श्रेष्ठता के बावजूद जोड़तोड़ से जीतीं विदेश सचिव
: चीन में राजदूत जयशंकर ऐन वक्त पर पिछड़े : भारत के विदेश सचिवालय में तीसरी महिला मुखिया बन गयीं सुजाता : रंजन मथाई का कामधाम 31 को सिमटेगा :
कुमार सौवीर
शंकर, भगवती, व्यास, और पिनाक वगैरह नाम यूं तो देवताओं के हैं, लेकिन भूलोक और खासकर हिन्दुस्तान की राजनीति में ये कोई भी नाम अपना दैवीय प्रभाव कत्तई चरितार्थ नहीं कर पाये। कांग्रेस के खेमे वाले खुफिया नौकरशाहों की लॉबी ने प्रधानमंत्री तक की पसंद को दरकिनार कर दिया और अब जो नाम विदेश सचिव के तौर पर उभर आया है, वह हैं सुजाता सिंह। सुजाता सिंह फिलहाल जर्मनी में भारत की राजदूत हैं और पहली अगस्त से भारत के विदेश सचिवालय की मुखिया वाली कुर्सी सम्भालेंगी। मौजूदा विदेश सचिव रंजन मथाई इसी दिन अपने कार्यकाल का आखिरी दिन पूरा करेंगे। महिला सशक्तीकरण का झंडा फहराने पर ख्वाहिशमंद लोगों को सुजाता सिंह की इस शीर्ष नियुक्ति पर इतना तसल्ली तो हो ही सकती है, कि भारत के विदेश सचिवों में उनका नाम महिलाओं की सूची में जुड़ गया है और इतना ही नहीं, बल्कि वे देश की तीसरी महिला विदेश सचिव भी बनने जा रही हैं। लेकिन कुछ भी हो, केंद्र सरकार के इस कदम ने विदेश सचिवालय की सात साल पुराने कालिख को तो पोंछ ही लिया है, जो नौकरशाही में वरीयता को रौंदने से लगी थी।
अपनी पारिवारिक राजनीतिक और नौकरशाही से जुड़ी और धमकदार पोस्टिंग वाली पृष्ठिभूमि को अगर छोड़ दिया जाए तो सुजाता सिंह का पूरा 37 बरस का कैरियर बेदाग ही रहा है। विदेश सेवा के अधिकारियों में राजनीतिक हस्तक्षेप तो सामान्य गुण माना ही जाता है, साथ ही बरास्ते शीर्ष नौकरशाही भी इसमें सहयोग करती रहती है। प्रशासनिक क्षमता और गुणों के विकास के लिए यह अनिवार्य भी माना जाता है, क्योंकि किसी भी अधिकारी के क्षमता को आंकने-मूल्यांकन के लिए यही तरीका एकमात्र होता है। लेकिन दिक्कत तो तब होती है, जब यह सारा मामला अंडर-करेंट से उछल कर सरफेस पर पहुंच कर लोगों को जोरदार झटका दे जाता है। सुजाता सिंह के बारे में भी लोगों को यही जोरदार झटका लगा था। सुजाता के बारे में यह तो कहा ही जा सकता है कि श्रेष्ठता के बावजूद जोड़तोड़ से जीतीं हैं सुजाता सिंह।
दरअसल, खुफिया ब्यूरो (आईबी) के अध्यक्ष रह चुके टीवी राजेश्वर ने हाल ही अपनी शादी की 60वीं सालगिरह समारोह आयोजित किया था। इंदिरागांधी और राजीव गांधी के दौर में राजेश्वर आईबी के प्रमुख हुआ करते थे और मनमोहन सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का ओहदा दिया था। एक पखवाड़ा पहले दिल्ली में हुए इस आयोजन में जमकर धूम-धड़क्का हुआ। राजनीति और नौकरशाही के दिग्गयज भी इस पार्टी में खासतौर पर शामिल हुए। इनमें खास तौर पर नाम था कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी। आईबी के पूर्व मुखिया की शादी की इस सालगिरह पार्टी में सुजाता और उनका पूरा परिवार शामिल हुआ था। वजह यह कि सुजाता सिंह कांग्रेस के खानदानी खैरख्वाह माने जाने वाले नौकरशाह टीवी राजेश्वर की बेटी हैं।
बताते हैं कि इसके पहले प्रधानमंत्री मनमोहन की रूचि जयशंकर को लेकर थी। लेकिन इस सारी जी-तोड़ तब धुंआ हो गयी जब सुजाता सिंह के पिता की शादी की साठवीं वर्षगांठ समारोह में सोनिया गांधी ने पूरे दौरान अपनी मौजूदगी दर्ज करायी। इस पार्टी और उसके कांग्रेस मुखिया की मौजूदगी को भारत सरकार के विदेश सचिवालय को लेकर सुजाता सिंह के नाम पर अंर्तनिहित सहमति के रूप में देखना शुरू कर दिया गया था। नतीजा, आ गया। जानकार बताते हैं कि विदेश मंत्री खुर्शीद सलमान ने इस पार्टी के फौरन ही सुजाता के पक्ष में खेमाबाजी शुरू कर दी और इसके साथ ही साथ कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने सुजाता की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। वैसे आपको बता दें कि सुजाता सिंह के पति संजय सिंह भी भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठतम अधिकारियों में से रहे हैं और हाल ही वे पूर्वी क्षेत्र के मामलों के सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
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कुमार सौवीर की यह रिपोर्ट लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र डेली न्यूज एक्टिविस्ट के 3 जुलाई-13 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।