मां ! रात के किस्‍से सुलझाने में होती थी तुम्‍हारी यही चाय सहारा

मेरा कोना

: निहारिये एक बेटे की निगाह में एक मां का स्‍नेह : एक छोटी से अभियक्ति जरूर है यह, लेकिन है कमाल की : तेरी चूडि़यों में लगी से‍फ्टीपिन की याद तो बहुत आती है, मगर आज तक उस प्‍यारी अदा को मैं समझ नहीं पाया :

एक अरसा बीत गया जब आखिरी बार माँ तुम्हारे हाथ की चाय खाने के बाद पिया था, जिसमे अक्सर नींद में तुम चीनी या तो चाय-पत्ती ज्यादा कर देती थी, पर माँ तुम्हे कभी कहना नहीं पड़ा, तुम्हे मालूम होती था मेरी तलब, रात के किस्से सुलझाने में यही चाय सहारा होती थी।

ऐसा भी हुआ जब कभी दूध न बचा हो तो मलाई में पानी डाल कर मतलब भर का दूध कर लेती थी तुम और फिर उस फीकी सी चाय को मैं उसी तबियत से पीता था। तुम्हारी चूड़ियों में लगी सेफ्टीपिन आज भी याद आती है, उसका मतलब कभी समझा नहीं पर अदा प्यारी थी।

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