बसपा से भाजपा बने स्‍वामीप्रसाद मौर्य ने अपनी पत्रिका में गरिया था भगवान ब्रह्मा को, लिखा था:- ‘बेटी-चो–‘

मेरा कोना

: बसपाइयों की पत्रिका ‘अंबेडकर टुडे’ में ब्रह्मा को था लिखा ‘बेटीचोद’ : स्‍वामीप्रसाद थे उस पत्रिका के संरक्षक, आज मनु-संतानों के तलवे चाटने भाजपा में शामिल : रंगा-सियार हैं स्‍वामीप्रसाद मौर्य, गिरगिट को भी मात दिया रंग बदलने में :

कुमार सौवीर

लखनऊ : तो लीजिये जनाब। देख लीजिए कि खरबूजे को देखकर खरबूजा किस तरह गिरगिट जैसा रंग बदलता है। संदर्भ है प्रिंट मीडिया। राष्ट्रीय सहारा ने जिस भाषावली का इस्तेमाल शुरू किया था, उससे सबक लेकर और भी पत्र-पत्रिकाएं अपने कदम कई मील आगे तक बढा चुकीं।

उसके बाद तो हालत यहां तक पहुंची कि आम्‍बेदकर ने संविधान लिखने में जिस न्‍याय-संहिता और दण्‍ड-प्रक्रिया का सहारा लिया था, उसी मनु को पानी पी-पी कर गालियां देने वाले बसपाइयों ने अपनी पत्रिका में ब्रह्मा जी को अपनी बेटी के साथ दुराचार करने वाले शख्‍स के तौर पर पेश किया है। कहने की जरूरत नहीं कि हिन्‍दू समाज ब्रह्म जी को भगवान के दर्जे पर रखता और सम्‍मानित करता है। यह पत्रिका का प्रकरण करीब छह साल पुराना है।

जी हां, शालीनता को पूरी तरह तार-तार करते हुए बसपाइयों और उनके कारिंदों ने सामाजिक तानाबाना को ध्‍वस्‍त करने की साजिशें बुन डाली हैं। शब्दों और वाक्यों को सड़कछाप शैली में प्रस्तुत करने का एक अभियान सा लगता है, शुरू हो चुका है। पटना और कानपुर की खबरों से उर्जा लेकर अब यूपी की भी एक पत्रिका ने यह कमाल शुरू कर दिया है। व्यक्तियों या समूहों के लिए गालियों के इस्तेमाल को प्रकाशित करने के बाद अब हिंदू देवी-देवताओं पर भी बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी शुरू हो चुकी है। जाहिर है कि पत्रकारीय जिम्मेदारी और नैतिकता को तो ताक पर रख ही दिया गया है।

यह जानते हुए भी कि शब्द ही ब्रहम है, उसी ब्रहम के बारे में क्या विचार है, इन सद्य-स्तनपायी यानी नवजात पत्रकारों के। जिस देवता को हिन्दू धर्म और आस्थाएं सृष्टि-कर्ता के तौर पर पूजती हैं, उसे ही अपने घटिया राजनीतिक स्वार्थों के चलते बसपा से जुडे कुछ लोगों ने पत्रकारिता को माध्यम के तौर पर अपनाया और ब्रहमा को ‘बेटीचोद’ करार दे दिया है। यह बाद में चर्चा का विषय बना कि इन नवजातों की खुराक यानी दूध कहां से और कैसा आ रहा है। लेकिन अल्फाजों के लहजे को देखें तो साफ पता चल जाता है कि दिमाग ही नहीं, इनकी रगों तक में कितना जहरीला जहर भरा होगा। तभी तो मां-बहन से शुरू हुआ यह मामला अब बेटी जैसे संबंधों तक निर्बाध और निर्वस्त्र पहुंच चुका है।

शर्मनाक बात है कि यह पत्रिका प्रदेश सचिवालय के चंद बड़े-बड़े अफसरों और नेताओं के बीच चुस्कियां लेकर पढी जाती है। विज्ञापन भी खूब मिलता है। अखबार-पत्रिका में शब्दों के साथ दुराचार का यह ताजा मामला है जौनपुर से प्रकाशित होने वाली अंबेडकर टुडे नामक एक पत्रिका का। बसपा के एक बडे़ नेता स्‍वामीनाथ मौर्य के बेटे द्वारा अंबेडकर के विचारों को प्रकाशित करने का ठेका लेने के चलते इस पत्रिका ने पत्रकारिता को तो जानबूझकर कलंकित किया ही है, बसपा की सर्वजन हिताय और सर्वधर्म समभाव की अवधारणा को भी जमकर दुलत्ती लगायी है। इतना ही नहीं, इस घटिया पत्रिका के संरक्षक थे बसपा सरकार मेंं मंत्री रहे स्‍वामीप्रसाद मौर्या, जो भाजपा की योगी-सरकार में मंत्री बने हैं। इन्‍हीं की हरकतों को लेकर रायबरेली में पांच ब्राह्मणों की हत्‍या पर विवाद खड़ा हो चुका है। (क्रमश:)

भाजपा में अब मनुवाद के तलवे चाटने वाले स्‍वामी प्रसाद मौर्य की पहले की घिनौनी राजनीति को पढ़ने-समझने के लिए कृपया निम्‍न लिंक को क्लिक कीजिए :- ब्रह्मा ‘बेटी-चो–‘

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