हाईकोर्ट बार चुनाव: खुशनुमा, अजीबोगरीब और आश्‍चर्यजनक। सायास-अनायास भी

बिटिया खबर
: अवध बार एसोसियेशन के ताजा चुनाव में कई प्रचलित चरित्र विलोम-भाव में स्‍थापित : सतीश मिश्र निलिप्‍त, एलपी मिश्र और कालिया चैम्‍बर हल्‍का-फुल्‍का ही प्रचार करता रहा : मुसलमान सोचें कि नतीजों में उनकी गैरमौजूदगी का सबब :

कुमार सौवीर
लखनऊ : अदालतों में मुकदमों के निपटारे की रफ्तार भले ही कछुओं को मात देती हो, भले ही कानून के नुक्‍तों के पाखंड-लकीर के बल पर बात-बात पर रूपयों के रंगीन गांधी-छाप नोट चलते हों, लेकिन कचेहरी के गलियारों में इतनी भीड़-भड़क्‍का और अफरातफरी होती है कि कोई असावधान शक्‍स उसमें कुचल भी सकता है। गजब साजिशाना मदमस्‍त अंदाज झूमता है न्‍यायपालिका में। चिराग के तले का साक्षात अंधेरा।
लेकिन लखनऊ हाईकोर्ट की बार एसोसियेशन के ताजा चुनाव में यहां के कई चरित्र विलोम-भाव में स्‍थापित हो गये। कई खुशनुमा, कई अजीबोगरीब, कुछ चकित करने वाला, तो कोई सुखद संकेत देती घटनाएं सायास-अनायास सतह पर आ ही गयीं। अवध बार एसोसियेशन के कपाल पर इस बार जो भी इबारतें दर्ज हुई हैं, उसे आगे बढ़ाने का झोंका इन्‍हीं घटनाओं से मुमकिन हो पायेगा। अगर झोंका बदरंग नहीं किया गया, तो।
अवध बार एसोसियेशन के ताजा चुनाव के परिणाम काफी दिलचस्‍प और हैरतअंगेज भी निकले हैं। इसमें हाईकोर्ट की रफ्तार के भविष्‍य के लिए काफी असरकारी हो सकने वाले कई संकेत दर्ज कराये हैं मतदाताओं ने। जाहिर है कि इनका विश्‍लेषण अब एसोसियेशन के सदस्‍य आगे करते ही रहेंगे, लेकिन पुराने नेताओं को भी अपनी राजनीति के लिए इससे काफी सबक भी मिल सकेगा। जिसमें बार की कार्यप्रणाली से भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण होगा कि बार नेतृत्‍व का चरित्र क्‍या होना चाहिए। खास तौर पर यह संकेत खांटी पुरानी शैली को बदलने का इशारा तो कर ही रहा है।
चुनाव अधिकारी विनोद सिंह ने अपने सह निर्वाचन अधिकारियों समेत कुल 91 सहयोगियों के साथ यह चुनाव निपटाया है। वे बताते हैं कि इतना जरूर है कि इस चुनाव परिणाम में खुद में सभी जातियों के प्रतिनिधित्‍व का संकल्‍प लिया है। जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में सतीश मिश्र का चैम्‍बर बहुत सक्रिय नहीं रहा। एलपी मिश्र और कालिया चैम्‍बर भी हल्‍का-फुल्‍का ही प्रचार करता रहा। यह एक सकारात्‍मक पक्ष है, बार एसोसियेशन के प्रवाह में।
पिछली बार फर्स्‍ट रनर रहे आनंदमणि त्रिपाठी इस बार अध्‍यक्ष बने हैं, जबकि दो बार अध्‍यक्ष रहे हरिगोविंद सिंह परिहार बुरी तरह हारे। परिहार पहले भी महामंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं। उन्‍हें ग्‍यारह सौ वोट मिले हैं। जबकि इसके पहले परिहार हमेशा भारी अंतर से जीते रहे हैं। परिहार सीनियर एडवोकेट हैं। ठीक उसी तरह डॉ अशोक निगम भी सीनियर एडवोकेट हैं। मगर परिहार की ही तरह अशोक निगम भी इस बार चारोंखानों चित्‍त हो गये। अशोक निगम इससे व्‍यथित नहीं होते हैं, वे कहते हैं कि मतदाताओं का फैसला ही सर्वोच्‍च है। इसमें ऊंच-नीच नहीं। प्रतिद्वंद्व-भाव बहुत जरूरी है, निर्लिप्‍त भाव के साथ।
महामंत्री पद पर बालकेश्‍वर को जितना वोट मिला, वह बाकी अन्‍य प्रतियोगियों के वोटों के बराबर है। पहले रनर शरद पाठक को 700 वोट मिला। मगर शरद मस्‍त हैं। बोले: यह मेरी पहली पारी है। राजनीति के विभिन्‍न स्‍वाद तो चखने की शुरूआत में यह सब हो न हो तो उसमें योद्धा-भाव गायब हो जाएगा।
विनोद सिंह बताते हैं कि उन्‍हें इस पूरे चुनाव में कोई भी गड़बड़ी नहीं दिखी। हां, जहां दिक्‍कत थी, उसकी वजह बार कौंसिल की ओर से ही थी। चुनाव में पैसों और भारी-भरकतम पार्टियों के आयोजन की खबर की कोई भी सूचना नहीं मिली। इसमें संशय की गुंजाइश भी नहीं है। वजह है अशोक साहू की जीत, जो उपाध्‍यक्ष (मध्‍य) के पद को जीते हैं। पूरी तरह एकला-चलो की तर्ज पर।
यह दीगर बात है कि मुसलमान इसमें प्रतिनिधित्‍व अपनी छवि नहीं निखार पाया है। लेकिन अगर मुसलमान चाहे तो इस मसले पर इंट्रास्‍पेक्‍शन कर ले। वैसे भी, अब मतदाताओं को भी यह तो सोचना ही चाहिए कि आखिर उनकी ऐसी गैरमौजूदगी का कारण क्‍या था। जाहिर है कि जब आम वकील लोग अगर विलम्‍ब से इसका कारण और निदान खोजने की कोशिश करेंगे, काफी देर हो चुकी होगी।

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