बेफिक्र रहो बच्चियों, 1090 वाले सुरक्षा भले न करें, लुटी इज्‍जत छिपा लेगें

सैड सांग

: ज्‍यादातर मामलों में तो दुष्‍कर्मों के मामले दबाने की साजिशें करता है प्रशासन, इशारा करती है सरकार : बेटियों की सुरक्षा का दम्‍भ भरने वाले समाजवादी सरकार के प्रशासन में सिर्फ साजिशों में महारत है : चाहे जौनपुर हो, कुशीनगर, हापुड़, कानपुर, आगरा या हो लखीमपुर खीरी, दुष्‍कर्म को दबाने की जुगत भिड़ाते हैं पुलिस और प्रशासन : केवल हवाई दावे करने से नहीं खुशहाल नहीं होता है प्रदेश, हकीकत समझो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कोई भी व्‍यक्ति या संगठन अपने अंतिम समय में अपनी करनी को समझने, उस प्रायश्चित करने, गलतियों को सुधारने और फिर उस बात का संकल्‍प लेता है कि आइंदा ऐसा न हो। लेकिन यूपी की अखिलेश सरकार में उसका ठीक उल्‍टा है। अगर किसी गरीब बच्‍ची पर जुल्‍म हुआ है तो उसकी रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती है, अगर ऐसे हादसों पर बवाल हो और रिपोर्ट दर्ज करना लाजमी हो, तो मामला मरोड़-तोड़ कर दर्ज किया जाएगा। जांच कागजों पर होगी, साक्ष्‍यों की हत्‍या की जाएगी, बच्‍ची को प्रताडि़त और उत्‍पीडि़त किया जाएगा।

और अगर यह दुष्‍कर्म किन्‍हीं खासे असरदार और पैसेवालों ने किया और उस पर हंगामा हो गया हो तो फिर उसकी रिपोर्ट अधिकतम हमला या हल्‍की छेड़छा़ड़ से अधिक की दर्ज नहीं की जाएगी। उसकी मेडिकल जांच भी नहीं करायी जाएगी, जिससे पता चल सके कि उसके साथ क्‍या-क्‍या शारीरिक और वाहिशाना-शर्मनाक हादसा हुआ। नेता, पुलिस और अफसर के साथ मिल कर पैसेवाले अपराधी लेन-देन तय करेंगे और जब तक वह यह मामला सुलटा नहीं पायेंगे, अपने साथ हुए हादसे से बुरी तरह सहमी पीडि़त बच्‍ची को थाने में बन्‍द ही रखा जाएगा।

निरपराध और अमानवीय। लगता ही नहीं कि हम किसी सभ्‍य और विकासशील प्रदेश में रहने वाले हैं।

जी हां, पिछले चाहे वह लखनऊ और जौनपुर का मामला रहा हो, कुशीनगर, हापुड़, कानपुर, आगरा का रहा हो या फिर लखीमपुर खीरी का, ऐसे हर दुष्‍कर्म को दबाने की जुगत भिड़ाते ही दिखे हैं पुलिस और प्रशासन के अफसर। कौन मानता  है लखनऊ पुलिस की वह थ्‍योरी जहां मोहनलालगंज के बलसिंह खेड़ा के एक सरकारी स्‍कूल में 16-17 जुलाई-14 को एक निरीह महिला के साथ सामूहिक बलात्‍कार हुआ, उसके साथ नृशंस व्‍यवहार हुआ, उसके गुप्‍तांग में इंडिया मार्क-टू का हत्‍था घुसेड़ दिया गया और अन्‍तत: उस युवती की रंक्‍त-रंजित पूरी तरह नंगी लाश बरामद हुई। साफ-साफ लग रहा था कि इस हत्‍या में कम से कम पांच से सात लोगों की संलिप्‍तता थी, लेकिन केवल एक ही व्‍यक्ति को फर्जी कहानी बना कर जेल भेज दिया गया।

दो साल से वह युवक जेल में सड़ रहा है। लेकिन यह कोई भी पूछने को तैयार नहीं है कि आखिर एक शख्‍स कैसे उस युवती के गुप्‍तांग में हैंडपम्‍प का हत्‍था घुसेड़ सकता है। अब तो उसमें अपनी जीवन के प्रति निराशा का भाव तक उत्‍पन्‍न हो गया है। वजह यह कि उसकी तीन बेटी और एक बेटा है। कुछ आठ बिस्‍सा जमीन है और साढ़े पांच हजार रूपयों से नौकरी के बल पर पूरी पारिवारिक जिन्‍दगी चल रही थी। तीन साल पहले ही उसने अपनी बड़ी बेटी की शादी की थी। दो बेटी और एक बेटा अभी पढ़ रहा है।

अब वह व्‍यक्ति किसी से भी मिलते ही फफक कर रो पड़ता है। बोला:- मेरी जिन्‍दगी जीते जी खत्‍म हो गयी। मैं बरबाद हो गया। पुलिसवालों ने मुझे और मेरे बेटे को पेड़ पर बांध कर मारा। बोले कि कुबूल नहीं करोगे तो तुम्‍हारे और तुम्‍हारे बेटे का मार डालेंगे। साहब, अब हम कहीं को मुंह दिखाने लायक नही रहे। वकील भी न जाने क्‍या करते हैं। अब तक जमानत नहीं हो पायी। कैसे खाने-पीते होंगे मेरे बच्‍चे। नहीं साहब, नहीं। अब मुझे यकीन हो गया है कि इस दुनिया में इंसाफ नाम की कोई भी कीमत नहीं है।

हैरत की बात है कि इस काण्‍ड पर परदा डालने के लिए पूरी सरकार और गृह विभाग के प्रमुख सचिव समेत आला अफसर भी एकजुट हो गये। नतीजा यह हुआ कि एक अपर पुलिस महानिदेशक सुतापा सान्‍याल को इस मामले की सचाई छिपाने की सफलपूर्ण जिम्‍मेदारी दी गयी।(क्रमश:)

यूपी में महिलाओं-बेटियों के साथ हो रहे जघन्‍य अपराध और दुष्‍कर्म से निपटने से पुलिस और सरकार की कोशिशों की असलियत देखना चाहें तो क्लिक कीजिए : – अपराधियों की सरकार, अपराधियों के लिए सरकार

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