: मैं अखिलेश यादव को टोंटी-चोर नहीं मानता, वह तो भाजपाई साजिश थी विपक्ष को नेस्तनाबूत करने को : सत्ता-विरोधी यानी “नो लॉबी” में रहता है पत्रकार, अब मैं अखिलेश यादव और उनके मंत्रियों के कामकाज पर कड़ी निगरानी करूंगा : मैं निंदक रहूंगा, अब अखिलेश यादव का जिम्मा है कि वे मेरे लिए अपने आसपास कुटिया छवायेंगे या नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : मैं अपने ही घर को फूंक-विध्वंस कर वहां विष-बेल रोपने वाला बज्र-चूतिया भाजपाई-संघी नहीं हूं, जो अपनी सुबह गोमूत्र और गोबर को उदरस्थ कर दिन भर वाट्सऐप-यूनिवर्सिटी का सिलेबस पढ़ता, रटता और उसे फारवर्ड करता रहता हो। जाति और धर्म के नाम पर पूरे समाज में गंदगी फैला रहा हो, और कानून-संविधान की ऐसी की तैसी कर रहा हो। खुद को संन्यासी कहलाते हुए मुख्यमंत्री तो बना हो, लेकिन अपने अफसरों के ही दिल, दिमाग और आंख का इस्तेमाल करता हो। कामधाम का हश्र तो पूरे में पुलिस-महकमे को जन-विरोधी बना डालने में देख लीजिए, या फिर उन लोकार्पित किये गये सात मेडिकल कालेजों को देख लीजिए, जो अब तक बन ही नहीं पाये।
मैं चमार-केंद्रित चंद दलित-कुटुंब के बल पर सतीश चंद्र मिश्र की घटिया घिनौनी ब्राह्मण-रणनीति में मायावती वाली बसपा वाली भाजपा-समर्पित बी-कॉपी भी नहीं हूं। जो दलितों के नाम पर वोट बटोर कर खुद ऐश्वर्य में हो और करोड़ों रुपयों के नोटों से बनी माला सार्वजनिक रूप से पहनती हो। जो विधायकों और सांसदों की सीट के लिए करोड़ों की रकम उगाहती हो।
मैं हैदराबाद में दगे कारतूस के नाम पर भाजपा की सी-कॉपी के लिए बनाई गई ऐसी-वैसी रणनीति का ओवैसी भी नहीं हूं, जो दो-मुंह सांप की त्तरह एकतरफ मुसलमानों के पक्ष में बाकी हिंदुस्तान को मुस्लिम-विरोधी साबित करता है, लेकिन अपने हिडन-एजेंडा के तहत भाजपा के तालाब में ढेर सारा कींचड़ उछलता रहता है, ताकि उसके कमल ठीक से फलते-फूलते रहें। मैं ओमप्रकाश राजभर भी नहीं हूं, जो सिर्फ योगी पर विरोधी थूक-खंखार करने के बावजूद ओवैसी के साथ खड़े होकर भाजपा की मलहम-पट्टी करने वाला वार्डब्वाय होता है।
यह सच है कि मैं अखिलेश यादव को टोंटी-चोर नहीं मानता। यह साफ मानता हूं कि भाजपा ने अपनी आईटी-सेल के चिलांडुओं के बल पर यूपी में अपने सबसे बड़े विपक्ष के मुखिया को चारित्रिक रूप से नेस्तनाबूत और किर्च-किर्च बिखेरने की हरचंद साजिश बुनी। भाजपा के यह कुत्सित षडयंत्र का मकसद चरित्र-हनन होता है। लेकिन सच बात तो यही है कि अखिलेश यादव दूध के धुले नहीं हैं। टोंटी-चोर की उपाधि जो भाजपा ने उनके लिए बुनी है, उसके लिए अखिलेश खुद भी जिम्मेदार रहे हैं। और फिर अखिलेश यादव और भाजपा ही ने ही इस मामले में बढ़चढ़ कर होम की स्वाहा पर समिधा फेंकी है। अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में साढ़े तीन करोड़ रुपये सरकारी खजाने से निकल कर अपने मकान पर खर्च किया होता, लेकिन भाजपा ने सरकारी खजाने से हुई इस साज-सज्जा की शर्मनाक करतूत को बेनकाब कर उसे राजनीतिक मुद्दा बनाने के बजाय उसे एक घटिया और लुच्चे टोंटी-चोर की तरह उसका चरित्र-हनन कर लिया। बेशर्मी की हालत कि पिछले गणतंत्र-दिवस की परेड पर भाजपा की सरकार ने टोंटी की एक झांकी तक पेश कर दी। लेकिन आखिरकार हालातों ने अखिलेश ने टोंटी-चोर नहीं माना। यह भी सच है कि मैं अखिलेश यादव को लौंड-पन करने वाला अनाड़ी मानता हूं, जिसमें परिस्थिति-जन्य हालातों में इस चुनाव में जीत तो पा ली है, लेकिन उसका अधिकांश श्रेय हालात ही हैं, न कि अखिलेश यादव की राजनीति और रणनीति।
कुछ भी हो, यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव की ताजपोशी तो अब तय हो ही गयी है। मेरी ओर से भी सपा, अखिलेश और पूरे विपक्ष को बधाई। लेकिन अब मैं सपा और अखिलेश यादव के प्रति अपना पाला बदलने जा रहा हूं। इसके पहले तक मैं अखिलेश का समालोचक तो रहा हूं, लेकिन ज्यादा हमलावर नहीं। मगर अब चूंकि सपा और अखिलेश यादव सत्ता पर पहुंचने जा रहे हैं, ऐसे मैं पत्रकार के तौर पर सत्ता-विरोधी यानी “नो लॉबी” में जा रहा हूं। अब मैं अखिलेश यादव और उनके मंत्रियों के कामकाज पर कड़ी निगरानी करूंगा। उनका खुलासा करूंगा और आम आदमी तक उनकी खबरें पहुंचाने की भरसक कोशिश करता रहूंगा। पत्रकारीय मूल्यों और सिद्धांतों के तौर पर एक पत्रकार को सरकार के विरोध में ही रहना चाहिए, इसलिए मैं अब अखिलेश यादव, उनकी सरकार और उनके लोगों की आलोचना करूंगा।
लेकिन ऐसा नहीं कि मैं भाजपा पर हमला नहीं करूंगा। केंद्र सरकार पर जब तक भाजपा है, मैं उसका भी विरोधी रहूंगा। इतना ही नहीं, योगी सरकार के पिछले पांच बरस वाले कामकाज की भी बखिया उधेड़ता ही रहूंगा।
आप को मेरा ऐसा चोला पसंद हो या नहीं, लेकिन मैं अपनी इस ड्यूटी पर तैनात हो चुका हूं। अब तो अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी की जिम्मेदारी है कि वे मुझ निंदक को अपने घर के आसपास कुटिया छवाना चाहते हैं, या फिर प्रताड़ना। योगी और भाजपा को तो पत्रकार पसंद ही नहीं थे। वह तो एक पत्रकार को चूतिया भी कह चुके हैं।