइलें लटकाएँगे।
जनता अपनी छाती पीटेगी”
अब देखिये न, कि कितनी गम्‍भीरता से वहां त्‍वरित कार्रवाई होती है। रात को ही हनुमान जी ने मुझे सपने में आकर तब दर्शन दिया, जब मैं हजरतगंज का जायजा ले रहा था। गांधी प्रतिमा पार्क पर ही रखीं बेंच पर मैं बैठा था, सम्‍मान में उठ कर खड़ा हो गया। उन्‍होंने आत्‍मीयता के साथ मेरा कंधा थपथपाया, और बोले कि बस आज आपकी अर्जी मिली जो आपने भेजी थी, मेघनथनी ने अपना नोट लेकर मुझे फारवर्ड कर दिया था। खैर, यह रही आपकी अर्जी, अब बताइये कि मुझे क्‍या करना है।
मैं झुंझला पड़ा। बोला:- हन्‍नू जी, आपने तो बिलकुल वही बात कर दी जो अभिषेक गुप्‍ता की अर्जी पर राज्यपाल नाइक और मुख्‍यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल के मामले में भाजपा के संदीप बंसल के सपोर्टरों ने किया था। मैंने बारिश के लिए अर्जी मेघनाथ को भेजी थी, और आप मुझे हौंकने आ गये। खैर, अब आ ही गये हैं तो बताइये कि क्‍या स्‍वागत किया जाए आपका।
हनुमान जी हड़बड़ा गये, उन्‍होंने आनन-फानन अपने लंगोट से निकलते मूंज के जनेऊ को मरोड़ा और कंधे से जुम्बिश देकर गदा को सम्‍भाला और बोले:- नहीं नहीं। अरे आज मंगलवार है भाई। मंगल के दिन मैं न तो कुछ ऐसा-वैसा खाता हूं, और न ही कुछ पीता-शीता हूं। वह तो हरदोई वाला बकलोल नरेश अग्रवाल है न, जो संसद में अपना चूतियापंथी कर गया, कि ठर्रे में हनुमान। अभी पूंछ तरेर दूं तो फौरन चड्ढी गीली कर बैठेगा। और हैरत की बात तो देखिये कि राम-भक्‍त होने के नाम पर अयोध्‍या में राममंदिर बनाने का सपना बेचने वालों ने उसे भाजपा में ज्‍वाइन करा दिया है।
तो अब मैं आपकी क्‍या सेवा करूं हन्‍नू बाबा? यहां तो अशोक-वाटिका भी नहीं है, और यहां कोई सीता भी नहीं है। क्‍या किया जाए? और रही बात अर्जी की, तो गलती तो हम लोगों से भी हो जाती है। है कि नहीं? अगर ऐसा न होता तो मैं सूरज को पका सेब समझ कर मुंह में ले लेता। हालांकि मम्‍मी बचपन में यही सब समझाती रहती थीं, लेकिन उसके बाद से तो कसम खा ली थी मैंने कि जलता हुआ बल्‍ब मुंह में नहीं लेना चाहिए।
फिर?
फिर क्‍या? कुछ नहीं। मगर यह बताइये कि बारिश कब होगी? अच्‍छा-खासा आदमी एक ही झटके में भुना भुट्टा बना जा रहा है। हन्‍नू बाबा, अब तो बारिश करवा दीजिए। प्‍लीज।
आपकी बात तो मैं सपने में भी टाल सकता हूं। कभी टाला हो तो बताइये। आपको याद होगा कि 34 साल पहले जब सहारा इंडिया सुब्रत राय साप्‍ताहिक सहारा अखबार को बंद कर गया था और श्रमिकों को धेला भर पैसा नहीं देना चाहता था। तब रात को आपके घर पहुंचा था, और इसके पहले सुब्रत राय को भी बता आया था कि बे इसकी टोपी, उसके सिर वाले फ्राडिया। भूल गया कि कब कुमार सौवीर ने पीएसी और हजारों कर्मचारियों के सामने तुम्‍हारे भाई जयब्रत राय को जूतों से कूटा था। इसलिए इस बार दोबारा हरकत मत करो। कुमार सौवीर बहुत गुस्‍सैल आदमी है। तुम भी पिट जाओगे तो कैसे किसी के सामने अपना मुंह दिखाओगे। इसलिए इस बार भी दिमाग से काम करो, और सारे कर्मचारियों का पैसा फौरन अदा करो। और सौवीर जी, अगले ही दिन सुब्रत राय ने आप सब को बुला कर सारा हिसाब चुकता कर दिया था। कुछ याद आया या नहीं? तब एक मंगलवार को आप शाम को हनुमान सेतु वाले मंदिर के सामने दूसरी पटरी के फुटपाथ पर सायकिल टिका कर मुझे भल-भर गरिया रहे थे कि मैं तुमको अब तनिक भी भरोसा नहीं करता, तुम हनुमान नहीं, फ्राड हो। भगवान नहीं, ढोंगी हो। कुछ याद आया सौवीर जी या नहीं? आपने करीब डेढ़ घंटे तक मेरे ही सामने गरियाया था, लेकिन खामोश रहा। आप शायद उस समय समझ रहे थे कि मैं पाषाण-प्रतिमा हूं। लेकिन मैं क्‍या करता। प्रतिमा न बना रहता तो यह भक्‍तगण के नाम पर जिन लोगों की भीड़ मेरे आसपास मंडराती है, वह मुझे नोंच डालती। कि यह काम करो, वह काम करो। घर का घरेलू नौकर बना लेते कि कलुआ जाओ लकड़ी ले आओ, खेत जोत डालो, नाली साफ करो, यह करो, वह करो। धत्‍तेरी की। अरे यह भक्‍त नहीं, बवाल हैं। स्‍वार्थी परले दर्जे के। पहले सिर नवाते थे, फिर बेसन के लड्डू लेकर आये, फिर काजू की बर्फी अब पूरा टोकरा फल-फ्रूट लेकर आते हैं। कहते हैं कि बिजनेस बढ़वा दो, प्रमोशन करवा दो, मकान करवा दो, शादी करवा दो। चूतिया समझ रखा है इन ससुरों ने मुझको। जो लेकर मिठाई-सिठाई लेकर आते हैं, वापसी में वही लेकर लौट जाते हैं। किसी गरीब पर चवन्‍नी नहीं देते। धत्‍त तेरी की, मन तो करता है कि…
अरे छोडि़ये बाबा। गुस्‍सा नक्‍को करते। बारिश की बताइये न, प्‍ली
सौवीर बाबा, आज तो मुझे बख्‍श दीजिए, प्‍लीज। मेरी भी कुछ फैमिली प्रॉब्‍लम समझने की कोशिश कीजिए प्‍लीज।
कौन सी प्रॉब्‍लम ? आपकी कौन सी प्रॉब्‍लम हन्‍नू बाबा?
आप मुझे बारिश करवाने की बात कर रहे हैं। जबकि मुझे पानी से डर लगता है।
आपको लगता है डर? वह भी पानी से? जरा खुलासा समझाइये न।
अरे सतयुग में जब मैं श्रीलंका गया था न, तब एक दिन पूरी लंका ही फूंकनी पड़ी थी मुझे। बचने-बचाने के चक्‍कर में पूंछ जल गयी थी। गर्मी से राहत हासिल करने के लिए मैं समंदर में कूद गया था। फिर अब मुझे तो पक्‍का पता नहीं कि पूरा मामला क्‍या था, लेकिन कुछ दिन बाद रोहित शेखर की माता उज्‍जवला देवि की तरह एक उलझन फंस गयी। एक मछली अपनी गोद में एक बच्‍चा लेकर आयी और बोली कि यह मकरध्‍वज है। बड़ा टेंशन, खैर छोडि़ये। कल बुधवार है, मैं अभी सीधे मेघनाथ-मेघनथनी के पास जाता हूं, और उनसे कह कर बुधवार की बारिश का सेशन शुरू करा देता हूं। डोंट वरी सौवीर जी। हनुमान पर यकीन रखियेगा। बारिश होगी और कल बुधवार को ही होगी। प्रॉमिस।
और देखिये तो हनुमान जी का वचन कि इस वक्‍त लखनऊ में हनहनउव्‍वा बारिश झमाझम चल रही है।
अरे ओ मोदी भाई ! बारिश शुरू हो गयी है, जरा गरमागरम और कम चीनी वाली चाय और दो पकौड़ा तो लपक कर ले आओ।

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