: मत भूलिये कि बुली करना प्रशांत भूषण का शौक ही नहीं, धंधा भी है। और इसमें वे खासे माहिर हैं : कोर्ट को अपनी गरिमा बनाये रखनी ही होगी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : इतना बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि देश की सर्वोच्च न्यायालय और वहीं के एक बड़े वकील के बीच एक सार्वजनिक नंगा-युद्ध चल रहा है। दोनों ही इस नग्न-नर्तन में अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र एक-दूसरे पर फेंक रहे हैं, जैसे महाभारत सीरियल के पात्र। कुछ पता ही नहीं चल रहा है कि इस में कौन कौरव है और कौन पाण्डव। कौन कंस या शकुनि है और कौन कृष्ण। जिसे मामला सुलझाने के लिए संस्थान का सर्वोच्च मुखिया बन कर हस्तक्षेप करना चाहिए, वह अपने पक्ष में रणनीतियां बुनते हुए भाजपा नेता की पचास लाख रुपयों वाली अमेरिका बाइक पर फोटो सेशन कराने के लिए नागपुर चला जाता है, जबकि दूसरा खाया और अघाया हुआ शख्स अपनी वकालत का शौक पूरा करने के बाद अब महात्मा गांधी बनने पर आमादा है।
करीब एक सदी पहले महात्मा गांधी पर भी उनके एक लेख पर अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाया गया था। जज ने माफी मांगने को कहा, लेकिन गांधी जी ने साफ कह दिया कि चूंकि उन्होंने कोई अपराध किया ही नहीं है, ऐसी हालत में वे अदालत से माफी किस बात पर मांगें। असमंजस की हालत बन गयी थी। हंगामा लंदन तक मचा। बाद में गांधी जी को चेतावनी देकर छोड़ दिया था जजों की बेंच ने। अदालत का भी सम्मान बच गया था, और गांधी जी अपनी बात पर अडिग थे, उनका हठ भी पूरा हो चुका था।
लेकिन वह दौर दूसरा हुआ करता था। तब के मुकाबले आज की न्यायपालिका की गंगोत्री खासी गंदली हो चुकी है। इतनी गंदली, कि अब कचेहरी, जज, वकील और अदालत के नाम सुनते ही मुंह बिचका देते हैं। कई तो खंखार कर थूक मारते हैं। फूहड़ गालियां देते हैं न्यायपालिका को। यह मान कर चलते हैं कि लूट का सबसे बड़ा अड्डा अदालत ही है। कैलाश गौतम ने तो एक कविता भी लिख दी है कि चाहे कुछ भी हो जाए, मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना।
ऐसी मौजूदा हालत में अवमानना मामले की सुनवाई करने वाली सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ अगर प्रशांत भूषण पर कोई दंडात्मक करती है, तो प्रशांत भूषण उसके लिए पलक-पांवड़े बिछाये तैयार बैठे हैं। उनका मकसद न्यायपालिका या जजों का सम्मान बनाये रखना नहीं है, बल्कि वे तो इस पूरे मामले में किसी भी कीमत पर अदालत को फंसाये रखना चाहते हैं। मेरा सहज अनुमान है कि इस अवमानना के मामले में अदालत चाहे जो भी फैसला सुनायेगी, प्रशांत भूषण उसका विरोध ही करेंगे। मामले की पुनर्समीक्षा की मांग करेंगे, अपील करेंगे। चाहेंगे कि अदालत का फैसला गलत है, इसलिए उसकी सुनवाई पांच जजों को सौंपी जाए। बहस की सुनवाई खुली अदालत में हो। वगैरह-वगैरह। वजह यह कि प्रशांत भूषण इस मामले में परम्परागत तरीके से इस मामले को देखने को तैयार ही नहीं होंगे।
उनका साफ मकसद तो इस मामले को कैसे भी हो, लेकिन हर हाल में फंसाये रखना ही होगा, फैसला चाहे कुछ भी हो। अदालत उनको जेल भेजे या आर्थिक दंड दे दे, अथवा कड़ी चेतावनी दे दे। लेकिन वे ऐसे हर फैसले को चुनौती देंगे। गांधी की तरह सीना तान कर अपने राजनीतिक फलक पर चले जाएंगे, ऐसा हरगिज नहीं होगा। प्रशांत भूषण चाहते हैं कि इस मामले में वे ज्यादा से ज्यादा जनता से जुड़ें, और उनके पास यह तुरुप का पत्ता आ चुका है। अदालत अगर उनको जेल भेजने का आदेश भी दे देगी, तो भी उसको वे अपने पक्ष में भुना लेंगे। अब वे कानून की अदालत नहीं, बल्कि आम जनता की अदालत तक पहुंचना चाहते हैं। मत भूलिये कि अदालत और जजों को बुली करना उनका शौक ही नहीं, उनका धंधा भी है। और इसमें वे खासे माहिर हैं।
सच बात तो यही है कि वे इस मामले के माध्यम से 101 साल पहले के महात्मा गांधी बनना चाहते हैं।
दोलत्ती डॉट कॉम ने इस मामले में खूब माथा-पच्ची की है, बावजूद इसके कि हम अदालत या कानून को केवल देख और सुन कर ही जानते हैं। लेकिन हमारी सहज बुद्धि के अनुसार इस मामले में अदालत के पास केवल एक ही रास्ता बचता है। आज 24 अगस्त-20 की दोपहर बाद जब अदालत कोर्ट बैठे, तो अदालत प्रशांत भूषण से कहें कि वे अदालत की अवमानना के मामले में माफी मांगें ( जैसा कि 20 अगस्त-20 को अदालत पहले ही प्रशांत भूषण से कह चुकी थी। ) जाहिर है कि प्रशांत भूषण तत्काल साफ इनकार कर देंगे, यह तर्क देते हुए उन्होंने कोई अपराध किया ही नहीं है। ( ठीक गांधी जी की शैली में, जैसा 1919 में उन्होंने किया था।)
इस पर कोर्ट वीडियो-कांफ्रेंसिंग पर कुछ अन्य वरिष्ठ वकीलों को आमंत्रित करें। बिलकुल निष्पाप ढंग से। एमिस-क्यूरी या न्याय-मित्र की तरह। उनसे दो-टूक राय मांगे कि इस मामले में अदालत को अपनी राय दे दें। अदालत इसके लिए कोई नयी डेट नहीं लगाये, वरना इससे बहुत बुरा मैसेज निकलेगा। एमिस-क्यूरी से कहा जाए कि वे अपनी राय तत्काल बनायें। जाहिर है कि यह वरिष्ठ वकील राय अपनी-अपनी राय देंगे। हो सकता है कि इसमें अदालत को कोई कई लाजवाब रास्ते मिल सकें, हालांकि इस दौर तक पहुंच जाने के बाद अब ऐसी उम्मीद न के बराबर ही होगी। ऐसी हालत में अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन जजों की इस बेंच की ओर से अरुण मिश्र यह फैसला सुना दें कि:-
“हम हमेशा से ही आपसे न्यायपालिका की गरिमामय और सम्मानजनक व्यवहार की अपेक्षा करते रहे हैं। लेकिन इस मामले में आपने अदालत के विश्वास को किर्च-किर्च कर दिया है। आप अदालत से क्षमा-याचना न करने पर अडिग हैं, तो कोई बात नहीं। ऐसी हालत में इस गरिमा-मय संस्था के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले आपके इस आपराधिक कृत्य के लिए हम खुद ही माफी मांग लिये लेते हैं।”
ऐसा आदेश जारी करने के बाद अदालत तत्काल बर्खास्त कर दी जाए, जाहिर है कि प्रशांत भूषण समेत दीगर वकील भी सकते-सदमे में आ सकते हैं।