: राजनीतिक रहनुमाओं के इशारों पर डॉ अनिल यादव ने खड़ा किया भ्रष्टाचार का साम्राज्य : लोअर पीसीएस 2008-2009 के अंकपत्र बहुत दिनों तक जारी नहीं किए गए : आरटीआई से सूचना मांगने पर आयोग का एक ही राग था कि सूचना अदेय है :
अशोक पांडेय
इलाहाबाद : अखिलेश सरकार में बेरोजगारों को राहत दिलाने के अनेक घोषणाएं की गयी थीं। लेकिन देश में शायद ही कोई ऐसी सरकार रही होगी, जिसने यूपी के बेरोजगार युवाओं के सपनों का सामूहिक नरमेध नहीं किया हो। और यह भी किसी सोची-समझी साजिश के तहत किया गया, जिसमें सरकार और प्रशासन के आला अफसर भी शामिल थे। नजीर रही उप्र लोकसेवा आयोग की कार्यशैली, जहां जातीय और जेबों के बल पर नौकरी बाकायदा बेची-थमायी गयीं। बाकायदा गिरोह की तरह सपा सरकार ने अपने चहेतों को आयोग का मुखिया बनाया, जिसने बेरोजगारों के मुंह पर खूब तमाचे मारे। इसका विरोध करने वालों को प्रताडि़त किया गया, ताकि वे विचलित हो जाएं। लेकिन जो अडिग रहे, उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाया गया। और आखिरकार वे ओवरएज भी हो गये।
हमारे संविधान के भाग -14 के अनुच्छेद 315- 323 तक लोक सेवा आयोग के बारे में उपबंध है। भारतीय शासन अधिनियम 1935 के तहत 1 अप्रैल 1937 को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। जिसका उद्देश्य था कि योग्य ईमानदार ,कर्मठ ,प्रशासनिक अधिकारियों का चयन करना, किंतु विगत वर्षों से लोक सेवा आयोग में खुलकर भ्रष्टाचार हुआ है। इस भ्रष्टाचार के जनक रहे डॉक्टर अनिल यादव की नियुक्ति 1 अप्रैल 2013 को तत्कालीन सरकार ने सभी नियमों और कानूनों को ताख पर रखकर किया था। डॉ अनिल यादव की नियुक्ति 83 योग्य उम्मीदवारों मे अंतिम मे थे । जिनमें वैज्ञानिक, आईएए , आईपीएस, आईएफएस, मेजर आदि को दरकिनार कर डॉ अनिल यादव की नियुक्ति मात्र इसलिए की गई थी ताकि भ्रष्टाचार का सम्राज्य खड़ा किया जा सके। और अपने चहेतों को गलत तरीके से नियुक्ति दी जा सके।
ज्ञातव्य है कि डॉ अनिल यादव के खिलाफ विभिन्न जिलों में अनेक संगीन आरोपों में मुकदमे दर्ज हैं। जिसमें जनपद आगरा के न्यू कैंट थाने में केस संख्या 553/85 धारा तीन गुंडा एक्ट 861/91 धारा 506 आईपीसी थाना शाहगंज में केस संख्या 98/83, 235 /83, 413/ 83 ,553/83 थाना हरीपर्वत में केस संख्या 13084 एवं थाना लोहा मंडी में केस संख्या 464 /84 के अंतर्गत अनेक को संगीन आरोपों में मुकदमे दर्ज हैं । खैर बाद में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 14 अक्टूबर 2015 को अनिल यादव की नियुक्ति को रद्द कर दिया। वैसे लोक सेवा आयोग में आयोग्यों की भरमार थी और अभी भी है। जैसे फरमान अली, मेजर संजय यादव तत्कालीन सचिव जिनको उच्च न्यायालय ने अयोग्य घोषित किया था।
डॉ अनिल यादव के भ्रष्टाचार के कुछ मिसाल देखिए। उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग ने अपनी SDM के पदों पर 3 भर्तियों में 86 में से 56 पदों पर एक ही जाति के अभ्यर्थियों को चयन कर लिया। पीसीएस 2011 में 389 में से 72 एक ही जाति के व्यक्ति चयनित कर लिए गए। साक्षात्कार में पिछड़े वर्ग के 111 पदों के लिए एक ही जाति के विशेष 54 अभ्यर्थी बुलाए गए और इनमें से 45 का चयन कर लिया गया । जाति विशेष जाति के ही 27 अभ्यर्थी सामान्य वर्ग में भी चयनित कर दिया गया । डॉ अनिल यादव के निर्देश पर सबसे पहले तो पीसीएस परीक्षा में त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था लागू कर दी गई लेकिन जब इस पर विवाद हुआ तो यह बदल दिया गया। इस बदलाव के दौरान ही सारी पोल खुल ही गई। इस बदलाव से मुख्य परीक्षा का परिणाम संशोधित करना पड़ा और 176 चयनित अभ्यर्थी बाहर हो गए। जिसमें ज्यादातर एक ही जाति के थे।
यह सिलसिला यहीं रुका नही बल्कि जारी रहा, जब कृषि विभाग में तकनीकी सहायकों के 6628 पदों की भी भर्ती हुई। आरोप यह है कि विज्ञापन जारी होने के बाद अन्य वर्गों की सीटें कम करके उन्हें पिछड़ी वर्ग में शामिल कर दिया गया। विज्ञापन में सामान्य के 3616 अनुसूचित जाति के 2221 अनुसूचित जनजाति के 235 और OBC के 566 पद बताए गए ।लेकिन बाद में ओबीसी के लिए आरक्षित पदों की संख्या 2029 कर दी गई। इससे हुआ यह कि सामान्य वर्ग के पद 2515 और अनुसूचित जाति के 1882 पद रह गए। अंतिम परिणाम जब आए तो ओवरलैपिंग करके ओबीसी के सफल अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ाकर 3116 हो गई। इसी परिणाम को माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संशोधित करने का आदेश दिया। लेकिन आयोग सुप्रीम कोर्ट जाकर स्टे ले लिया यह मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
लोअर पीसीएस 2008-2009 के अंकपत्र बहुत दिनों तक जारी नहीं किए गए क्योंकि डॉ अनिल यादव ने अपने चहेतों को 50 में 35 से 38 नंबर तक साक्षात्कार में दे दिया। अगर अंक पत्र जारी होता तो आयोग के अध्यक्ष का एक और काला कारनामा उजागर होना तय था। पीसीएस -2013 से प्रारंभिक परीक्षा में परीक्षा केंद्र आवंटन की नई प्रणाली लागू की गई जिसमें मनमाने ढंग से केंद्रों का आवंटन कराया गया जिससे अपने चहेतों को लाभ पहुंचाया जा सके।
डॉ अनिल यादव के इशारों पर हर प्रारंभिक परीक्षा मे॑ 15 से 20 प्रश्नों के उत्तर जानबूझकर गलत रखे जाते थे। जिससे वह अपने लोगों को अनुचित लाभ पहुंचा सकें खैर इसका अनुसरण आज भी यूपीपीएससी के चेयरमैन कर रहे हैं । नजीर तत्कालीन उदाहरण पीसीएस 2017 है ।
पारदर्शिता के नाम से जाने जाना वाला उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इसे डॉ अनिल यादव ने 22 अप्रैल 2015 को प्रस्ताव के तहत अपारदर्शी बना दिया। अब चयनित अभ्यर्थियों के नाम व पता नहीं दिया जाएगा केवल अनुक्रमांक व रजिस्ट्रेशन के आधार पर परिणाम घोषित किए जाएंगे । इसके तहत अब खुलकर भ्रष्टाचार किया गया।
डॉ अनिल यादव ने तो आरटीआई कानून को भी मजाक बनाकर रख दिया था जब 2 प्रतियोगियों ने एक ही सत्र की मुख्य परीक्षाओं की कॉपी आरटीआई के माध्यम से देखनी चाही तो जहां एक को बताया गया कि कपिया जला दी गई वही दूसरे को उसकी कॉपी दिखा दिया गया । आरटीआई के माध्यम से कोई सूचना मांगता तो आयोग के पास एक ही सूचना हमेशा होती कि यह सूचना अदेय है । यदि बहुत कोशिश के बाद दी जाती तो वह अस्पष्ट और दिग्भ्रमित होता था । खैर सिलसिला आज भी जारी है।
प्रतियोगी छात्रों का आरोप है कि करीब 40 हजार सीधी भर्तियों में खुलकर भ्रष्टाचार हुआ।और आरक्षण के नियमों का खुलेआम उल्लंघन हुआ। सीधी भर्ती के ऐसे परिणामों को आयोग कुछ ही घंटों में अपनी वेबसाइट से हटा देता था ताकि लोगों को पता ना चल सके।
इनके कार्यकाल के अंतर्गत मुख्य परीक्षा के प्राप्तांकों के स्कैनिंग और मॉडरेट के आड़ में एक खास जाति के अभ्यर्थियों को अप्रत्याशित तौर पर फायदा पहुंचाया गया। वर्तमान समय में सीबीआई ने इस बात को अपने FIR में स्वीकार किया है। (क्रमश:)