चरण-रक्‍त प्रिय थे कप्‍तान, गाजीपुर से दक्खिन भये

बिटिया खबर

: नथुनी नहीं, घुटने पर गोली मारने का शौक। खल्‍लास करना नहीं, हाफ एनकाउंटर : चार महीने में आठ मुठभेड़। सीधे घुटनों से नीचे मारी गयीं गोलियां, लंगड़ा करो : अर्द्ध-न्‍याय के चितेरे रोहन बोत्रे। जनमानस में लोक-दर्शन नहीं, पाखंड करो, खाल बचाओ, लोगों को लंगड़ा कर दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जुम्‍मा-जुम्‍मा चार महीना ही हुआ होगा इस पुलिस अधीक्षक को, लेकिन इसी बीच इस एसपी ने अपने नाम से पूरे जिले को थर्रा डाला। इतना कि वायसराय लार्ड कॉर्नवालिस ने भी इतना कर पाने की कल्‍पना भी नहीं सोची होगी। पांच जुलाई-22 को गाजीपुर को पुलिस कप्‍तान की कुर्सी पर बैठने वाले इस शख्‍स ने यहां नौकरी केवल बमुश्किलन चार महीना ही की होगी, लेकिन इस बीच आठ ऐसी-ऐसी पुलिस मुठभेड़ें कर डालीं कि लोग दहल गये। कहने की जरूरत नहीं कि यह सारे के सारे एनकाउंटर बिलकुल स्‍टीरियो-टाइप रहे। सब की स्क्रिप्‍ट एक और उसका क्रियान्‍वयन भी एक ही तर्ज में ही पाया गया। सिवाय इसके कि कुछ ऐसी मुठभेंड़ें ऐसी भी हुईं, जहां एक ही घटना के तीन अभियुक्‍त कई-कई दिनों बाद ठीक उसी तर्ज में एनकाउंटर के बाद पकड़े गये, जैसे बाकी दीगर के साथ एनकाउंटर और पकड़ हुई थी। कहने की जरूरत नहीं कि यह सारी पुलिसिया कार्रवाइयां लगातार सवालों में आज तक उबल ही रही हैं।
सामाजिक व्‍यवहार में आपराधिक पैंतरे चलने, चलाने या उसे बदल डालने में आजकल फिल्‍में बहुत इशारा कर देती हैं। अधिकांश मामलों में तो आपराधिक घटनाओं की प्रेरणा फिल्‍मों को सामाजिक कल्‍पनाओं से मिलता है, लेकिन ऐसी फिल्‍मों में अपनाये जाने वाले तौर-तरीकों से सामाजिक व्‍यवहार भी बहुत गहरे तक प्रभावित होता रहता है। लब्‍बोलुआब यह कि अक्‍सर तो कल्‍पनाओं से फिल्‍म और उसके बाद के तौर-तरीकों को जन-मानस सीख कर उसे जीवन में अमली जामा पहनाता है।
लेकिन आज बात तो पुलिस अफसरों की हो रही है, जिसके ताजा-तरीन प्रमाण हैं रोहन प्रमोद बोत्रे। सन-16 के बैच में आईपीएस बने और यूपी पुलिस में शामिल बोत्रे मूलत: महाराष्‍ट्र के रहने वाले हैं। उन्‍होंने स्‍नातक तक सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। जाहिर है कि वे खूब जानते हैं कि किसी सिविल निर्माण, मरम्‍मत या उसको ढहाने में क्‍या-क्‍या और कितनी-कितनी जुगत लगाने की जरूरत पड़ सकती है। सीमेंट में कितनी बालू और मौरम का अनुपात कितना होना चाहिए और इस समीकरण को कम-ज्‍यादा करने पर निर्माणाधीन स्‍थान पर कितनी और कितने दिनों तक पानी से तराई कराने की जरूरत पड़ सकती है। वे खूब जानते हैं कि निर्माण में हुए किसी हेर-फेर को किस तरह और किस कोने-कुतरे से जस्‍टीफाई किया जा सकता है और उसके लिए उन्‍हें क्‍या-क्‍या काम करना पड़ेगा, ताकि देखने वालों को पूरा मामला बिलकुल दुरुस्‍त ही दिखायी पड़े।
चर्चा तो यहां तक है ही कि गाजीपुर में रोहन प्रमोद बोत्रे की कार्यशैली यहां लोक-सहयोगी पुलिस-प्रशासन की व्‍यवस्‍था तैयार करने के बजाय पुलिस एनकाउंटर के तौर पर अपनी छवि निखारने की ही रही है, भले ही इसका कितना भी प्रतिकूल असर पूरे समाज में पड़ता रहे। सूत्र बताते हैं क‍ि रोहन बोत्रे के कार्यकाल में एक ही घटना में पकड़े गये कुछ अन्‍य लोगों को फरार दिखा कर उन्‍हें बाद में ऐसे ही हाफ-एनकाउंटर में गोली से घायल कर दिया गया।
कहने की जरूरत नहीं कि रोहन प्रमोद बोत्रे के कार्यकाल में जितने भी एनकाउंटर किये गये, उन सभी के घुटने के नीचे ही गोलियां मारी गयीं।
क्‍या वाकई यह संयोग है, या फिर एक आपराधिक चरित्र वाली पुलिसिंग के कारकूनों की करतूतें, लेकिन चर्चाएं तो बेहिसाब चल रही हैं। सच तो जनता ही बता सकती है, और फिलहाल तो जनता यही बात पूरी शिद्दत के साथ ऐलानिया बता रही है। और अगर रोहन प्रमोद बोत्रे के बारे में ऐसी ही घटनाएं लगातार जुड़ती रहेंगी, तो आज की राजनीतिक फलक में यह भले ही सहज हो, लेकिन आने वाले वक्‍त में यह भयावह तस्‍वीर बन कर सामने जरूरी आयेगी।

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