#मी टू….. नारि न मोंहि नारि के रूपा…..

बिटिया खबर
: पुरूष समाज में इस शारीरिक मानसिक शोषण से बच पाना नामुमकिन :  हौसला पस्त हो जाएगा इसलिये लबों पर ताला डालना ही पड़ेगा आप जाएँगी कहॉ ? : हमारे बीच रहना है तो हमारी हर कुंठा हर वासना हर पशुता हर नैसर्गिक हवस को बर्दाश्त करना ही होगा :

प्रतिमा राकेश 

लखनऊ : मी टू….. नारि न मोंहि नारि के रूपा…..
अंशतः यह बात आज भी कहीं न कहीं लागू होते हुए भी एक कैंपेन के तहत ध्वस्त हो रही है…..
Thanks to Facebook…लड़की होना स्री होना , और पुरुषवर्चस्व वाले समाज में अपनी स्वतन्त्र इकाई की पहचान बनाने का संघर्ष करना कितना पीड़ादायक होता है , यह #Me too के इस अभियान से साबित हो रहा है ..इस संघर्ष में केवल बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन ही नहीं करना होता स्वयं को मानसिक तौर पर भी इतना मज़बूत बनाना होता है कि कोई पुरुष आपकी मर्ज़ी के बिना आपका शारीरिक शोषण , मानसिक दोहन ना कर सके , लेकिन पुरुषप्रधान समाज में इस शारीरिक मानसिक शोषण से बच पाना नामुमकिन नहीं तो बेहद मुश्किल अवश्य है !
जो स्त्रियों इस अभियान के विरुद्ध बोल या लिख रही हैं उन्हें सामाजिक संरचना और पुरुषों के अहं ब्रह्मोअस्मि वाले भाव को ध्यान में रखना होगा…..
इस अभियान के विरुद्ध तर्क देने वाले कहते हैं कि लड़कियॉ पहले अपने हाव-भाव से रिझाती हैं फिर पुरुष जब आगे बढ़ते हैं तो शोषण का इल्ज़ाम लगाती हैं ! नेताजी की मानें तो दो चार लाख रुपये के लिये यह सब आरोप प्रत्यारोप लगाए जाते हैं …..!
समाज आपका है दादागिरी भी आपकी ही चलेगी जनाब….
हमें सिर्फ छुएँ ही क्यों आप नोचिये चोथिये कपड़े फाड़िये कुर्ते में हाथ डालिये कमर में बाँहें डाल कर अपनी देह से सटा लीजिये…
और यह सब अकेले में अपने ऑफ़िस में या किसी बन्द कमरे में कीजिये कोई evidence नहीं कोई दूसरा गवाह नहीं , कोर्ट कचहरी तक बार बार दौड़ने का समय नहीं या यूँ कहिये कि सदियों से मुँह बन्द कर जीती आई स्त्री के भीतर वो हौसला नहीं हिम्मत नहीं जाएगी कहॉ ? करेगी क्या ? कहेगी कैसे ? सुनेगा कौन ? और सुन भी लिया तो विश्वास कौन करेगा ?
अदालतें गवाह माँगेंगी आपको बार बार हर बार तारीख़ें मिलेगी , तो दौड़ती रहियेगा व्यक्तित्व को सँवारने कुछ कर दिखाने समाज में एक मुक़ाम हासिल करने का हौसला पस्त हो जाएगा इसलिये लबों पर ताला डालना ही पड़ेगा आप जाएँगी कहॉ ? जाइये या तो फिर उसी बन्द कोठरी में वापस लौटिये जहाँ से समाज में अपने आपको स्थापित करने का जज़्बा लेकर चली थीं या पुर मुँह बन्द करते ये सारी गालियॉ शोषण बर्दाश्त करते हुए आगे बढ़ती रहिये हमारी पाशविक लालसा को तृप्त करती रहिये तो बनी रहिये इस संघर्ष में …. ये हमारा समाज है हम हैं यहॉ के जागीरदार आप दौड़ती रहिये लेकिन हमें अपनी देह मलते रहने दीजिये तभी हम रहने देंगे आपको हमारे बीच ….. हमारे बीच रहना है तो आपको हमारी हर कुंठा हर वासना हर पशुता हर नैसर्गिक हवस को बर्दाश्त करना ही होगा ये हम हैं हमारा समाज है हमारा वर्चस्व है हमारी पेरधानता है हमारा राजकाज है …..
तुम ससुरी होती कौन हो हमारे बीच घुसपैठ करने वाली ?
और हॉ हमारे बीच घुसोगी तो हम तो ऐसे ही मसलेंगे … कोर्ट हमारा कचहरी हमारी न्याय हमारा नियम हमारे……
तुम चिल्ला चिल्ली करती रहो…….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *