क्‍या आपकी करतूतों की खंखार-मवाद वाला पीकदान है पुलिसवाला? हां, कुछ ऐसे अफसर भी तो होते ही हैं

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: वैभव कृष्‍ण का निलम्‍बन ऐसा ताजा प्रकरण है, जिसने आईपीएस अफसरों को बुरी तरह आहत किया :  पुलिस महकमें में जिला प्रमुखों की छीछालेदर से त्रस्‍त हैं यूपी के टोपीक्रेट : कभी राजनीतिक लाभ के लिए तो कभी आईएएस अफसरों की नाक पर मक्‍खी हटाने के लिए कत्‍ल की जाते हैं आला अफसर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बुलन्‍दशहर हादसा तो अपने आप में एक शर्मनाक मामला था, जिसकी जितनी भी भर्त्‍सना की जाए, कम ही है। लेकिन इस घटना के बाद जिस तरह से बुलंदशहर के एसएसपी वैभव कृष्‍ण को निलम्बित किया गया, वह पुलिस वालों पर बेहद अखरा है। कई आईपीएस अफसर वैभव कृष्‍ण के इस सस्‍पेंशन को पूरे पुलिस महकमे के हौसलों को तोड़ने  वाले एक निहायत शर्मनाक हादसे के तौर पर देख रहे हैं।

वैसे भी यूपी के टोपीक्रेट कहलाने वाले अब खुद को राजनीतिक और आईएएस अफसरों की भड़ास के निशाने पर रहते मानते हैं। उनका कहना है कि सामान्‍य प्रशासन में राजनीतिक हस्‍तक्षेप इतना ज्‍यादा हो गया है कि पुलिस का काम करना हराम होता जा रहा है। एक भी मामले में सत्‍ता के अदने तक के कार्यकर्ता-नेता सीधे नेता जी या अखिलेश यादव के नाम पर धमकी दिया करते हैं। एक भी गिरफ्तारी अगर स्‍थानीय नेताओं की मर्जी के खिलाफ हो जाए, तो अफसरों को सरेआम बेइज्‍जत कर दिया जाता है। कई मामले ऐसे हो चुके हैं जब सत्‍ता से जुड़े नेताओं ने उस अफसर के घर-दफ्तर में उनको गालियां दीं, धमकी दीं। घर-दफ्तर में घुसने के पहले लात मार कर दरवाजा खोलना तो अब आम बात होती जा रही है।

लेकिन इससे भी दिक्‍कत तलब बात तो तब होती है, जब सत्‍ता के करीब आईएएस अफसर किसी पुलिस अफसर के साथ अभद्रता का प्रदर्शन करते हैं। ऐसे कई मामले हो चुके हैं जब किसी असरदार डीएम ने अपने जिले के पुलिस प्रमुख यानी एसपी को एक ही झटके में हलाक करा दिया। इसके लिए डीएम द्वारा गृहमंत्रालय को भेजी गयी केवल एक रिपोर्ट ही पर्याप्‍त हो जाती है, और चट-पट उस अफसर का बोरिया-बिस्‍तर बंध जाता है। इस काम में केवल डीएम ही नहीं, कमिश्‍नर और सचिवालय के आला अफसर भी आगे बढ़ कर अपनी ताकत का प्रदर्शन करते रहते हैं।

ताजा मामला वैभव कृष्‍ण के निलम्‍बन का है। बुलंदशहर में हमारे कई सूत्रों ने बताया कि अ‍भय कृष्‍ण की छवि एक तेज और तर्रार पुलिस अफसर की है। जिले में आते ही कृष्‍ण ने आनन-फानन अपराधियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। पुराने और दबाये गये मामलों की फाइलों की छानबीन शुरू कर दी गयी। लम्बित वारंटों की तामीला हुई और भागे गये शातिर अपराधियों को कानून के शिकंजे के पीछे पहुंचाया गया। बताते हैं कि अभय कृष्‍ण ने चौबीसों घंटे तक अपने फोन को ऑन कर उस पर आने वाली हर कॉल का जवाब दिया। चूंकि कृष्‍ण को वहां आये हुए चंद ही वक्‍त हुआ था और उसके बाद वे केवल यहां के सिस्‍टम्‍स को समझने की प्रक्रिया में जुटे थे।

लेकिन एक त्रुटि बस हो गयी और यह हादसा हो गया। दरअसल, सूत्रों के अनुसार, बुलंदशहर का माहौल खुद सपा के नेताओं ने ही बिगाड़ा था। अधिकांश पुलिसवाले अब अपनी जवाबदेही अफसरों के बजाय सीधे नेताओं तक समझने लगे थे। ऐसे में पुलिसिंग तबाह होने लगी। नम्‍बर 100 पर फोन न उठना उसी तबाही का एक घाव था। लेकिन जैसे ही यह सूचना उन तक पहुंची, सबसे पहले वैभव कृष्‍ण ही मौके पर पहुंचे थे। सूत्र बताते हैं कि घटना के दिन ही उन्‍होंने खोज लिया था कि उस रोंगटे खड़े कर देने वाले हादसे के असल अपराधी कौन हैं, लेकिन इसके पहले कि वे उन्‍हें दबोच पाते, वैभव कृष्‍ण को सरकार ने मुअत्‍तल कर दिया।

मुजफ्फरनगर के दंगे में भी यही हुआ। जब आग बुरी तरह भड़क गयी, तो उसे सम्‍भालने के लिए सुभाष चंद्र द्विवेदी को वहां एसएसपी बना कर भेजा गया। उस वक्‍त गृह प्रमुख सचिव हुआ करते थे आरसी श्रीवास्‍तव। सुभाष जब कानपुर में तैनात थे, उस समय उन्‍होंने माध्‍यमिक शिक्षा के निदेशक को घूस की रकम की 85 लाख रूपयों के साथ दबोचा था।

आरसी श्रीवास्‍तव चाहते थे कि इस मामले को रफा-दफा कर दिया जाए, लेकिन सुभाष ने उस निदेशक को जेल भेज ही दिया। तब से ही सुभाष से श्रीवास्‍तव ने खुन्‍नस ही नहीं, जानी दुश्‍मनी जैसी ठान ली। सूत्र बताते हैं कि श्रीवास्‍तव ने सुभाष को धमकी दी थी कि वह तुम्‍हारा कैरियर खत्‍म कर दूंगा। उधर जैसे ही सुभाष मुजफ्फरनगर पहुंचे तो उसके ठीक सात दिन बाद ही सुभाष पर कार्य-शिथिलता और लापरवाही का आरोप लगा कर प्रमुख सचिव गृह आरसी श्रीवास्‍तव ने डीजीपी आफिस से अटैच कर दिया और उसके 12 दिन उन्‍हें सस्‍पेंड कर दिया गया। हैरत की बात है कि जब सुभाष की तैनाती मुजफ्फरनगर में थी, उस समय एडीजी कानून-व्‍यवस्‍था, आईजी क्राइम और आईजी व डीआईजी जैसे आला अफसर उसी जिले में कैंप किये हुए थे। यानी सारे आदेश आला अफसर ही देते थे, ऐसे में सुभाष को मुअत्‍तल करने का औचित्‍य ही बेहूदा था। इस मामले में आईपीएस एसोसियेशन ने अपना सख्‍त विरोध जताया था।

इसके पहले गोंडा में नवनीत राणा नामक एक कप्‍तान को सस्‍पेंड कर दिया गया था। तब समाजवादी पार्टी ने नई-नई ही सत्‍ता सम्‍भाली थी। गोवंश की तस्‍करी इस जिले में बेहिसाब चल रही थी। जिले के एक दिग्‍गज राजनीतिक परिवार के लोग भी गोवंश की तस्‍करी में लिप्‍त थे। लेकिन राणा ने आते ही इस तस्‍करी पर रोक लगा दी।

इस बात का जवाब यूपी सरकार कब देगी कि आखिरकार लखनऊ के एसएसपी रहे राजेश पाण्‍डेय को क्‍यों अचानक हटाया गया। कुख्‍यात आतंकवादियों, दुर्दान्‍त अपराधियों और साइबर शैतानों से लगातार जूझते रहे राजेश पाण्‍डेय को हटाना सरकार की प्रतिष्‍ठा पर एक काला धब्‍बा है। राजेश पाण्‍डेय को केवल इसीलिए हटाया गया कि उन्‍होंने यूपी सरकार के एक आला अफसर के यहां हुई एक बड़ी कीमती हार की चोरी का खुलासा उस अफसर की इच्‍छा के हिसाब से किन्‍हीं निर्दोषों पर जुल्‍म ढाने का प्रतिरोध किया था। राजेश ने इस बात पर सख्‍त ऐतराज किया था कि दो बेगुनाह को दो महीने तक विभिन्‍न थानों में गैर-कानूनी तरीके से हवालातों में बन्‍द रखा गया और इस तरह मानवाधिकार की हत्‍या की साजिश की गयी थी।

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