सोशल-मीडिया में मंडराती ब्‍लैकमेलर “विष-कन्‍याएं”

दोलत्ती

: तुम जिस स्‍कूल के छात्र हो, उसका कुलाधिपति रह चुका है कुमार सौवीर : दिलफेंक आशिक का दिल तोड़ डाला “फेसबुकिया कन्‍या” ने : नंगे अवधूत से उगाही करोगे, तो मिलेगा सिर्फ बाबा जी का घंटा : ऐसी घटनाओं पर सहज ही रहिये, महिलाएं सतर्क रहें :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सुदर्शन जी की एक कालजयी कहानी है हार की जीत। इस कहानी में किसी मां को जिस तरह अपनी संतान, साहूकार को अपना भरा हुआ गल्‍ला और किसान को अपने लहलहाते खेत को देखकर जो आनंद आता है, ठीक उसी तरह बाबा भारती जी को अपने घोड़ा सुल्‍तान को सहला कर अनुभूति होती थी। लेकिन मेरा तो मानना यह है कि बाबा भारती से भी सहस्रगुणा आनंद तो आशिकों में अपने लक्षित इश्‍क को देख कर होने लगता है। दिलफेंक आशिकों में उनके स्‍वास्‍थ्‍य के हिसाब से इश्‍क की घटत-बढ़त अनुभूति होती रहती है। दरअसल, इश्‍क सिर्फ एक ज्‍वर है। बुखार। लेकिन मीठा-मीठा बुखार। चढ़ता रहता है, तो उसी हिसाब से सुकून देता रहता है। न होने पर दिल पर हाहाकार मचने लगता है, और तसल्‍ली तब होती है जब इश्‍क की सम्‍भावनाएं बलवती हो जाती हैं। इश्‍क में सतत जिज्ञासा और झकाझोर प्रवाह एक महान कारक तत्‍व होते हैं। आपको बता दें कि इसमें पैरासिटॉमॉल या कॉलपॉल किसी महाकाल की तरह प्रतिकूल असर करता है। इश्‍क के बुखार को दवा नहीं, इश्‍क की आशिकी की जरूरत होती है।

बहुत पहले कहीं पढ़ा था कि इश्‍क हमेशा बदन के रास्‍ते होकर ही जन्‍म लेता है, पलता है। अब रूहानी किस्‍से उन फिल्‍मों में ही अच्‍छे लगते हैं, जहां शरीर की प्राप्ति असम्‍भव होती है, या उसकी महती कमी बनी हुई हैं, मगर इश्‍क के झोंके किसी तूफान की तरह गड़गड़ा रहे हैं। ऐसी हालात में कवि के स्‍वर फूटते हैं:-

हम ने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
हम ने देखी है …

लेकिन ऐसी लाइनें लिखने वाले लोग देवदास को भूल जाते हैं। देवदास को पारो के साथ रूहानी इश्‍क है, जबकि चंद्रमुखी के साथ बदन के साथ रूहानी भी रिश्‍ता है। हालत तो यहां तक पहुंची कि सन-56 में दिलीप कुमार, वैजयंतीमाला और सुचित्रा सेन के साथ देवदास नाम की फिल्‍म बन गयी, लेकिन इसके बावजूद भारतीय दर्शकों का पेट नहीं भरा। नतीजा यह हुआ कि सन-2002 में शाहरुख खान भी दारू की बॉटली लेकर माधुरी दीक्षित और ऐश्‍वर्य राय के साथ देवदास बन गये। इन दोनों की फिल्‍म का केंद्र-विषय देह-आकर्षण ही तो था। इंसान में रूहानी जोश तो बाद में फलता-फूलता है, पहले तो देह-विमर्श की जरूरत और उसका समवेत विकास होने लगता है।

लेकिन हम देह की जरूरत तो बेहिसाब चाहते हैं, मगर उस पर बातचीत करना नापसंद करते हैं। आप किसी से भी सेक्‍स पर बात छेड़ दीजिए। जवाब बेहद निर्ममता ही नहीं, बल्कि कमोबेश घृणा या लानत देखने जैसी शैली में व्‍यवहार करना शुरू कर देगा। अधिकांश तो भक्‍क बोल कर थोड़ा दूर खिसक जाएंगे।

बस यहीं से शुरू होता है इस प्रेम-सरिता में गंदगी का प्रसार। जाहिर है कि जब आप इश्‍क के प्रवाह पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर देंगे। इश्‍क को लेकर आपका हेय-भाव और उसमें छिपाव-दुराव खुद आपको ही परेशान करना लगेगा। या फिर आप बहुत बड़े संत-महात्‍मा हों। लेकिन उनकी क्‍या जो आसाराम बापू या स्‍वामी चिन्‍मयानन्‍द बन जाते हैं। वजह होती है शरीर की डिमांड, जो आपके प्रतिबंधों को नहीं मानती।
अगर आप पूरी तरह शरीर और मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ हैं तो, बेहतर है कि आप ऐसे दैहिक प्रतिबंधों को दूर झटक दें, और दो-टूक या बेलौस व्‍यवहार करना शुरू करें। रजनीश बन जाएं।

मेरे पास रजनीश जैसी दिव्‍य क्षमताएं नहीं हैं। लेकिन मैं अपने आवेश, आवेग और प्रवाहों पर अनावश्‍यक प्रतिबंध लगाना उचित नहीं मानता। जो कुछ भी करना होता है, सीना ठोंक कर करता हूं, और उसे सार्वजनिक रूप से स्‍वीकार करने का गूदा भी रखता हूं।

अब ताजा किस्‍सा सुन लीजिए। कुछ दिन पहले मेरे पास एक फ्रेंड-रिक्‍वेट आयी। Riya Shrmaकी। वाल लॉक्‍ड थी। मैंने मैसेंजर पर परिचय पूछा। तो उसने प्रति-प्रश्‍न करना शुरू कर दिया। मैंने साफ कहा कि अगर आप अपना परिचय नहीं देंगी, तो आपको ब्‍लॉक कर दूंगा। उसके बाद उसने सीधे-सीधे पूछा:- वीडियो-सेक्‍स पसंद है आपको ?

लगा जैसे मेरी लॉटरी लग गयी, बिना टिकट खरीदे। पिछले 17 बरसों से रंडवा का जीवन व्‍यतीत कर रहा हूं। फोटो और वीडियो के अलावा निर्वस्‍त्र स्‍त्री-देह का दर्शन ही दुर्लभ रहता है। ऐसे में यह प्रस्‍ताव मेरे लिए एक नयी जीवनी-शक्ति के रूप में अवतरित हुआ। उसने मेरा वाट्सएप नम्‍बर मांगा। हालांकि मेरा नम्‍बर मेरी वाल पर शुरू से ही दर्ज है, लेकिन उसे मैंने नम्‍बर दे दिया। मगर उसने वाट्सएप के बजाय मैसेंजर पर वीडियो कॉल कर दी। उसने अपना चेहरा तो नहीं दिखाया, लेकिन देह-दर्शन का कार्यक्रम जरूर चला। उसने कहा कि अपना दिखाओ, मैंने भी खोल कर दिखा दिया। प्रेम-संबंधों में कुछ छिपाना न मेरे पिता ने सिखाया है, और न ही मैंने। लेकिन कुछ समय बाद उसने कॉल डिस्‍कनेक्‍ट कर दिया। उसके बाद कई दिनों तक सन्‍नाटा रहा।

आज उसका मैसेज आया उसके वाट्सएप 7086505795 पर। उसने उस दिन की वीडियो की क्लिप मुझे भेजा, और पूछा कि तुम्‍हारी वाल पर वह वीडियो अपलोड करने जा रहा हूं। करूं या नहीं ?

उसके बाद किसी सवाल या जवाब का कोई अर्थ ही नहीं था। जाहिर है कि यह ब्‍लैकमेलिंग का मामला है। वह चाहता है कि वह मुझे भयभीत कर दे।

लेकिन उसने गलत नम्‍बर डायल कर लिया। दरअसल, उसे पता ही नहीं होगा कि कुमार सौवीर बिलकुल नंगा अवधूत है। बिलकुल अघोरी, जिसके पास जो भी है, बिलकुल खुला-खुला है। छुपा या दुराव का कोई सवाल ही नहीं है मेरे पास। जो है, वह है। और जो नहीं है, वह नहीं है। बात खत्‍तम। अघोरी को डर नहीं लगता। चाहे वह भूख का सवाल हो, या फिर देह के प्रश्‍न हों, कुमार सौवीर ऐसे या वैसे किन्‍हीं भी सवालों का जवाब पहले से ही सुरक्षित रखता है। कोई मेरा क्‍या उखाड़ पायेगा। बहुत हुआ तो फिर वही खोल के दिखा दूंगा, जो उसको वीडियो-कॉल में दिखाया था।

देखने-दिखाने के इस किस्‍से में एक किस्‍सा और सुना दूं आपको। मुख्‍यमंत्री के मुख्‍यालय सचिवालय-एनेक्‍सी के भूतल में उप्र सूचना विभाग की ओर से बनाये गये मुख्‍यमंत्री के प्रचार-प्रसार के लिए विशेष सूचना परिसर है। घटना के दौरान यहां पर एक डिप्‍टी डायरेक्‍टर डॉक्‍टर अशोक कुमार शर्मा हुआ करते थे। उनके ही अधीनस्‍थ थे राजीव दीक्षित। आज उनकी फोटो पर माला चढ़ चुकी थी। राजीव जीवंत प्राणी थे, आग्रह-दुराग्रह से दूर। साफ-सफेद। दो-टूक बोलते थे। एक दिन एक पत्रकार उनके साथ बेवजह उलझ रहा था। मैंने टोका तो, वह मुझसे ही भिड़ गया। मेरा भेजा खराब हो गया। मैंने फौरन अपने पैंट की जिप खोली और अपना असलहा उसके हाथ के पास मेज पर ही टिकाते हुए कहा कि:- यह हालत सुषप्‍त अंग-विशेष को लेकर, जो तुम्‍हारे पूरे व्‍यक्तित्‍व को भी पराजित कर रहा है। अब सोचो कि अगर यह जाग्रत भाव में आ गया, तो तुम उसे कैसे अंगीकार कर पाओगे। भाग साले, भोंश्री के।

लेकिन हर व्‍यक्ति कुमार सौवीर नहीं होता। दरअसल, हमारा मध्‍यमआय वर्ग और निम्‍नमध्‍यमआय वर्ग समाज की असल दिक्‍कत यही है कि वह सवालों से जवाब मांगने के बजाय खुद से ही सवाल पूछ-पूछ कर अपने आप को हलकान-परेशान करता रहता है। यह वर्ग चाहता तो है सबकुछ, लेकिन इस तरह कि उस पर कोई सवाल न उठा सके। उसका मूल्‍य अदा करने को तैयार नहीं होता है। उसके सवाल भी बेहद मूर्खतापूर्ण होते हैं, जिनका जवाब भी नहीं दिया जा सकता। मसलन, लोग सुनेंगे, तो क्‍या कहेंगे। आसपास पड़ोस वाले लोग क्‍या सोचेंगे। बच्‍चों पर क्‍या प्रभाव पड़ेगा। सोसाइटी में नाक कट जाएगी। मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।

अरे भई ! जब इतने ही सवाल थे तुम्‍हारे पास, तो यह करतूत ही क्‍यों कर डाली। दैनिक भास्‍कर के समूह संपादक थे कल्‍पेश याग्निक। अपनी ही चेली से इश्‍क फरमाने लगे। यह जानते हुए भी मेधा-दिमाग के मामले में वह केवल औसत लेबल में ही थी, लेकिन उसे मुम्‍बई में प्रमुख बना दिया। उसकी ख्‍वाहिशें उससे भी ज्‍यादा थीं। उसके बाद उसने कल्‍पेश को ब्‍लैकमेल करना शुरू कर दिया। एक मकान ले लिया, एक करोड़ के आसपास नकदी भी ले लिया। लेकिन आखिरी में सीधे पांच करोड़ मांग बैठी। बोली, कि अगर नहीं दिया तो तुम्‍हारी इज्‍जत मिट्टी में मिला दूंगी। यह धमकी सुनते ही कल्‍पेश की दगा-दगाई होने लगी। तनाव इतना बढ़ा कि अपने दफ्तर से नीचे कूद कर कल्‍पेश ने आत्‍महत्‍या कर डाली।

अरे मूर्खाधिराज ! इश्‍क करना ही था, तो खुल कर करते। तुम्‍हें तय कर लेना था कि तुम्हारे लिए जरूरी क्‍या है ? परिवार, दफ्तर, पड़ोसी, समाज या फिर वह लड़की। जोश बढ़ा, तो भंवर में कूद गये। लेकिन जब जग-हंसाई की नौबत आ गयी, तो आत्‍महत्‍या कर डाली। ऐसे कल्‍पेश याग्निक तो आपको आपके आसपास खूब मिल जाएंगे। कोई आत्‍महत्‍या कर चुका होगा, तो कोई अपनी जिन्‍दगी ही बर्बाद कर चुका होगा।

तो, अंत में सलाह सिर्फ है कि जो कुछ भी करो, खुल्‍लमखुल्‍ला ही करो। या फिर कत्‍तई मत करो।

खास कर महिलाओं को तो इस बारे में ज्‍यादा ध्‍यान देना चाहिए, कि उसका साथी विश्‍वसनीय है भी या नहीं। वरना नीना गुप्‍ता तो खैर एक मजबूत महिला की छवि बना कर आयरन-लेडी बन ही चुकी हैं। इंदिरा गांधी जी तो वाकई एक मजबूत और अविश्‍वसनीय स्‍तर की मजबूत महिला थीं।

3 thoughts on “सोशल-मीडिया में मंडराती ब्‍लैकमेलर “विष-कन्‍याएं”

  1. अलखनिरंजन। गुरूवर ।सादर साष्टांग दंडवत प्रणाम—काहे विष कन्या का बना हलुवा खाने
    के चक्कर मे लंगोट सर पे रख लिये—प्राक्सी पोर्न चेट की भयानक साईड है एक बार दो दिन पहले हमारे दिमाग मे आया तीरथ घुम आये–हम पहले भी आन लाईन घुमे है हम अपना नाम पता फोन नंबर सब बताय दिये –खुब आनलाईन नंबर 1नंबर यानि सदाचार व नं 2की यानि दुराचार की बात किये उसमे एक दो के विचार काफी प्रभावित करने वाले थे–खैर छोड़िये जाने दिजीये –ऊ का करेगी ज्यादा से
    ज्यादा गुरूवर नागा बाबा के दर्शन करा देगी —
    ऊफट स्वाहा —
    दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ—

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *